Muslim WorldTOP STORIES

‘EYE OPENER’ है ’बड़ा कब्रिस्तान’, हिंदुओं का करा रहा अंतिम संस्कार

ब्यूरो रिपोर्ट।
मुंबई का ‘बड़ा कब्रिस्तान’ सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों की आँखें खोल देगा। कब्रिस्तान का संचालन करने वाले दिन-रात कोरोना संक्रमण से मरने वालों के शवों का बिना किसी मजहबी भेद-भाव के अंतिम संस्कारण कराने में जुटे हैं। इसमें खुद उनकी जान दांव पर लगी है। बावजूद इसके बिना रूके  वे इस काम को अंजाम दे रहे हैं। ‘बड़ा कब्रिस्तान’ प्रबंधन ने मुसलमानों के साथ-साथ अब तक दो सौ से अधिक हिंदुओं के शवों का भी अंतिम संस्कार कराया है।
    कोरोना संक्रमण के शुरूआती दौर में कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई , जिसमें परिजनों के शवों को लावारिस छोड़ जाने के बाद कई जगह मुसलमानों ने हिंदुओं के शवों का अंतिम संस्कार कराया। मुंबई का ‘बड़ा कब्रिस्तान’  यह काम पिछले तीन महीने से निरंतर कर रहा है। मुंबई के चंदनवाड़ी इलाके के इस कब्रिस्तान के प्रबंधन का ज़िम्मा ‘जामा मस्जिद मुंबई ट्रस्ट’ के पास है। करीब साढ़े सात एकड़ में फैले इस कब्रिस्तान के बारे में आवश्यक जानकारियां ‘जस्ट डायल’ से जुटाई जा सकती हैं। इसी कब्रिस्तान में बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त की मां व फिल्म तारिका नरगिस दत्त, हाजी मस्तान, याकूब मैनन सीखे कई जाने-पहचाने लोग दफन हैं। कब्रिस्तान में शवों के कफन-दफन के लिए ट्रस्ट के 70 कार्यकर्ता सक्रियता रूप से लगे हैं।

अंतिम संस्कार करने को पंडितों से सीखा
  जामा मस्जिद मुंबई ट्रस्ट के ट्रस्टी शोएब खतीब कहते हैं, ‘‘कोरोना संक्रमण से पहले उनका काम सामान्य दिनों जैसा था। उसके बाद तो जैसे उनके काम का तरीका ही बदल गया। जो काम वे नहीं जानते, उन्हें वह भी करना पड़ रहा है। यहां तक कि वे हिंदू तौर-तरीके से अंतिम संस्कार भी करा रहे हैं। ट्रस्ट के सदस्य इकबाल ममदानी कहते हैं कि इसके लिए वे पंडितों से मिले। श्मशान घाटानों में जाकर पता किया।

परिजन शव छोड़ भाग जाते हैं
  दरअसल, इसकी नौबत इस लिए आई कि कोरोना संक्रमण की शुरूआत में इतना भय था कि लोग अपने परिजनों को दफ़नाने या अंतिम संस्कार से बचते थे। इस बीच दो मुसलमानों के जलाने की खबर आने पर ट्रस्ट को लगा कि मुसलमान हो या हिंदू, उनके अंतिम संस्कार उनके मजहबी तौर-तरीके से होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने मुंबई महानगर पालिका, महाराष्ट्र पुलिस और अस्पतालों से संपर्क किया। अस्पतालों में मौत के बाद जो लोग अपने परिजनों के शव लेने नहीं आते, ट्रस्ट उनका अंतिम संस्कार कराने लगा। ‘बड़ा कब्रिस्तान’ में कोविड से मरने वाले मुसलमानों के लिए सात सौ कब्रों की जगह सुरक्षित रखी गई है। कब्रिस्तान में कोरोना रोगियों के शव लाने के लिए गेट नंबर दस को रिजर्व किया गया है। यह गेट आबादी से दूर  है।

अस्पताल की आग्रह पर अंतिम संस्कार
   ट्रस्ट के सदस्य इकबाल ममदानी बताते हैं कि शुरूआत में वे केवल मुसलमानों के शवों का अंतिम संस्कार करते थे। बाद में बीएमसी और अस्पतालों ने उनसे हिंदुओं के शवों के अंतिम संस्कार का आग्रह किया। तब कब्रिस्तान के कार्यकर्ताओं को इसके लिए ट्रेनिंग दी गई। पंडितों से मिलाया गया। श्मशान घाट जाकर रीति-रिवाजों की जानकारी ली गई। ममदानी बताते हैं कि उनके लिए यह नई चुनौती थी, जिसे कबूल की गई। अब लोग खुद ही उनसे शवों के अंतिम संस्कार के लिए संपर्क करने लगे हैं। पहले और अब में अंतर सिर्फ इतना है कि लोग अपनी मौजदूगी में परिजन के शवों का श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार कराते हैं। इसके लिए जब दूर-दराज के लोगों ने ‘बड़ा कब्रिस्तान’ से संपर्क करना शुरू किया तो बीएमसी को हस्ताक्षेप कर कहना पड़ा कि यह व्यवस्था केवल मुंबई के लोगों के लिए है।

शवों का दिला रहे अधिकार

  पत्रकार कमर अंसारी से बातचीत में शोएब खतीब कहते हैं कि कोरोना को लेकर भय कम नहीं हुआ है। लोग अपने परिजनों का शव लेने से अभी भी कतराते हैं। कई तो अपने मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद मोबाइल बंद कर लेते हैं। मरीज की मौत के बाद उसके परिजनों से संपर्क करने के लिए उनके घर जाना पड़ता है। अभी मुंबई में कोरोना का पूरा जोर है। ‘मुबई मीरर’ की तीन जुलाई की रिपोर्ट के अनुसार, देश की इस आर्थिक राजधानी में कोरोना संक्रमितों की संख्या 80, 262 पहुंच गई है। यहां इसे 4,686 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। ऐसी चिंताजनक स्थिति को देखते हुए शवों के अंतिम संस्कारण, कब्रिस्तान की देखभाल और कब्रों की खुदाई में लगे लोगों की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा जा रहा है। पीपीई किट में रहकर वे अंतिम संस्कारण करते हैं। इससे पहले शवों को सेनेटाइज किया जाता है। कोविड से होने वाली मौतों के शवों के अंतिम संस्कार के बदले  पैसे नहीं लिए जाते। शोएब खतीब कहते हैं, जीवित लोगों की तरह ही शवों के भी कुछ अधिकार होते हैं। वे लोग शवों का बाइज्जत अंतिम संस्कार कराकर उन्हें उनका हक दिला रहे हैं।

नोट :

नोटः वेबसाइट आपकी आवाज है। विकसित व विस्तार देने तथा आवाज की बुलंदी के लिए आर्थिक सहयोग दें। इससे संबंधित विवरण उपर मंें ‘मेन्यू’ के ’डोनेशन’ बटन पर क्लिक करते ही दिखने लगेगा।
संपादक