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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991: कोर्ट विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ को न दे महत्व

ब्यूरो रिपोर्ट
दिन सोमवार। तारीख 15 जून। #कोरोना के कुल मामले 11,505और मरने वालों की संख्या 325। #भारत_कोविड 19 यानी #कोरोनासंक्रमण के मामले में #विश्व में चौथे नबर पर है। चिकित्सा जगत ने संकेत दिए हैं कि अगले महीने यानी जुलाई के आखरी दिनों में स्थिति और बिगड़ सकती है। इस आशंका के मददेनजर तकरीबन सारी प्रदेश सरकारोंने अपने सूबे की सीमाएं फिर से सील कर दी हैं। #दिल्ली के मुख्यमंत्री #अरविंद_केजरीवाल को लगता है कि जुलाई-अगस्त में देश की राजधानी की हालत इतनी बदतर हो जाएगी कि मरीजों को रखने के लिए जगह कम पड़ जाएगी। यह सब इसलिए बता रहा हूं कि जब देश इतने विकट दौर से गुजर रहा है, तो कोई ऐसा भी है, जो #मंदिर_मस्जिद_विवाद छेड़कर #संक्रमण_नियंत्रण के मूल मुददे से देश को भटकाना चाहता है। जाहिर सी बात है ये वे लोग हो सकते हैं जो या तो कोरोना संक्रमण के अनियंत्रित होने से सरकार को आलोचनाओं से बचाना चाहते हैं या जिनका एकमात्र काम है समाज में नफरत फैलाना। ऐसे लोगों ने हफ्ता भर पहले उस दिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ‘#प्लेसेज_ऑफ_वर्शिप_एक्ट 1991’’ की दोबारा व्याख्या करने की मांग की, जब पहली बार देश में  कोरोना के एक दिन में नौ हजार से अधिक मामले सामने आए। याचिका #विश्वभद्र_पुजारी_पुरोहित_महासंघ की ओर से दायर की गई है।



पहले एक्ट के बारे में
अयोध्या की बाबरी मस्जिद को लेकर जब 1991 में हिंदुत्ववादी संगठनों का आंदोलन चरम पर था, तब त्तकालीन #प्रधानमंत्री_नरसिम्हा_राव ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप कानून 1991 लाकर #बनारस और #मथुरा की #प्राचीन_मस्जिदों को विवादों से दूर रखने की कोशिश की थी। इस बारे में अधिनियम की धारा 4 ;1द में कहा गया हैं किए  घोषित किया जाता है कि 15 अगस्तए 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज और भविष्य में भी उसी का रहेगा।
मगर विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने #सुप्रीम_कोर्ट में याचिका दायर कर इसमें बदलाव की मांग की है। वह इस कानून की दुबारा व्याख्या चाहता है ताकि मथुरा-काशी के मंदिरों से लगती प्राचीन मस्जिदों का हश्र भी #अयोध्या की बाबरी मस्जिद जैसा किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अब बाबरी मस्जिद हिंदुओं के कब्जे में है।

-जमीयत के आगे आने का मतलब

महासंघ की याचिका पर सुनवाई न की जाए, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में #जमीयत_उलेमा_ए_हिंद ने भी एक याचिका दायर की है। हालांकि, यहां कुछ सवाल जमीयत से भी पूछे जा सकते हैं। उन्होंने किस हैसियत से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली है ? क्या वे #भारत_के_मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं ? यदि नहीं तो ऐसी याचिका दायर करने से पहले जमीयत ने देश के #मुख्य_इस्लामिक_संगठनों से राय-विचार करना क्यों जरूरी नहीं समझा ? क्या पता कई ऐसी कीमती राय सामने आती, जिसकी मारक क्षमता बेहद गहरी होती।

विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ के बारे में

याचिका से सुर्खियों में आए इस संगठन की बहुत छानबीन के बाद भी पता नहीं चला कि इस संगठन को कौन लोग चलाते हैं ? इसे विश्व भर के पंडा-पुजारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला बताया जा रहा है, पर इसका दफ्तर कहां-कहां हैं ? किस देश में इसके कौन अध्यक्ष-सचिव हैं, पूरा गूगल छानमारा, कहीं कुछ नहीं मिला। इस बीच ‘#भास्कर अखबार’’  में  2018 में छपी एक खबर हाथ लगी, जिसके अनुसार भारत में ‘‘पुरोहित महासभा’’ नाम से एक संठन जरूर है और इसके संयोजक #पंडित_हरिशंकर_पाठक हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने से संबंधित छपी खबरों में भी विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ पर कहीं कोई जानकारी नहीं मिली। कोरोना काल से पहले इस संगठन का किसी ने नाम सुना हो, कोई सबूत नहीं मिले। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोरोना से ध्यान भटकाने के लिए किसी कागजी संगठन की यह कोशिश है ? सुप्रीम कोर्ट क्यों ऐसे कागजी संगठन को तरजीह दे या इसकी याचिका पर सुनवाई करे ? एक मंदिर आंदोलन ने पहले ही देश के दो #प्रमुख_समुदाय के बीच गहरी खाई कर दी है, यदि विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ को कोर्ट में महत्व मिला तो कोरोना संकट जाने के बाद नया विवाद खड़ा होगा, जो आर्थिक तंगी से जूझते भारत के हित में कतई नहीं। #REJECTPUJARIPUROHITAPPLICATION

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