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NCERT की पुस्तकों से मुगल सम्राटों को बाहर करने पर 250 इतिहासकारों और शिक्षाविदों ने खोला मोर्चा, बोले-संविधान विरूद्ध विभाजनकारी कार्रवाई है

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

एनसीईआरटी द्वारा इतिहास की पुस्तकों से मुगल सम्राटों को निकाल बाहर करने पर रोमिला थापर, जयंती घोष, मृदुला मुखर्जी, अपूर्वानंद, इरफान हबीब और उपिंदर सिंह सहित 250 इतिहासकार और शिक्षाविद की भवें तन गई हैं. उनका कहना है कि एनसीईआरटी ने ऐसा कर के विभाजनकारी और पक्षपातपूर्ण काम किया है. उनकी दलीलांे से एनसीईआरटी की मौजूदा नीति को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.

इतिहासकार और शिक्षाविद ने कहा कि स्कूल की पाठ्य पुस्तकों से अध्यायों को हटाना विभाजनकारी और पक्षपातपूर्ण कदम है. इतिहासकारों ने इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने हाल में इतिहास की किताबों में कुछ अंशों को हटा दिया है. खासकर 12 वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक से मुगलों और 11 वीं कक्षा की किताब से उपनिवेशवाद से संबंधित कुछ अंश हटाए गए हैं. इसके अलावा गांधी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ तथ्य को भी पुस्तकों से हटाया गया है.

 एनसीईआरटी की इस कार्रवाई के विरोध में अब रोमिला थापर, जयति घोष, मृदुला मुखर्जी, अपूर्वानंद, इरफान हबीब और उपिंदर सिंह समेत करीब 250 शिक्षाविद व इतिहासकार ने मोरचा खोल दिया है. उन्होंने एक हस्ताक्षर अभियान के द्वारा एनसीईआरटी के इस कदम पर अपना विरोध जताया. इन इतिहासकारों का कहना है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों से इन अध्यायों को हटाना सरकार के पक्षपातपूर्ण एजेंडे को उजागर करता है.

इतिहासकारों ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह निर्णय भारतीय उपमहाद्वीप के संविधान व संस्कृति के खिलाफ है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. वहीं विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षकों के संगठन डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट का कहना है कि यदि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को भारतीय स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के भक्षण की खुली छूट इसी तरह से दी जाएगी, तो इससे भारतीय लोकतंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होगा.

वहीं एनसीईआरटी का कहना है कि स्कूलों की किताबों में किया गया बदलाव किसी को खुश या फिर नाराज करने के लिए उद्देश्य से नहीं किया गया है. एनसीईआरटी के चीफ दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि यह बदलाव विशुद्ध रूप से एक्सपर्ट एडवाइस के आधार पर किए गए हैं. उनका कहना है कि एनसीईआरटी अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर सभी कक्षाओं के लिए नई पुस्तकें लाने भी जा रहा है. फाउंडेशन स्तर पर नई पुस्तकें बनाने का कार्य पूरा भी हो चुका है.

एनसीईआरटी चीफ के मुताबिक, यह बदलाव केवल इतिहास की किताब में ही नहीं किया गया, बल्कि हर विषय में से कुछ सामग्री कम की गई है, ताकि परीक्षा के दौरान छात्रों का बोझ कम हो सके और उन्हें कम सवालों का उत्तर देना पड़े. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि पुस्तकों में किया गया बदलाव किसी खास व्यक्ति, घटना, कालखंड या संस्था आधारित नहीं है, बल्कि इसमें महात्मा गांधी, निराला और मुगल सभी कुछ शामिल हैं.

एनसीईआरटी का कहना है कि यह कोई बहुत बड़े बदलाव नहीं हैं. दूसरी बात यह है कि यह सभी बदलाव बीते वर्ष किए गए थे. सभी ने देखा है कि तब कोरोना की क्या स्थिति थी. छात्रों को पढ़ाई का भारी नुकसान हुआ था. न केवल स्कूल स्तर पर, बल्कि देश और दुनिया भर में विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी स्कूल कॉलेज बंद रहने के कारण छात्रों को पढ़ाई का नुकसान झेलना पड़ा. ऐसे में एनसीईआरटी ने विशेषज्ञों की राय के आधार पर छात्रों का कोर्स कुछ काम करने का निर्णय लिया, ताकि लंबे समय बाद स्कूल आए छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम रहे.

हालांकि एनसीईआरटी के चीफ ने अब तक इसका खुलासा नहीं किया है कि कोरोना के बाद जब जिंदगी पूरी तरह से पटरी पर लौट आई है, स्कूलों में पहले की तरह कक्षाएं लग रही हैं और परीक्षाएं आॅफ लाइन ली जा रही हैं तो अब तक कोरोना काल में हटाए गए चैप्टर दोबारा क्यों नहीं शामिल किए गए ? एनसीईआरटी ने उन एक्सपोर्ट के नामों का भी खुलासा नहीं किया है जिनके सुझाव पर मुगल या गांधी जी और आरएसएस से संबंधित चैप्टर हटाए गए हैं. संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि इन एक्सपर्ट्स की सूची में वही नाम शामिल हैं जो हमेशा से मुगलों का विरोध और आरएसएस का समर्थन करते रहे हैं. नाम उजागर होते ही एनसीईआरटी की कलई खुल जाएगी. वैसे भी आरएसएस अभी पूरी तरह सांस्कृतिक युद्ध में लिप्त है. अखंड भारत और हिंदू राष्ट्र उसी सांस्कृतिक जंग का हिस्सा है, जिसे मुद्दा बनाकर अभी पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है. इस खेल में कई सफेदपोश मुस्लिम चेहरे भी शामिल हैं. बहरहाल, अब यह देखना है कि एनसीईआरटी की मौजूदा नीति के खिलाफ उठखड़े 250 इतिहासकारों एवं शिक्षाविदों की मोर्चाबंदी का क्या परिणाम निकलता है.