राम मंदिर उद्घाटन: सेक्युलर कौन? कोई भी नहीं
राहील मिजा, नई दिल्ली
भारत के ऐतिहासिक शहर अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर का निर्माण और उसका भव्य उद्घाटन समारोह इसका एक उदाहरण है.देश में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने इस धार्मिक समारोह को इस तरह पेश किया कि विपक्ष चारों खाने चित होता नजर आया.
नए विपक्षी गठबंधन इंडिया ने इसे एक राजनीतिक घटना बताया और इसमें शामिल दलों ने अलग-अलग तरीकों से इससे दूरी बना ली, लेकिन कोई भी इसके सीधे विरोध में सामने नहीं आया.सोमवार, 22 जनवरी को भारत के कोने-कोने से जय श्री राम के नारे गूंजे और देश के लगभग सभी चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण किया गया. इस पर लगातार चर्चाएं हुईं.
राम के प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने वालों में अमिताभ बच्चन जैसे फिल्म उद्योग के दिग्गजों के साथ मुकेश अंबानी जैसे अरबपति व्यवसायी भी शामिल थे. इस संबंध में दिल्ली की अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और पत्रकार अभय कुमार दुबे ने उर्दू न्यूज से बात की.
उन्होंने कहा कि विपक्ष ही नहीं पूरी दुनिया जानती है कि यह प्राण प्रतिष्ठा समारोह पूरी तरह से राजनीतिक था.उन्होंने कहा कि इंडिया अलायंस में कम्युनिस्टों (वामपंथी पार्टियों) और दरवाड पार्टियों (दक्षिणी भारत की पार्टियों) को छोड़कर कांग्रेस सहित सभी प्रमुख पार्टियां लापरवाह थीं और भाग न लेने का निर्णय लेने में देरी कर रही थीं.
इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी के खेमे में भ्रम फैल गया. उसके वरिष्ठ नेताओं ने तो हिस्सा नहीं लिया, लेकिन दूसरे खेमे के नेता इस आयोजन में हिस्सा लेते दिखे.उन्होंने कहा कि इसका पूरा फायदा सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को होगा. वह करीब 100 दिनों में राम मंदिर के उद्घाटन से बने माहौल का फायदा आम चुनाव में उठाएगी.
अभय कुमार दुबे का कहना है कि उद्घाटन के दूसरे दिन बीजेपी ने तीन लाख लोगों को राम मंदिर का दर्शन कराया. इस हिसाब से 100 दिन के अंदर वह तीन करोड़ लोगों को दर्शन दे पाएंगी और उनमें से ज्यादातर उनके वोट बैंक साबित होंगे.
उन्होंने कहा कि भारत में कॉलेज और अस्पतालों से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं.कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि भारत में मंदिर जाने वाले ज्यादातर लोग बीजेपी के वोटर हैं. जो नहीं जाते वे भी उनके वोटर हैं.
जब हमने उनसे जानना चाहा कि क्या सरकार के इस पैमाने पर धार्मिक आयोजन में भाग लेने से भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र प्रभावित हुआ है, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से पूछा, भारत में धर्मनिरपेक्ष कौन है? कोई भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है.आप देख रहे हैं कि विपक्षी नेता अयोध्या न जाकर भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच गए. ये साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि वो भी हिंदू हैं.
विपक्ष का सबसे प्रमुख चेहरा और कांग्रेस नेता राहुल गांधी मणिपुर से मुंबई तक भारत जोड़ो नया यात्रा पर हैं. सोमवार को वह पूर्वोत्तर राज्य असम में थे, जहां उन्हें दर्शन के लिए एक मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया. समझे?
दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी कल एक अंतरधार्मिक मार्च निकाल रही थीं और उनकी पार्टी के सदस्य भी राज्य भर में इसी तरह के मार्च निकाल रहे थे. लेकिन उन्होंने कहा कि पहले वह काली मंदिर जाएंगी और उसके बाद सद्भावना यात्रा में हिस्सा लेंगी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी अयोध्या नहीं पहुंचे, लेकिन वह दिल्ली के एक मंदिर में दर्शन करने गए, जबकि बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख नीतीश कुमार चुप रहे. यह मंदिर जनता दल के नेता और उप प्रमुख का था. पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी के एक गुट के नेता उद्धव ठाकरे को भी राज्य में मंदिरों का दौरा करते देखा गया.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में स्पष्ट किया कि वह बाद में अपने परिवार के साथ भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या जाएंग.
अभय कुमार दुबे ने भारतीय राजनीति पर आगे कहा कि भारतीय मुसलमानों और ईसाइयों की राजनीति में धर्म शुरू से ही शामिल रहा है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि राजनीति और धर्म में कोई अंतर है. हिंदुओं में कोई अपनी जाति के नाम पर वोट मांगता है तो कोई अपनी आस्था के आधार पर. इसलिए धर्मनिरपेक्ष चरित्र का सवाल ही नहीं उठता.
इस बीच सोशल मीडिया पर, जहां अधिकांश लोग राम मंदिर के बारे में टिप्पणी कर रहे थे और तस्वीरें और वीडियो पोस्ट कर रहे थे, वहीं कुछ लोग भारत के संविधान की प्रस्तावना की तस्वीरें पोस्ट कर रहे थे. इसके धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी चरित्र पर प्रकाश डाल रहे थे.राजनीतिक टिप्पणीकार अभय कुमार ने कहा, विपक्षी नेता पार्क में घूम रहे बूढ़ों की तरह हैं जो थककर बैठ जाते हैं, जबकि बीजेपी के नेता लंबी दूरी के एथलीट हैं जो लगातार दौड़ते दिखते हैं और उनका असर होना ही चाहिए.
-उर्दू न्यूज से साभार