उत्तराखंड और गुजरात के बाद अब असम में यूसीसी की तैयारी
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
भारतीय मुसलमानों की जीवन शैली सीमित करने को बीजेपी की सरकारें तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैं. तीन तलाक और शादी की उम्र सीमित करने, आधुनिक शिक्षा के नाम पर मदरसे की तस्वीर बदलने की कोशिशों के बीच अब मुसलमानों को समान नागरिक संहित के दायरे में बांधने का प्रयास चल रहा है. इस राह पर असम की मौजूदा सरकार बहुत पहले की कदम बढ़ा चुकी है. अब बीजेपी वाली इस सरकार के मुखिया सरमा ने कहा है कि हम असम में भी उत्तराखंड और गुजरात की तरह यूसीसी लाएंगे.
उन्हांेने कहा कि असम के समान नागरिक संहिता में कुछ और नियम होंगे. साथ ही हम इन राज्यों के यूसीसी बिल के अनुसार राज्य में समान नागरिक संहिता लाएंगे. मैं उत्तराखंड के यूसीसी बिल को देखने का इंतजार कर रहा हूं. उन्हांेने हिंदुओं के कुछ वर्ग को इससे छूट देने की नियत से कहा कि असम में जनजातीय समुदाय को यूसीसी के दायरे से छूट दी जाएगी.
इससे पहले हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित किया. जिसमें उन्होंने कहा कि हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब उत्तराखंड और गुजरात के बाद असम समान नागरिक संहिता लागू करने वाला राज्य बनेगा.
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गौरतलब है कि केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दावा किया है कि विधि आयोग समान नागरिक संहिता के महत्व और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता से जुड़े सभी पहलुओं का अध्ययन कर रहा है. बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने शीतकालीन सत्र के दौरान 8 दिसंबर 2023 को राज्यसभा में शून्य अंतराल के दौरान समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाया था. इस पर सरकार की ओर से जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बीजेपी सांसद यादव को पत्र लिखकर उनके सुझावों के लिए धन्यवाद दिया.
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने पत्र में समान नागरिक संहिता को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट किया. आगे कहा कि इस संबंध में यह ध्यान देने योग्य है कि विषय के महत्व और इसमें शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए विभिन्न समुदायों पर गहन अध्ययन किया जाए. विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों की आवश्यकता है.
मेघवाल ने कहा कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें करने का अनुरोध किया था, लेकिन उनका कार्यकाल समाप्त हो गया. अब 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के संदर्भ को विचार के लिए लिया ह. बड़े पैमाने पर लोगों और मान्यता प्राप्त संगठनों की राय मांगी है. यह मामला अब भारत के विधि आयोग द्वारा जांच के अधीन है.