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विश्व की ऐतिहासिक धरोहर ‘ Hagia Sophia ’ नमाजियों के लिए खुली, 85 वर्षों का संघर्ष आया काम

ब्यूरो रिपोर्ट, इस्तांबुल।
तमाम विरोधों के बावजूद 85 वर्षों बाद तुर्की के शहर इस्तांबुल का प्राचीन संग्रहालय ‘आया सोफिया‘ नमाजियों के लिए खोल दिया गया। लंबे अर्से बाद इस ऐतिहासिक इमारत से अजान की आवाज गूँजी तथा नमाज पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ । संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन   (UNESCO)   ने इसे 1972 की विश्व धरोहर संधि का उल्लंघन बताया है।



  बहरहाल, तुर्की सहित विभिन्न मुस्लिम देशों के लोग इस्तांबुल के इस ऐतिहासिक इमारत को 1935 से पहले की शक्ल में देखने को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे थे। वर्षों बाद उनका संघर्ष सफल रहा। 10 जुलाई को इस्तांबुल हाई कोर्ट ने इमारत को नमाजियों के लिए खोलने की इजाज़त दे दी।  उल्लेखनीय है कि ‘आया सोफिया’, जिसे लातिनी भाषा में ‘सेंकटा सोफिया’ कहते हैं- डेढ़ हजार वर्ष पुराना ऑर्थोडॉक्स चर्च है। एक संघर्ष के बाद सम्राट उस्मान बिजान्तिायों ने 1435 में इसपर कब्जा कर इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था। तब से 1934 तक यहां नियमित नमाज होती रही। मगर विश्व बिरादरी के दबाव में आकर तुर्की शहंशाह अतातुर्क ने ऐतिहासिक इमारत को 1935 में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया। तब से तुर्कियों एवं दूसरे मुस्लिम देशों के लोग भवन को दोबारा मस्जिद में बदलने की मांग कर रहे थे। इसके लिए सड़क से कोर्ट तक लड़ाई लड़ी गई। परिणास्वरूप  इस्तांबुल हाई कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए यहां न केवल नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी, इसे दोबारा मस्जिद के तौर पर इस्तेमाल का अधिकार भी दे दिया। तुर्की के राष्ट्रपति तैयथ एरदोआन ने  इससे संबंधित आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसके बाद शुक्रवार से यहां नमाजियों के आने का क्रम शुरू हो गया। तुर्की सरकार के इस फैसले का विश्व के तमाम मुसलमानों ने स्वागत किया है। इस बारे में सोशल मीडिया पर तुर्की शासन की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं।


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-आपत्ति नहीं आई काम
तुर्की सरकार के इस फैसले पर यूनेस्को सहित विभिन्न देशों को ऐतराज है। यूनेस्को ने ऐतिहासिक इमारत को बतौर मस्जिद इस्तेमाल से पहले विचार-विमर्श की सलाह दी थी। अब वह इसे संधि का उल्लंघन बता रहा है। यूनेस्को और दूसरे देश चाहते हैं कि ‘आया सोफ़िया‘ का दर्जा विश्व धरोहर सूची में एक संग्रहालय के तौर पर बना रहे। इसे बायेज़ेन्टाइन ईसाई वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। कोर्ट का फैसला आने के बाद अब यह इमारत तुर्की के धार्मिक निदेशालय के अधीन होगी। यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने फ़ैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि एक संग्रहालय के रूप में इस इमारत का दर्जा  धरोहर के सार्वभौमिक मूल्यों को प्रदर्शित करता है। यह न केवल वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है, सदियों से योरोप व एशिया के बीच सम्पर्कों का अनूठा प्रमाण भी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संधि का हवाला देते हुए कहा कि इमारत की किसी भी तरह की तब्दीली पर विश्व धरोहर समिति पड़ताल कर सकती है। यूएन एजेंसी ने कहा कि ‘सोफ़िया‘ एक मज़बूत प्रतीकात्मक, ऐतिहासिक और सार्वभौमिक मूल्य को दर्शाती है। बिना विमर्श इसमें तब्दीली नहीं की जा सकती। यूएन एजेंसी की संस्कृति से जुड़े मामलों की सहायक महासचिव अर्नेस्टो ओटोन ने कहा कि यूनेस्को के साथ विचार-विमर्श के बिना इस तरह के फ़ैसले लागू किए जाने से बचना चाहिए।

कुछ बातें ‘आया सोफिया’ के बारे में

-चौथी शताब्दी में गिरजा का निर्माण
-इसकी तबाही के बाद कस्नटियन पन्ना के बेटे कस्नटियस ने पुनर्निमाण कराया
-सन 532 में चर्च दंगों और हंगामों की भेंट चढ़ गया
-फिर जस्टेनिन पन्ना ने इसका निर्माण कराया। 27 दिसंबर 537 को निर्माण कार्य पूरा हुआ
-यह एक हजार से अधिक सालों तक दुनिया के सबसे बड़े चर्चों में शुमार होता रहा
– आया सोफिया कई बार दंगों का शिकार हुआ
– 558 में इसका गुंबद गिरा दिय गया
– 989 के भूकंप में भी यह क्षतिग्रस्त हुआ
– 1953 में उस्मान साम्राज्य में शामिल होने के बाद इसे मस्जिद बना दिया गया
-प्रिंस सुलेमान इसके वास्तुशिल्प से प्रभावित थे -उस्मान के दौर में मस्जिद में कई निर्माण कार्य किए गए जिनमें मिनारें  शामिल हैं
-इसके सुंदर गुंबद का व्यास 102 फीट व 53 मीटर उंचा है
-स्रोतः विकिपीडिया, तस्वीरें सोशल मीडिया


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संपादक