2020 Delhi riots जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से 6 और की जमानत मंजूर
प्रशासन को जवाबदेह बनाए बगैर देश में दंगों पर क़ाबू पाना मुमकिन नहींः अरशद मदनी
जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से दिल्ली दंगों में गिरफ्तार मुस्लिम आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं की मंजूरी का सिलसिला जारी है। पिछले दो दिनों में कड़कड़डूमा सेशन कोर्ट ने आरोपी शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम और मुहम्मद आबिद को एफ.आई.आर. नंबर 117/20 (दयालपुर पुलिस स्टेशन) और अरशद कय्यूम, शाह आलम को एफ.आई.आर. नंबर 98/93/2020 मुकदमे में शर्तों के साथ ज़मानत पर रहा किए जाने के निर्देश जारी किए।
जमीअत उलमा-ए-हिन्द की अब तक दिल्ली हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट से 16 जमानत याचिकाएं मंजूर हो चुकी हैं। जमीअत उलमा-ए-हिंद ने दिल्ली दंगों में फंसाएगे सैकड़ों मुसलमानों के मुकदमे लड़ने का बीड़ा उठाया है। अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी के विशेष आदेश पर आरोपियों की ज़मानत पर रिहाई के लिए सेशन कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक कानूनी प्रयास जारी हैं। आरोपी शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम और मुहम्मद आबिद को ऐडीशनल सेशन जज विनोद यादव ने 25 हज़ार रुपये के निजी मुचल्के पर ज़मानत पर रिहा किए जाने के आदेश जारी किए।
सरकारी वकील ने आरोपियों की ज़मानत पर रिहाई का कड़ा विरोध करते हुए अदालत को बताया कि आरोपियों की ज़मानत पर रिहाई से शांति व्यवस्था भंग हो सकती है, लेकिन अदालत ने बचाव पक्ष के वकीलों के तर्कों से सहमति जताते हुए आरोपियों की ज़मानत याचिकाएं मंजूर कर लीं। जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से आरोपियों की पैरवी एडवोकेट ज़हीरुद्दीन बाबर चैहान। उनके सहायक वकील एडवोकेट दिनेश ने की। अदालत को बताया कि इस मामले में पुलिस की ओर से चार्ज शीट दाखिल की जा चुकी है । आरोपियों के खिलाफ इल्जामात पर डायरेक्ट सबूत नहीं हैं, इस लिए उन्हें ज़मानत पर रहा किया जाना चाहीए। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता के धारा 147, 148, 149, 436, 427 (खतरनाक हथियारों से दंगा फैलाना, आग लगाने वाले पदार्थों या आग से घरों को नुक़सान पहुंचाना, गैरक़ानूनी तौर पर जमा होना) और पी.डी.पी.पी. ऐक्ट की धारा 3, 4 (सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाने वाले पदार्थों से नुकसान पहुंचाना) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
आरोपी पिछले तीन महीने से अधिक समय से जेल में बंद हैं। अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इन सभी लोगों की ज़मानत याचिकाओं की मंजूरी पर संतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि केवल ज़मानत पर रिहाई ही हमारा लक्ष्य नहीं। हम चाहते हैं कि दिल्ली दंगों में जिन लोगों को जबरन आरोपी बनाकर जेल पहुंचा गया , उनको कानूनी तौर पर न्याय मिले। उनकी बाइज़्ज़त रिहाई हो। उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगों से संबंधित अंग्रेज़ी के कुछ प्रसिद्ध अखबारों में सभी तथ्य सामने आचुके हैं । किस तरह इसकी साजिश रची गई। इसमें कौन कौन लोग शामिल थे। किस तरह एक विशेष धर्म के मानने वालों को योजनाबद्ध तरीक़े से उन दंगों में निशाना बनाकर तबाह किया गया। मगर अति चिंताजनक बात है कि दिल्ली पुलिस ने जांच के नाम पर एकतफा कार्रवाई करके उन्ही लोगों को जुर्म के कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया जो इन दंगों का असल शिकार थे।
उन्होंने यह भी कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद की क़ानूनी मदद का असल उद्देश्य यही है कि सभी निर्दोष लोगों को यथासंभव क़ानूनी मदद पहुंचा कर न्याय दिलाया जाए। इस सिलसिले में जमीअत उलमा-ए-हिंद को लगातार सफलता प्राप्त हो रही है। हमारे वकीलों का प्रयास रंग ला रहा है जिसके नतीजे में महीनों से जेलों में बंद लोगों की जमानत की याचिकाएं सरकारी वकील के कड़े विरोध के बावजूद मंजूर हो रही हैं। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद पिछले 70 बरसों से धर्म के आधार पर हुई हिंस, अत्याचार और दंगों के खिलाफ ऐसा सख्त कानून बनाने की मांग कर रही है जिसमें जिला प्रशासन को जवाबदेह बनाया जाये। मेरा लम्बा अनुभव यह है कि एस.एस.पी. और डी.एम. को अगर यह खतरा रहे कि दंगों की स्थिति में खुद उनकी अपनी गर्दन में फंदा पड़ सकता है तो किसी के चाहने से भी कहीं दंगा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि प्रशसान को जिम्मेदार बनाने के साथ साथ ऐसे कानून की भी आवश्यकता है जो राहत, रीलीफ और पुनर्वास के कामों में एकरूपता लाए और अधिकारियों को इसका पाबंद बनाए, फिलहाल ऐसा कोई कानून देश में मौजूद नहीं है जिसके कारण से दंगा पीड़ितों के मुआवज़े में बड़े पैमाने पर असमानता रहती है। उन्होंने बताया कि दिल्ली दंगों में गैरक़ानूनी तरीक़े से फंसाए गए बेगुनाहों की क़ानूनी मदद के लिए जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सीनीयर और प्रसिद्ध वकीलों पर आधरित एक पैनल गठित किया जो सैंकड़ों बेगुनाह लोगों के मुकदमों की पैरवी कर रहा है।
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संपादक