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गलती बाबा रामदेव की , दोषी ठहराया जाए मुसलमानों को… कहां का इंसाफ है यह


स्टाफ रिपोर्ट।
 मुसलमानों की छवि बिगाड़ने को नित-नए खेल चल रहे हैं। इस क्रम में अब भ्रम फैलाने की साजिश है कि आयुष मंत्रालय में तैनात मुस्लिम वैज्ञानिकों ने योग गुरू बाबा रामदेव की कोरोना संक्रमण की दवा ‘कोरोनिल’ पर रोक लगाई है। एक ने इसे ‘जिहादी सिस्टम का हिस्सा’  बताया है ।
  अभी मुसलमानों को विशेष चौकन्ना रहने और उचित प्लेटफार्म पर अपनी बातें रखने की आवश्यक ता है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब देश में उनकी छवि बिल्कुल धूल-धूसरित कर दी जाएगी। बाबा रामदेव प्रकरण ने इसका शिद्दत से एहसास कराया है। इस विवाद को लेकर जब आयुष मंत्रालय में तैनात मुस्लिम वैज्ञानिकों की छानबीन की गई तो पता चला कि इसकी आड़े में कुछ और खेल चल रहा है। बाबा रामदेव की ‘कोरोनिल’ दवा को लेकर केंद्र सरकार जांच-पड़ताल में लगी है कि पंतजलि ने दवा लांच करने से पहले क्या तमाम औपचरिकताएं पूरी की थीं ? उत्तरखंड के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि ‘कोरोनिल’ कोरोना संक्रमण की दवा है, इस बारे में बाबा रामदेव की ओर से नहीं बताया गया था। दवा बनाने से पहले विभाग को जानकारी दी गई थी कि पतंजलि खांसी-बुखार और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा बनाने जा रही है। इसके इतर बाबा रामदेव ने बाजार में ‘कोरोनिल’ नाम से कोरोना की दवा ही उतार दी। दावा किया गया कि यह कोरोना की विश्व की पहली अचूक दवा है। बाबा के इन दावों पर आपत्ति जताते हुए फिलहाल केंद्र के आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार प्रसार पर प्रतिबंध लगा रखा है। राजस्थान सरकार ने इसी मामले में रामदेव पर प्राथमिकी दर्ज कराई है।


  दूसरी तरफ, नफरती गैंग भ्रामक प्रचार में लगे हैं। उसकी ओर से कहा जा रहा है कि आयुष मंत्रालय के शीष वैज्ञानिक मुसलमान हैं, इसलिए जानबूझकर ‘कोरोनिल’ पर आपत्ति उठाते हुए इसकी बिक्री रोकी गई है। किसी दीक्षा पांडेय ने अपने ट्वीटर हैंडल से अनर्गल प्रचार किया है। कहा है कि आयुष मंत्रालय में दवाईयों पर रिसर्च और अप्रूवल देने वाले छह टॉप वैज्ञानिकों में असीम खान,मुनव्वर काजमी, खदीरून निशा, मकबूल अहमद खान, आशिया खानम और शगुफ्ता परवीन शामिल हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि रामदेव की ‘कोरोनिल’ दवा पर रोक क्यों लगाई गई है। यही है सिस्टम जिहाद। खबर लिखने तक दीक्षा पांडेय का यह मैसेज ट्वीटर पर डेढ़ हजार रिट्वीट और 2.6 हजार लाइक हो चुका था। ऐसा ही मैसेज फेसबुक और सोशल मीडिया के अन्य प्लेट फार्म पर ट्रेंड कराया जा रहा है।


  छानबीन से पता चला कि नफरती गैंग आयुष मंत्रालय के जिन मुस्लिम वैज्ञानिकों का जिक्र कर रहा है , वे दरअसाल मंत्रालय के युनानी विभाग में तैनात हैं। उनका दवा की लाइसेंस और अप्रूवल देने से कोई लेना देना नहीं। इस बारे में पूरा ब्यूरो आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। यानी अफवाह जान-बूझकर मुसलमानों की छवि धूमिल करने के लिए उड़ाई जा रही है। इससे पहले ‘कोरोनिल’ के मुददे को आयुर्वेद बनाम एलोपैथ बनाने का प्रयास किया गया था। मगर नफरती गैंग को इसमें खास कामयाबी नहीं मिली तो वे इसे हिंदू-मुसलमान का रंग देने पर उतारू हो गए।