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एएमपी के नेशनल कन्वेंशन 2024 में वक्ताओं की ‘ लफ्फाजी ’

मुस्लिम नाउ ब्यूरो स्पेशल

आम मुसलमानों को ‘फांस’ कर अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए इन दिनों कई कागजी संगठन सक्रिय हैं. कोई सूफी के नाम पर कौम को बेवकूफ बना रहा है तो कोई मुस्लिम बुद्धिजीवी के नाम पर. मगर इनके कार्यक्रमों में शामिल होने पर दो बातें स्पष्ट तौर से दिखती हैं. एक, ऐसे संगठनों के कार्यक्रमों में मुसलमानों के मूल और मौजूदा मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं होती.

दूसरा, बहुत बारीक ढंग से उस पार्टी या संगठन का समर्थन करने का संकेत दिया जाता है, जिनके बारे में आम मुसलमानों की समझ है कि उनकी तमाम समस्याओं की जड़ यही हैं.ऐसे ही माहौल में शनिवार और रविवार को जयपुर के झारखंड मैरेज रिजार्ट में एसोसिएशन आॅफ मुस्लिम प्रोफेशनल्स का नेशनल कन्वेंशन 2024 आयोजित किया गया.

इस दो दिवसीय कन्वेंशन में एक भी ऐसी बात सामने नहीं आई जिससे मुस्लिम कौम को नया रहबर, नया रास्ता और मसलों को हल करने वाला नया रहनुमा मिले. सभी वक्ताओं ने या तो शिक्षा पर जोर दिया या खुद की तारीफ मंे कसीदे पढ़े. जो ऐसा नहीं कर सके उन्होंने बाकी वक्ताओं को लताड़ने में समय बर्बाद किया.

एक साहब तो मंच से शोलापुर में प्लाट बेचते नजर आए. पहले तो उनकी बातों से लगा कि मुसलमानों को कोई यूनिवर्सिटी कायम कर देने से जैसा कोई तामीरी काम करने वाले हैं. बाद में उन्होंने अपनी लच्छेदार बातों से पांच लाख प्रति प्लाट बेचने पर ज्यादा जोर दिया.

बाद में बातचीत से पता चला कि वह साहब पहले से प्लाट बेचने का धंधा करते आ रहे हैं. सोलापुर में दो काॅलोनियों काट चुके हैं और तीसरे की तैयारी है.

इसी तरह भोपाल के एक युवक ने मंच से जब मस्जिदों के इमामों को स्वराज देने पर बात कही तो उसे खूब वाहवाही मिली.बाद में बताया कि दरअसल उनका मूल काम ब्रोकरी है. इमाम को स्वरोजगार बनाने काम वक्फ वालों के साथ करते हैं.

एएमपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में पहले दिन सिवाय शिक्षा के और किसी मुद्दे या प्रोफेशन पर कोई बात नहीं हुई. इसमें दो राय नहीं कि मुसलमानों के लिए शिक्षा बेहद जरूरी है. इसे हासिल कर कई रास्ते खोले जा सकते हैं. मगर अधिवेशन में शामिल वक्ता जिस तरह की राय रखते दिखे, उनके हिसाब से 100 साल बाद ही ‘कौम दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकेगी.’ मगर इससे पहले उन्हंे ‘कचूमर’ बनाने का षड़यंत्र रचने वालों का क्या इलाज किया जाए , उनसे कैसे निपटा जाए, इसपर किसी ने कुछ नहीं कहा. इसके इतर अधिकार वक्ताओं ने ढके शब्द में एक खास पार्टी की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसे ‘अछूता’ न समझें.

इसी तरह राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले एक बुजुर्गवार से जब मुसलमानों के मौजूदा मुद्दों पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने इसपर अपनी राय रखने से ही मना कर दिया, जबकि इससे पहले वह मंच से कुछ खास संगठनों और कुछ खास पार्टियों से अपने बेहतर रिश्ते का बखान करते हुए कहा था कि ‘‘उन्हें सभी चाहते हैं. उनका सभी सम्मान करते हैं.’’

गर्ज यह है एएमपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में वक्ताओं ने अपनी तारीफ में कसीदे पढ़ने के सिवाए एक बात भी ऐसी नहीं की जिससे आम मुसलमानों के मसले का हल निकल सके. यहां तक कि अधिवेशन में खेल, सिनेमा, आईटी शिक्षा जैसे अहम विषयों पर भी कोई बात नहीं की गई. जबकि इस क्षेत्र में दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले स्पर्धा कम है.

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