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9 साल बाद बरी हुए 3 बेगुनाह मौलाना, झूठे आतंकवाद के आरोपों ने उजाड़ दी जिंदगी

✍️ मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

किसी निर्दोष व्यक्ति के माथे पर ‘आतंकवादी’ का ठप्पा लगाना आसान है, लेकिन जब सालों बाद अदालत उसे बेगुनाह करार देती है, तब उसकी तबाह हो चुकी ज़िंदगी की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता—न कोर्ट, न पुलिस, और न ही सरकार। हमारे देश में फर्ज़ी आतंकवाद के मामलों में फंसाए गए मुस्लिम युवाओं के कई उदाहरण सामने आते रहे हैं। जमशेदपुर से हाल ही में ऐसा ही एक मामला उजागर हुआ, जहां तीन निर्दोष मुस्लिम मौलानामौलाना कलीमुद्दीन मुजाहिद, मौलाना मंसूर और अब्दुल शामी को नौ साल बाद अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया।

आखिर क्या था पूरा मामला?

यह मामला 2016 का है, जब तत्कालीन बिष्टुपुर थाना प्रभारी जीतेंद्र सिंह की शिकायत पर इन तीनों मौलानाओं के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत के महज शक के आधार पर इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने इन तीनों पर आतंकवादी संगठन से जुड़े होने और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया, लेकिन 9 साल बाद कोर्ट में एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई।

कैसे साबित हुई बेगुनाही?

केस का ट्रायल शुरू होने के बाद 16 गवाहों की गवाही दर्ज कराई गई, लेकिन कोई भी इन तीनों के आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने का प्रमाण नहीं दे सका। इसके बाद अदालत ने फैसला सुनाते हुए मौलाना कलीमुद्दीन, मौलाना मंसूर और अब्दुल शामी को बाइज्जत बरी कर दिया।

बेगुनाह साबित होने के बाद भी टूटी जिंदगी

  • मौलाना कलीमुद्दीन मुजाहिद को पहले ही जमानत मिल चुकी थी, लेकिन मौलाना मंसूर और अब्दुल शामी ने पूरे 9 साल जेल में गुज़ारे।
  • इनकी रिहाई के बाद कोई नौकरी देने को तैयार नहीं है।
  • समाज में इन्हें आज भी संदेह की नजर से देखा जाता है।
  • परिवार बर्बाद हो चुके हैं, आर्थिक संकट गहरा गया है।

पुलिस पर उठे सवाल, सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा

इस मामले के सामने आने के बाद पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था की भारी आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं और बुद्धिजीवियों ने इसे पुलिस की फर्जी कार्रवाई करार दिया है।

जफरूल इस्लाम खान ने पुलिस प्रशासन पर उठाए सवाल

मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जफरूल इस्लाम खान ने इस फैसले पर ट्वीट किया:

“जमशेदपुर में तीन लोग आतंक के आरोपों से बरी…. 9 साल बाद! इस तरह पुलिस बेगुनाहों को फ़र्जी आतंकवाद के आरोपों में फंसाती है। हमेशा की तरह, राज्य के आतंक के पीड़ितों को कोई मुआवज़ा नहीं मिलेगा और अपराधी पुलिसकर्मियों को सज़ा नहीं मिलेगी… क्योंकि इससे पुलिस का मनोबल प्रभावित होगा!!!”

सुभाषिनी अली बोलीं – ‘9 साल बहुत होते हैं, लेकिन सरकार भरपाई नहीं करेगी’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने भी इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा:

“9 साल बहुत होते हैं। लेकिन सरकार इसकी भरपाई करने की बात सोचेगी भी नहीं।”

पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे कई मामले

भारत में यह कोई पहला मामला नहीं है, जब बेगुनाह मुसलमानों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाया गया हो और सालों बाद बरी कर दिया गया हो।

सैफ अली खान का मामला

  • अभिनेता सैफ अली खान (इस नाम से जुड़े एक शख्स, अभिनेता नहीं) को भी संदिग्ध आतंकी बताकर मीडिया में उसकी तस्वीरें चलाई गईं।
  • नतीजा यह हुआ कि उसकी शादी टूट गई और नौकरी से निकाल दिया गया।
  • बरी होने के बाद भी उसे कोई नौकरी देने को तैयार नहीं था।

क्या सरकार और पुलिस मुआवजा देगी?

अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इन बेगुनाहों के बर्बाद हुए सालों की भरपाई करेगी?

  • क्या पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई होगी, जिन्होंने झूठे केस बनाए?
  • क्या सरकार इन निर्दोषों को मुआवजा देगी?

इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि किसी निर्दोष को आतंकवादी बताकर उसकी जिंदगी तबाह कर देने की पुलिस की कार्यप्रणाली कब बदलेगी?

निष्कर्ष

  • बिना सबूत के झूठे आतंकवाद के आरोपों में फंसाने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं।
  • बरी होने के बाद भी पीड़ितों की ज़िंदगी सामान्य नहीं हो पाती।
  • मुआवजा या पुनर्वास की कोई नीति सरकार के पास नहीं है।
  • सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी ऐसे मामलों में न्याय की मांग कर रहे हैं।

इस घटना ने न्यायपालिका, पुलिस प्रशासन और सरकार पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि क्या बेगुनाहों की जिंदगी उजाड़ने वाले दोषी पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई होती है या हमेशा की तरह यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

🔹 #FakeTerrorCases #Jamshedpur #MuslimLivesMatter #JusticeForInnocents

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