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तीन साल का बच्चा क्यों रो रहा था खून से सने नाना की लाश पर बैठकर

ब्यूरो रिपोर्ट।
कश्मीर के सोपोर में आतंकवादियों और सीआरपीएफ की मुठ्भेड़ के दौरान क्या वास्तव में बुजुर्ग बशीर खान जानबूझकर निशाना बनाए गए या आतंकवादियों ने उन्हें मौत के घाट उतारा है ? यह अहम सवाल अब गर्मागर्म बहस का मुददा बन गया है। लोग चाहते हैं कि इस घटना की उच्चास्तरीय जांच कराई जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। ऐसा नहीं करने से देशविरोधी ताक़तों को कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों के खिलाफ अनर्गल प्रचार का एक और बड़ा मुद्दा मिल जाएगा।
   हालांकि बुधवार की घटना पर अपने प्रेस बयान में कश्मीर के डी जीपी विजय कुमार तमाम आरोपों को खारिज कर चुके हैं। ‘दैनिक जागरण’ में घटना को लेकर छपी खबर के मुताबिक, डीपीजपी ने कहा है कि आतंकियों की गोलियों की बौछार के बीच सीआरपीएफ के जवान बहादुरी का परिचय देते हुए बशीर खान के तीन वर्षीय नाती को बचाने में सफल रहे। मगर सोशल मीडिया पर चल फूटेज में वह बच्चा कुछ और ही कहता दिखाई दे रहा है। किसी महिला के पूछने पर वह तोतली ज़ुबान में बताता है कि उसके नाना को पुलिस वालों ने गोली मार दी।



 बशीर खान के बेटे कुछ प्रत्यक्ष दर्शियों के हवाले से कहते हैं कि उनके पिता किसी काम के सिलसिले में कार से सोपोर गए थे। मुठभेड़ के दौरान जब आतंकियों की गोलियों से सीआरपीएफ का एक जवान शहीद हो गया व कई घायल हो गए तथा हमलावार वहां से भागने में सफल रहे तो जवानों ने उसके पिता को कार से निकालकर गोली मार दी। परिजनों का आरोप है कि बहादुरी साबित करने के लिए बशीर के खून से लथपथ शव पर बच्चे को बैठाकर फोटो खींच लिया गया।


मुठभेड़ की पूरी घटना कुछ यूं है। बुधवार की सुबह उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के सोपोर कस्बे के मॉडल टाउन में सीआरपीएफ के जवान नाकेबंदी की तैयारी कर रहे थे। ‘जागरण’ में छपी खबर के अनुसार, इस बीच पास की मस्जिद की पहली मंज़िल से दो आतंकियों ने अर्धसैनिक जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान एक जवान की मौत हो गई और दो से तीन गंभीर रूप से घायल हो गए। मुठभेड़ के दौरान बुजुर्ग बशीर की भी गोली लगने से मौत हो गई। हालांकि, अखबर ने स्पष्ट नहीं किया कि बशीर की किन परिस्थियों में मौत हुई ? मुठभेड़ के दौरान वह कार से क्यों निकले ? तीन वर्ष का बच्चा कार से निकल कर कैसे खून से सने अपने नाना के शव पर जा बैठका ? पुलिस की दलील है कि मुठभेड़ के दौरान कार से निकल कर भागते समय बशीर खान आतंकियों के शिकार बन गए। इसका अर्थ है कि वह बच्चे को छोड़कर भाग रहे थे ?
 इस खबर को लिखने तक किसी आतंकवादी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली थी। ‘जागरण’ बताता है कि आतंकियों की पहचान कर ली गई है। उनमें से एक लश्कर-ए-तैयबा का पाकिस्तानी एजेंट उस्मान और दूसरा स्थानीय कार्यकर्ता आदिल है। इस घटना को लेकर परिजन और सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग कई गंभीर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही तीन वर्ष के बच्चे की नाना की लाश पर बैठी तस्वीर, उसके बयान और बशीर खान के रोते-बिलखते परिजनों का वीडियो भी खूब वायरल किया जा रहा है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि, कोई इन तस्वीरों और वीडियो का अनुचित इस्तेमाल सेना की छवि बिगाड़ने के लिए न करे। इसलिए तमाम पहलुओं की जांच कर तत्काल सारे सवालों के जवाब दे दिए जाने चाहिए। इस मामले में मेनस्ट्रीम मीडिया का रवैया भी कश्मीरियों को भड़काने वाला है। बच्चे का वीडियो साझा करने पर ऐसे लोगों को शांत करने की बजाए ऐसी टिप्पिायां की जा रही हैं, जिससे कश्मीरी भड़क सकते हैं। टीवी न्यूज चैनल आजतक’ के रोहित सरदाना का इस सिलसिल में किया गया ट्वीट भी कश्मीरियों और उनके हिमायतियों को भड़काने वाला है।


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