Naroda Gam नरसंहार में मारे गए थे 11 मुसलमान, सभी 64 आरोपी बरी
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,अहमदाबाद
कहावत है अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान. गुजरात दंगे के मामले में ऐसा ही हो रहा है. मुसलमानों का नरसंहार करने वाले धीरे-धीरे सारे बरी हो रहे हैं. कुछ आरोपियों के जेल से बरी होने मंे अदालतों के फैसलों का रोल रहा, कई आरोपी गुजरात की बीजेपी सरकार की मेहरबानी से बाहर आ गए. इसी क्रम में अहमदाबाद के नरोदा गाम में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे जाने के दो दशक से अधिक समय बाद, यहां की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को मामले के सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया. इसमें गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और पूर्व बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी भी शामिल हैं.
एसके बक्शी की अहमदाबाद स्थित अदालत, विशेष जांच दल (एसआईटी) के मामलों के विशेष न्यायाधीश ने 27 फरवरी, 2002 को साबरमती ट्रेन नरसंहार से राज्यव्यापी दंगों के दौरान हुए सबसे भयंकर नरसंहारों के सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया.नरोदा गाम मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने की थी.
संक्षिप्त फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद, कुछ आरोपियों ने अदालत के बाहर जय श्री राम और भारत माता की जय के नारे लगाए.बरी किए गए लोगों में गुजरात सरकार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व मंत्री कोडनानी (67), विहिप के पूर्व नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं.
इस मामले में कुल 86 अभियुक्त थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई, जबकि एक को उसके खिलाफ अपर्याप्त साक्ष्य के कारण सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 169 के तहत अदालत ने पहले आरोपमुक्त कर दिया था.सीआरपीसी की धारा 169, साक्ष्य की कमी पर अभियुक्त की रिहाई से संबंधित है.
कोडनानी, जो तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थीं, ने अपने बरी होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, आज सच में सच्चाई की जीत हुई है.अधिवक्ता चेतन शाह, जिन्होंने 86 अभियुक्तों में से 82 का प्रतिनिधित्व किया, ने कहा कि उन्होंने सुनिश्चित किया कि निर्दोषों को बरी कर दिया जाए, जिसके लिए उन्होंने अदालत में 7,719 पृष्ठों में एक लिखित तर्क प्रस्तुत किया.
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता शहशाद पठान ने कहा कि बरी करने के आदेश को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी.उन्हांेने कहा,“हम उन आधारों का अध्ययन करेंगे जिनके आधार पर विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करने और आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया.
ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़ितों को न्याय से वंचित कर दिया गया है. सवाल यह है कि पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में 11 लोगों को किसने जलाया? बरी किए गए आरोपियों में से एक ने कहा कि विशेष अदालत के फैसले ने उन लोगों को बेनकाब कर दिया है जिन्होंने उसके जैसे निर्दोषों को फंसाने की साजिश रची थी. अदालत ने मामले के सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अपना आदेश पारित किया है. सच की हमेशा जीत होती है, आज फिर साबित हो गया.
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी विधानसभा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस दंगा), 120 (बी) (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था. 153 (दंगों के लिए उकसाना) और दूसरे मामले भी दर्ज किए गए थे.
एक दिन पहले गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगाने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोडा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क उठे थे. कम से कम 58 ट्रेन यात्री, जिनमें ज्यादातर कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे, जलकर मर गए.
तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, जो अब केंद्रीय गृह मंत्री हैं, सितंबर 2017 में कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में ट्रायल कोर्ट में पेश हुए थे. भाजपा की पूर्व मंत्री कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि शाह को यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थीं, न कि नरोडा गाम में, जहां नरसंहार हुआ था.
छह अलग-अलग न्यायाधीशों ने मामले की अध्यक्षता की है. 2010 में जब मुकदमा शुरू हुआ, तब एस एच वोरा पीठासीन न्यायाधीश थे. बाद में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया. बाद में मामले को संभालने वाले विशेष न्यायाधीशों में ज्योत्सना याग्निक, केके भट्ट और पीबी देसाई शामिल हैं, जो सभी मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सेवानिवृत्त हो गए.
अधिवक्ता चेतन शाह ने कहा कि विशेष न्यायाधीश एमके दवे का मुकदमे के समापन से पहले उनका तबादला कर दिया गया.कोडनानी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में गोधरा के बाद हुए दंगों से संबंधित मामले में निचली अदालत ने अलग से दोषी ठहराया और 28 साल की जेल की सजा सुनाई, जहां 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी. बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया.
नरोदा गाम नरसंहार 2002 के उन नौ प्रमुख सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक है, जिसकी जांच विशेष अदालतों ने की है.