धारावी में कितने मुसलमान हैं ? जिनपर है उजड़ने का खतरा
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में रहने वाले मुसलमानों के सिर पर उजड़ने का खतरा मंडराने लगा है. इसके पीछे वजह है भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले अरबपति गौतम अडानी की कंपनी अडानी प्रोपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड की 23,000 करोड़ रूपये की धारावी पुनर्विकास परियोजना. जाहिर है, जो कंपनी इतनी भारी-भरकम धन लगाएगी, वह झुग्गियों में रहने वालों को कैसे बर्दाश्त करेगी. धारावी में रहने वाले इस बात को समझ चुके हैं, इसलिए अपने आशियाने को बचाने के लिए सड़कों पर संघर्ष करने को उतर आए हैं.
हजारों की संख्या में यहां रहने वालों ने धारावी पुनर्विकास परियोजना का विरोध करने के लिए मुंबई की सड़कों पर प्रदर्शन किया और मुख्य विपक्षी दल उद्धव ठाकरे गुट की शिव सेना के नेतृत्व अरबपति गौतम अडानी के मुंबई कार्यालय तक मार्च किया. इन अंदोलनांे का धारावी पुनर्विकास परियोजना पर कितना प्रभाव पड़ेगा यह तो पता नहीं, पर धारावी में रहने वालों के उड़ने की संभावना बढ़ गई है.
Opposition-led protesters, numbering in the thousands, marched towards billionaire Gautam Adani’s Mumbai offices on December 16 to express their dissent against the ₹23,000 crore Dharavi Redevelopment Project, @iAbhinayD reportshttps://t.co/wGoTTIPGOM
— The Hindu (@the_hindu) December 16, 2023
प्राॅपर्टी की जानकारी देने वाली वेबसाइट मैजिक ब्रिक्स डाॅट काॅम की एक रिपोर्ट के अनुसार, अडानी प्रोपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड ने धारावी पुनर्विकास परियोजना ने 5069 करोड़ रूपये में यहां की 259 हेक्टेयर जमीन खरीदी है, जिसका विकास वह यूएई की कंपनी सेकलिंग टेकनोलाॅजी काॅरपोरेशन के साथ करने जा रही है. हालांकि इसका विवाद मुंबई हाई कोर्ट में चल रहा है.
मुंबई के दिल पर बसी है धारावी
धारावी मुंबई के बीचो बीच बसी है.मैजिक ब्रिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसे अंग्रेजों के शासनकाल में कॉलोनी की शक्ल दी गई. कहते हैं 18 वीं सदी में यहां एक गांव हुआ करता था. गांव में कोली जाति के लोग रहते थे. 19 वीं सदी में धारावी मंे कोलियों की संख्या बढ़ने से इसे ‘कोलीवाड़ा’ कहा जाने लगा. 1850 के बाद ब्रिटिश राज में यहां कुछ फैक्ट्रियां स्थापित की गईं. 1887 में धारावी में पहला चमड़ा उद्योग स्थापित हुआ. धीरे-धीरे आर्थिक रूप से कमजोर हिंदू और मुस्लिम यहां बसने लगे.1895 के बाद यहां गुजरात के माल ढुलाई करने वाले भी बसे. उसके बाद तो ऐसा सिलसिला बना कि यूपी, बिहार से काम की तलाश मुंबई आने वाले यहां बसने लगे.
स्वतंत्रता मिलने के बाद धारावी का कुछ विकास हुआ. 1950 में धारावी के विकास के लिए एक प्रस्ताव भी तैयार हुआ. 1960 में यहां धारी ऑपरेटिव सोसायटी स्थापित की गई. इसके तहत 300 फ्लैट और 100 दुकानों का निर्माण कराया गया. 20 वीं शताब्दी में 175 एकड़ धारावी झुग्गी बस्ती के लिए अधिग्रहण किया गया. तब यहां 2900 प्रति हेक्टेयर आबादी थी. अब तो स्थिति यहां की बहुत गंभीर है.
धारावी में कितने मुसलमान हैं ?
एक आंकड़े के अनुसार, धारावी की कुल आबादी मंे मुसलमानों की जनसंख्या तकरीबन 40 प्रतिशत है. बाकी 54 प्रतिशत में बड़ी आबादी हिंदुओं और 6 प्रतिशत ईसाईयों की है. धारावी में कुछ लोग बौद्ध धर्म के मानने वाले भी हैं. धारावी में रहने वाले अधिकतर मुसलमान छोटे कारोबारी हैं. उनकी छोटी-छोटी फैक्ट्रियां हैं, जिससे वे अपने परिवार का पेट तो पालते ही हैं अन्य लोगों के रोजगार का भी माध्यम हैं. धारावी में रहने वाले मोहम्मद इलियास भी यहां के एक कारोबारी हैं. उन्हांेने 1979 में 800 वर्ग फुट जमीन 4,000 रुपये में खरीदी थी.
इसके बाद उन्हांेने यहां निर्यातकों को कपड़ों की आपूर्ति करने वाली एक छोटी सिलाई की वर्कशाॅल खोल ली.विगत साल दिसंबर के महीने वह बतौर निर्यातक अपनी पहली विदेश यात्रा पर गए थे. इलियास कहते हैं, शुरुआत से अब तक उनका कारोबार करीब 3 करोड़ रुपये का हो जाता. एक हिंसा की वजह से उनकी बिजली मशीनें और सिले हुए परिधान जला दिए गए.’’ इस आफत से उबरे हैं तो इलियास को अब उजड़ने का खतरा मंडराने लगा है.
इसी तरह अबुल बका 1948 में धारावी आए थे. तब यहां दलदल था. उस समय यहां कुछ चमड़े के कारखाने और कई अवैध शराब की दुकानें थी. अब वह यहां बहुराष्ट्रीय जॉनसन एंड जॉनसन के लिए हर साल 1.75 करोड़ रुपये मूल्य का भेड़ की आंतों से बना सर्जिकल धागा बनाते और निर्यात करते हैं.
शुक्र है संसद की सुरक्षा तोड़ने वाले मुसलमान नहीं I Thankfully, it is not the Muslims who broke the security of the Parliament!
बाका कहते हैं, यहां के लोग आज जो कुछ भी हैं अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत. यहां के 99 प्रतिशत लोग स्व-निर्मित हैं. यही धारावी की सफलता का रहस्य भी है.432 एकड़ में फैली छह लाख की आबादी वाले धारावी में कई मध्यम आकार के भारतीय शहरों की तुलना में अधिक लोग रहते हैं.नेशनल स्लम डेवलपमेंट फेडरेशन से जुड़े ए. जॉकिन के मुताबिक, धारावी बॉम्बे के भीतर एक अलग महानगरीय शहर की तरह है. इसके दो-तिहाई लोग झोपड़ी के अंदर काम करते हैं.
यहां के लोगों का दैनिक कारोबार करीब 75 लाख रुपये का है. तमिल घरों से हर दिन हजारों गर्म इडली शहर के उडिपी रेस्तरां में सप्लाई की जाती है. गुजराती कुम्हार पीने के पानी के बर्तनों की आपूर्ति करते हैं, जबकि बिहारी परिवार हथकरघे पर लाखों डस्टर बनाते और बेचते हैं.
धारावी चिकी निर्माण के लिए भी मशहूर है. जॉकिन के अनुसार, यह गुड़ खाने वाले तमिलों और उत्तर प्रदेश के प्रवासियों के बीच काफी मशहूर है. कुछ दिनों के बाद शायद धारावी की ये बातें मात्र यादें बनकर रह जाएं. क्यों इसकी धरती पर ही अडानी की धारावी पुनर्विकास परियोजना उतरने वाली है.
धारावी ही क्यों, वसई विरार क्यों नहीं ?
अब सवाल उठता है कि यदि झुग्गी वाले इलाके को ही विकसित करना था तो धारावी क्यों, वसई विरार क्यों नहीं ? क्या इसलिए कि वसई विरार में 77.16 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की और उसमें भी मराठी हिंदुओं की है. 2011 की जनगणना के अनुसार, वसई विरार में मुस्लिम आबादी 9.03 है. इसके अलावा यहां ईसाई 8. 28, जैन 1.90, सिख 0.21 और बौद्ध धर्म मानने वाले 2.65 प्रतिशत हैं. वसई विरार में झुग्गियों की जनसंख्या 8,158 हैं जिसमें 35, 651 लोग रहते हैं. वैसे, इस इलाके में शहर की मात्र 2.92 प्रतिशत आबादी रहती है, जबकि विकास पूरे वसई विरार को जरूरत है.
वसई विरार की जगह धारावी को नहीं चुनने की एक वजह और भी है. हिंदूवादी संगठन इस इलाके में रहने वाले मुसलमानों को एक फूटी आंख नहीं सुहाते, इसलिए यहां हमेशा सांप्रदायिक तनाव बना रहता है. एक बार यहां सांप्रदायिक दंगा हो चुका है. 70 के दशक की शुरुआत में शिवसेना ने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ हिंसक अभियान चलाया था? लेकिन सेना धारावी में घुसने में विफल रही थी.एक टीवी दुकान के मालिक एन. बक्कियानाथन के मुताबिक, जब बंबई के बाकी हिस्सों में बड़े बंद और हिंसा होती थी, तब भी धारावी में कारोबार सामान्य होता था.
हिंदूवादी संगठनों की दखल से धारावी में सांप्रदायिकता बढ़ी
पुनर्विकास योजना के पूर्व निदेशक गौतम चटर्जी कहते हैं, मैंने हमेशा धारावी को सांप्रदायिक, भाषाई और क्षेत्रीय पूर्ण मित्रता के उदाहरण के रूप में रखा है.लेकिन यह पुरानी बाते हैं. विहिप और तमिलनाडु स्थित हिंदू मुन्नानी के देखल देने से धारावी का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ चुका है.एक बार पुलिस द्वारा 6 दिसंबर को सेना और भाजपा कार्यकर्ताओं को विजय जुलूस निकालने की अनुमति देने के बाद से यहां के भाईचारे में जो दरार पैदा हुआ वह बढ़ता ही गया.
जॉकिन के अनुसार, हिंसा में 750 से अधिक घरों को नुकसान पहुंचाया गया था. कपड़ा प्रसंस्करण इकाई के मालिक, 56 वर्षीय जी. चंद्रशेखरन को हिंदू दक्षिणपंथी द्वारा किए गए चमत्कार का वास्तुकार कहा जाता है.हिंदू मुन्नानी वीएचपी के साथ मिलकर धारावी में हर हफ्ते कम से कम दो बैठकें आयोजित करते हैं. इसके अलावा भाजपा प्रभावशाली कार्यकर्ताओं की भर्ती के लिए झुग्गियों की खाक छानती रहती है. पी.एस. थंगा पांडियन भाजपा के वार्ड अध्यक्ष रह चुके हैं. धारावी में भाजपा और वीएचपी का प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ा है.
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बावजूद इसके धारावी में मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत होना हिंदी संगठनों को कतई नहीं भाता. मुसलमानों के वोट भी बीजेपी या बीजेपी समर्थक पार्टियों को नहीं जाते. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत धारावी में विकास परियोजना लाई जा रही है, ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. आम लोगों को यही लगेगा कि धारावी का विकास किया जा रहा है. बहरहाल, यह तो समय ही बताएगा कि सच्चाई क्या है ?