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जब पंचू बाई गांव से जाने लगीं तो क्यों सारे मुसलमान फूट-फूटकर रोने लगे !

ब्यूरो रिपोर्ट।
मध्यप्रदेश के दमोह जिले का मुस्लिम बहुल गांव कोटातला देश की गंगा-जमुनी तहजीब की बेहतर मिसाल है। यह गांव फिल्हाल अपनी ‘मौसी’ पंचू बाई को विदा कर गम में डूबा है। ग्रामीणों ने अपनी मौसी को न केवल 43 वर्षों तक बिना किसी धार्मिक भेद के प्यार और सम्मान से रखा, गांव छोड़कर जाने लगीं तो सभी फूट-फूटकर रो पड़े।
  देश में अभी मुसलमानों को लेकर आश्चर्यजनक तरीके से नफरत फैलाई जा रही है। यहां तक कि उनसे किसी तरह का कारोबारी रिश्ता न रखने को कहा जा रहा है। कई जगह से तो कॉलोनियों में मुस्लिम सब्जी वालों की पिटाई की भी खबर है। ऐसे तनापूर्ण भरे माहौल में एक अच्छी खबर भी आई है। इसे सुन-पढ़कर मुसलमानों के नाम पर फैलाया गया जहर थोड़ा कम होगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
   करीब 43 वर्ष पहले नागपुर की एक हिंदू महिला पंजू बाई भटकते हुए मध्य प्रदेश के दमोह जिले के मुस्लिम बहुल गांव कोटातला के जंगल पहुंच गई। इस दौरान मधुमक्खियों ने उन्हें काटकर बुरी तरह घायल कर दिया। उक्त हिंदू घायल महिला को गांव के इसरार खान के पिता अपने घर ले आए। अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाने के कारण वह वहीं रहने लगीं। समय बीतने के साथ गांव वालों ने भी उन्हें अपना लिया और देखते-देखते वह पूरे गांव की मौसी बन गईं। गांव के एक शख्स बताते हैं, वह जब आठ वर्ष के थे तब से मौसी को देख रहे हैं। उनकी जवानी के दिनों में गांव के बच्चे उनसे खूब चुहलबाजी करते थे। अभी पंचू बाई की उम्र करीब 90 वर्ष है। इसरार खान पंचू बाई के बारे बताते हैं कि एक दिन गांव के लोगों के मन में आया कि क्यों न इनके अंतिम समय में इनके परिवार वालों से मिलाने की कोशिश की जाए। इसके लिए इनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पूरे विवरण के साथ वायरल की गई। इसरार बताते हैं कि इसका अच्छा परिणाम आया। महाराष्ट्र के नागपुर में रहने वाले मौसी के पोते पृथ्वी कुमार शिंदे ने उन्हें पहचान लिया और संपर्क कर एक दिन अपनी दादी को विदा करने पत्नी के साथ कार में गांव पहुंच गए।
 

गांव मौसी से करता भरपूर प्यार है

इसरार बताते हैं कि पूरा गांव मौसी से भरपूर प्यार करता है। उनकी विदाई की खबर जब ग्रामीणों ने सुनी तो क्या औरत, क्या मर्द और बच्चे सभी इकट्ठे हो गए। फिर न चाहते हुए भी मौसी को उनके पोते के साथ विदा किया गया। पृथ्वी कुमार शिंदे कहते हैं कि दादी को गांव से ले जाते समय उन्हें काफी दुख हो रहा है, पर अब वह उनकी सेवा करना चाहते हैं। इसलिए उन्हें अपने साथ ले जा रहे हैं। पृथ्वी कुमार शिंदे ने अपनी दादी को 43 वर्षोंं तक प्यार और सम्मान से रखने के लिए इसरार खान के परिवार और गांव वालों का शुक्रिया अदा किया। पोते की लाल रंग की कार पर सवार होकर जब पंचू बाई जाने लगीं तो महिलाएं फूट-फूट कर रोने लगीं। विदाई के समय मौसी को किसी ने हार पहनाए तो किसी ने उनके हाथों को चूमा और आंखों से लगाया। ऐसा है अपना देश भारत। इस घटना पर  वेबपोर्टल ‘द क्विंट ने बड़ी उम्दा स्टोरी की है। विदाई के दौरान जो रिपोर्ट तैयार की गई और तस्वीरें लीं गईं, सधन्यवाद सहित इस खबर के साथ उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।