‘लव जिहाद एंड अदर फिक्शन’: सच या झूठ? एक बहस
Table of Contents
मुस्लिम नाउ विशेष
देश के उम्दा पत्रकारों में से एक श्रीनिवासन जैन और उनके दो साथी लेखकों मरियम अलवी और सुप्रिया शर्मा ने ‘लव जिहाद एंड अदर फिक्शन’ नामक पुस्तक क्या लिखी, एक वर्ग की पेट में भयंकर मरोड़ उठ रहा है. सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ अभियान चलाने के अलावा खास विचार धारा वाली वेबसाइट पर लंबे-लंबे लेख लिखे जा रहे हैं. मंशा है, पुस्तक को लेकर इतना शोर किया जाए कि इसमें दी गई सच्चाईयां भ्रमजाल में उलझकर खो जाएं. यह वर्ग ऐसा ही करता रहा है. झूठ को इतनी ताकत से गढ़ता है कि आम लोग उसे सच मान बैठते हैं.
श्रीनिवासन जैन की पुस्तक को झुठलाने के लिए ऐसे-ऐसे थोते तर्क दिए जा रहे हैं, जिसे पढ़-सुकर कर हंसी आती है. ‘लव जिहाद एंड अदर फिक्शन’ को झुठलाने और इसे थोथा साबित करने के लिए ‘ द जयपुर डाॅयलाॅग’ नामक एक वेबसाइट ने ‘ किताब के पीछे का सचः लव जिहाद और अन्य काल्पनिक बातें’ शीर्षक से श्रुति दासगुप्ता का एक लेख छापा है. इस लेख की पहली पंक्ति पढ़ते ही पाठकों को समझते देर नहीं लगती कि यह किस मकसद से लिखा गया है और लिखने वाला कौन है.
क्या ऐसी होती है पुस्तक समीक्षा ?
श्रुति दासगुप्ता ने पुस्तक की समीक्षा लिखते हुए इसका कतई ख्याल नहीं रखा. इस लिए इसे पढ़ने पर आसानी से समझा जा सकता है कि लेखक की मंशा क्या है. श्रुति दासगुप्ता ने अपनी भोथरी दलीलों से यह साबित करने की भरपूर कोशिश की कि ‘ऐसा लिखने वाले को देश माफ नहीं करेगा.’ श्रुति दासगुप्ता ने पुस्तक को झुठलाने के लिए कुछ मौलानाओं को जेल जाने और दो विवादास्पद फिल्मों का हवाला दिया है.जब कि इसकी सच्चाई को लेकर सवाल उठते रहे हैं. देश के कुछ मौलानाओं को तो इस लिए ‘देशद्रोही’ बनाकर पेश किया गया कि उनके जेल जाने पर यह खास वर्ग अपना एजेंडा चला सके. अन्यथा जेल भेजे गए मौलवी, मौलाना, मुस्लिम युवा नेता सबसे ज्यादा उनकी मंशा पर सवाल उठाते रहे हैं.
इसके अलावा लेख में कुछ प्रोपगंडा बेसासाइट की खबरों को सच साबित करने का प्रयास किया जाता है. जबकि गूगल ऐसी वेबसाइट को काली सूची में डाल चुकी है. श्रुति दासगुप्ता यदि निष्पक्ष होतीं तो पुस्तक की समीक्षा जरूर उसी तरह करतीं जैसे की जाती है, पर लेख इनकी नियत को लेकर चुगली करता है.
यहां श्रुति दासगुप्ता के अंग्रेजी लेख का हिंदू अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है. अनुवाद में कुछ त्रटियां हो सकती हैं. लेख कुछ यूं हैंः-
वामपंथी और उदारवादी प्रचार और धारणा प्रबंधन में बहुत अच्छे हैं! हालिया किताब लव जिहाद एंड अदर फिक्शन बढ़ती हिंदू ताकत के खिलाफ उनका नवीनतम हथियार बनने के लिए तैयार है! वीडियो क्लिपिंग, पुलिस मामले और दुर्व्यवहार लव ट्रैप या अन्य माध्यमों से धर्मांतरण के इर्द-गिर्द चर्चा में हैं! हालाँकि, इस छद्म प्रचार के लेखकों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है.
तीन पत्रकारों की यह नई विवादास्पद पुस्तक संख्याओं और कथित तथ्यों का उपयोग करके वास्तविकता को नकारने का प्रयास करती है. उनके आख्यान जनता का ध्यान आकर्षित करने की होड़ में हैं! इसलिए, आइए पुस्तक की सामग्री और अंतर्निहित प्रेरणाओं की जांच करके उन्हें वह ध्यान दें जो वे चाहते हैं. क्या यह किसी एजेंडे का प्रचार कर रहा है या उसे खारिज कर रहा है?
भ्रामक पहलूः भ्रामक दावे
पहली नजर में, पुस्तक का आधार बहुत साफ और सीधा प्रतीत होता है. इसका उद्देश्य लव जिहाद और अन्य धर्मांतरण षड्यंत्र सिद्धांतों के अस्तित्व का खंडन करने के लिए तथ्यात्मक साक्ष्य प्रदान करना है. लेखक श्रीनिवासन जैन, मरियम अलवी और सुप्रिया शर्मा का दावा है कि उनका एकमात्र उद्देश्य इस घटना से जुड़ी आधारहीन कहानियों को खत्म करना है. वे वायरल छद्म झूठ का प्रतिकार करने के लिए गहरी खोज करना और कठिन तथ्य प्रस्तुत करना चाहते थे. हालाकि, वास्तव में उनका अभिप्राय सत्य को संख्याओं और आंकड़ों में डुबाना है!
उनके दृष्टिकोण का गहन विश्लेषण उनके वास्तविक इरादों और पूर्वाग्रहों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है. भारत में बढ़ते धर्मांतरण विरोध के सामने लेखक स्वयं को असहाय महसूस करते हैं. इसलिए, उनका समाधान एक ऐसी किताब लिखना है जो शोध के बहाने सच्चाई को तोड़-मरोड़ दे. वास्तव में यह पुस्तक मीडिया रिपोर्टों और वीडियो में दर्ज हजारों मामलों और अनुभवों की वास्तविकता की निंदा करती है!
पीड़ितों की उपेक्षा करना और सच्चाई को खारिज करना
पुस्तक की सबसे स्पष्ट कमियों में से एक अनगिनत पीड़ितों और उनके परिवारों के जीवन के अनुभवों को खारिज करना है. लेखक इस मुद्दे को महज मनगढ़ंत कहानी तक सीमित कर देते हैं! रिपोर्टों या एफआईआर में लव जिहाद शब्द का उपयोग करने में पुलिस की असमर्थता से कोई अजमेर दरगाह, केरल, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और कई अन्य स्थानों में हुई घटनाओं को अमान्य नहीं कर सकता है!
सबसे पहले, वे इस वास्तविकता पर हमला करते हैं कि जबरदस्ती फंसाने के इस रूप की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है! हालाँकि, स्पष्ट परिभाषा की कमी दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई से इनकार नहीं करती है! इसके बाद, वे इस विषय में औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त साहित्य की कमी को प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं. लेकिन औपचारिक साहित्य की कमी को वास्तविकता से इनकार करने के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है!
अंतर-धार्मिक विवाहों में रिपोर्ट किए गए रूपांतरण आंकड़ों के बारे में लेखकों की बात. रिपोर्ट किए गए रूपांतरणों का यह छोटा सा प्रतिशत उनका सबसे अच्छा हथियार बन जाता है. इसलिए, लेखक वीडियो और साक्षात्कारों की आलोचनात्मक जांच करने के बजाय केवल अपनी पूर्वनिर्धारित परिकल्पना को सत्यापित करने में रुचि रखते हैं! ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने पहले ही अपने इच्छित निष्कर्ष पर निर्णय ले लिया है. क्या उन्होंने घटना की सच्चाई को खारिज करके अपने विश्लेषण की सत्यनिष्ठा से समझौता नहीं किया? क्या वे सचमुच सत्य और न्याय के मार्ग पर थे?
लव जिहाद पर प्रणालीगत मुद्दों की अनदेखी
भारत में सार्वभौमिक लव जिहाद कानून नहीं है. कुछ राज्यों में जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए हल्का संस्करण है. इससे एफआईआर के कारण के रूप में लव जिहाद दर्ज करना लगभग असंभव हो जाता है. पुलिस जबरन धर्मांतरण के मामलों को लव जिहाद के मामलों के साथ लगभग कभी भी नहीं जोड़ सकती है. उन्हें कानून द्वारा ऐसा करने की अनुमति नहीं है! इस प्रकार,
यह पुलिस का कानूनी रुख नहीं हो सकता! हालाँकि, उस समुदाय का दर्द वास्तविक है जहां महिलाओं को शादी और प्यार के वादे से व्यवस्थित रूप से फुसलाया जाता है. साक्षात्कार और वीडियो क्लिप सच्चे हैं और सभी के देखने के लिए उपलब्ध हैं. पुलिस ने ऐसे कई मौलानाओं और मौलवियों को पकड़ा है जो कट्टरपंथियों को इस जिहाद में शामिल होने के लिए उकसाते थे!
अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि वास्तविकता यह है कि अंतरधार्मिक विवाह के लिए उन्हें धर्म परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है! उन्हें अपने साथी के साथ रहने के लिए इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जाता है! क्यों? शांतिपूर्ण समुदाय अंतरधार्मिक बहुओं या उसके बच्चों को मान्यता नहीं देता है. इस प्रचार पुस्तक के लेखक ये गंभीर प्रश्न नहीं पूछते हैं. वे शुतुरमुर्ग की तरह हैं जिनके सिर रेत में दबे हुए हैं. वे जो नहीं देखते, वे मानते हैं कि वह नहीं हो रहा है!
इसके अतिरिक्त, लेखक यौन उत्पीड़न, भावनात्मक शोषण और हेरफेर के अंतर्निहित मुद्दों को नजरअंदाज करते हैं जो दुरुपयोग के इस चक्र को कायम रखते हैं. अधिकांश हिंदू पीड़ित महिलाएं प्यार भरी बातों में फंस जाती हैं और दबाव के आगे झुक जाती हैं! क्या हम द केरल स्टोरी या अजमेर 92 घटना का सच भूल गए? अधिकांश पीड़ितों के लिए कोई सहारा नहीं है. यह या तो धर्मान्तरण है या सामाजिक बहिष्कार है.
लेखक का कहना है कि लव ट्रैप रूपांतरण एक छोटा सा प्रतिशत है. कोई बड़ी साजिश नहीं है. जैसा कि वीएचपी या बीजेपी द्वारा पेश किया गया है. क्या वे नहीं देखते कि पुलिस जांच में कुछ ही पीड़ित सामने आते हैं? क्या वे यह नहीं समझते कि बाकी लोग बस अपने नए विश्वास के प्रति अपने भाग्य को समर्पित हो जाते हैं? इस मुद्दे को आंकड़ों की एक झलक और एक साजिश सिद्धांत के रूप में खारिज करके, लेखक प्रभावी रूप से शोषित पीड़ितों या उनके परिवारों की आवाज को दबा देते हैं.
जांच के तहत प्रेरणाएं
उपरोक्त कमियां लव जिहाद और अन्य काल्पनिकताओं के पीछे के असली इरादे पर सवाल उठाती हैं. क्या लेखक सचमुच मानवीय भावनाओं और उथल-पुथल की सच्चाई को नकारने के लिए संख्याओं और तथ्यों का उपयोग करने जा रहे हैं? क्या उन्होंने एक हिंदू लड़के से दोस्ती करने के कारण साथी मुस्लिम लड़कों द्वारा एक मुस्लिम लड़की के बलात्कार की खबर नहीं देखी? क्या उन्हें वह साक्षात्कार समझ में नहीं आया जहां एक मुस्लिम लड़की द्वारा इस्लाम में परिवर्तित नहीं होने और उससे शादी नहीं करने पर एक पुरुष हिंदू लड़के पर तेजाब फेंक दिया गया था?
हिंदू राष्ट्र में हिंदुओं की कड़वी सच्चाई के लिए एजेंडा के लेबल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. चाहे वैचारिक पूर्वाग्रहों से प्रेरित हो, टूलकिट अनुदान या व्यक्तिगत प्रेरणाओं के कारण, लेखकों का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ पत्रकारों के रूप में विश्वसनीयता के प्रश्न उठाता है. गलत सूचना आमतौर पर सुविधाजनक आधे-अधूरे सच के साथ फैलाई जाती है! लव जिहाद एंड अदर फिक्शन्स जैसी किताबों में भी यही बात नजर आती है.
सच्चाई का अपना संस्करण प्रस्तुत करने के लिए लेखकों द्वारा संभवतः संवेदनशीलता, सहानुभूति और निष्पक्षता को छोड़ दिया गया. उम्मीद है, सार्वजनिक प्रतिक्रिया इन लेखकों और उनकी प्रेरणाओं को उजागर करेगी. भारत इन प्रोपेगैंडा पत्रकारों और उनके आकाओं को कभी माफ न करे! ऐसे पक्षपाती साहित्य को भारत में फिर कभी विश्वसनीयता न मिले!
सोशल मीडिया पर श्रीनिवासन की पुस्तक के खिलाफ अभियान
THEN: “26/11 RSS ki Saazish”book released by Congress’s Digvijay Singh.
— Rupa Murthy (@rupamurthy1) February 2, 2024
Congress had desperately tried to give Pakistan a clean chit in 26/11 Mumbai Terror attacks.
NOW: “Love Jihad And Other Fictions” book released by Congress’s Shashi Tharoor.
Congress is desperately trying… pic.twitter.com/l0SvPmt39h
यह तो रही वेबसाइट पर एक लेख की बात. शुक्रवार को दिनभर एक्स पर पुस्तक के लिखाफ अभियान चलाया गया. पुस्तक का विरोध करने वालों का प्रोफाइल चेक करते ही पता चल जाता है कि वे कौन हैं और पुस्तक को लेकर उन्हें क्यों परेशानी हो रही है. ऐसे ही लोगांे में से एक हैं रूपा मूर्ति . उन्हांेने अपने एक्स पर लिखा है, ‘‘ फिर, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह द्वारा 26-11 आरएसएस की साजिश पुस्तक का विमोचन किया गया.
कांग्रेस ने 26-11 के मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान को क्लीन चिट देने की पुरजोर कोशिश की थी.अभी, कांग्रेस के शशि थरूर द्वारा लव जिहाद एंड अदर फिक्शन्स पुस्तक का विमोचन किया गया.कांग्रेस शांतिपूर्ण लोगों को क्लीन चिट देने की बेताब कोशिश कर रही है.
उन्हांेने आगे लिखा है, ‘‘चाहे कुछ भी हो, अल्पसंख्यक वोट बैंक को खुश करना, राष्ट्र की सुरक्षा या हिंदुओं की सुरक्षा की कीमत पर भी, का आदर्श वाक्य है.’’
जुबैर ने खोली प्रोपगंड बेवासाइट की पोल
ऐसे लोगों को जवाब देले के लिए फैक्टचेकर मुहम्मद जुबैर ने भी अपने एक्स का सहारा लिया है. उन्हांेने खास वर्ग की एक प्रोपगंडा वेबसाइट पर प्रकाशित एक खबर का हवाला देते हुए एक्स पर लिखा है,‘‘दक्षिणपंथी प्रचार वेबसाइट द्वारा क्या बढ़िया कथन है. रिश्ते में खटास आ गई और उनका दावा है कि यह लव जिहाद है. कोई भी अंतरधार्मिक संबंध जो गलत होता है वह इन प्रचारकों के लिए लव जिहाद है. लड़के की गलती है कि वह मुस्लिम है. किसी भी तरह से यह उनके अनुसार लव जिहाद है.
What great narration by Right Wing Propaganda Website. Relationship gone sour and they claim it is Love Jihad. Any interfaith relationship which goes wrong is Love Jihad for these propagandists. It's boys fault is he is a Muslim and its Girls fault if she is a Muslim. Either way… pic.twitter.com/7vC0x0lZ6p
— Mohammed Zubair (@zoo_bear) February 2, 2024
जुबैर ने अपनी पोस्ट में एक खबर का हवाला देते हुए लिखा है, ’’6 साल से रिलेशनशिप उसने अपना नाम ताहा (एक मुस्लिम नाम) बताया, पहले 6 छह साल तक उसे लगा कि ताहा एक हिंदू है. लेकिन छह साल बाद जब उसने उसके ड्राइविंग लाइसेंस में उसका पूरा नाम देखा तो उसे पता चला कि वह मुस्लिम है.
उनकी मुस्लिम पहचान जानने के बाद नेहा ने प्रस्ताव रखा कि उन्हें शादी कर लेनी चाहिए. वे बेंगलुरु चले गए और एक नया घर ले आए और साथ रहने लगे. लेकिन नेहा के मुताबिक, ताहा ने बाद में उसे गोमांस खाने के लिए मजबूर किया, ताहा शराबी था लेकिन उसे जाकिर नाइक के वीडियो देखने के लिए मजबूर किया और उसके साथ मारपीट की, उसे आफताब अमीन पूनावाला आदि से सहानुभूति थी.
यहाँ कुछ दिलचस्प है, नेहा कहती हैं, ताहा की अजीब आदतें थीं जैसे खाने से पहले हाथ न धोना. उसने कहा कि जब भी उसने इस पर आपत्ति जताई, उसने इस्लामी शिक्षाओं का हवाला देकर इसे उचित ठहराया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी की हथेलियों पर मौजूद बैक्टीरिया पाचन में लाभ पहुंचाते हैं (गंभीरता से! आपने यह कहां पढ़ा.
पूरा लेख उनके ब्रेकअप के बाद की कहानी पर आधारित है. ताहा का संपर्क नंबर होने के बावजूद प्रचार लेख ने एक बार भी उससे संपर्क करने की कोशिश नहीं की.
क्या आप को नहीं लगता कि एक खास वर्ग देश में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए तरह-तरह की जुगतबाजियां कर रहा है. चूंकि देश में श्रीनिवासन जैन, रवीश कुमार जैसे हिंदू बहुसंख्यक हैं, इसलिए वे लोग कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं, सिवाए भावनाओं को भड़ाकर कर सत्ता मंे बने रहने के. ऐसे लोग देश का विकास कितना कर पाएंगे वल्र्ड बैंक का बढ़ता कर्ज, यह हमें संकेत देने लगा है.