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The Indian media जड़ जमाती मुस्लिम विरोधी सोच

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या मामले की ‘अति’ मीडिया कवरेज से चिंतित है। उसने इसे पत्रकारिता के नियमों का उल्लंघन माना है। साथ ही उसने मीडिया घराने को काउंसिल के नियमों के अनुरूप आचरण करने की याद दिलाई है। दरअसल, सुशांत की मौत पर पिछले ढाई महीने से मीडिया घरानों में ‘एक्सक्लूसिव’ एवं ‘सुपर एक्सक्लूसिव’ ख़बरें दिखाने-पढ़ाने की जैसी गला काट होड़ मची है। उससे प्रेस काउंसिल ही नहीं आम देश वासी भी हैरान-परेशान है। चूंकि इसकी आड़ में समाज में नफरत फैलाने वाले गिरोह की मंशा बॉलीवुड की ‘सेक्यूलर’ जमात को निशाना बनाना है। इसलिए देश की तमाम अहम समस्याएं दरकिनार कर मीडिया में केवल सुशांत मामले को अहमियत देने से, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की चिंता की गंभीरता कई गुना बढ़ जाती है। अभी स्थिति है कि जिन खबरों में हिंदू-मुस्लिम ऐंगल नहीं होता, मीडिया उसे महत्व नहीं देता। जिस मामले में मुसलमानों की गर्दन न फँस रही हो, उसे तो बिल्कुल ही नहीं।

मीडिया के लिए कोरोना मुद्दा नहीं

अभी पूरे विश्व में कोरोना संक्रमण की सबसे भयंकर स्थिति भारत की है। पिछले आठ-दस दिनों से संक्रमितों की सर्वाधिक मौतें अपने देश में हो रही हैं। एक-एक दिन में 76 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे और हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। कोरोना के फैलाव के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त है। करोड़ों की संख्या में लोगों की नौकरियाँ चली गईं। देश का पर्यटन- होटल उद्योग ठप  है। ऑन लाइन खाना उपलब्ध कराने वाली कंपनी जोमैटो के एक सर्वे के मुताबिक, लॉक डाउन हटने के उपरांत तीस प्रतिशत रेस्तरां ही खुल पाए हैं। उद्योग-धंधों की हालत पतली है। रेल गाड़ियाँ, हवाई जहाज सामान्य रूप से नहीं चल रहे। बैंकों से कर्ज लेने वाले सरकार से तीन से छह महीने तक लोन नहीं चुकाने के लिए और मुहलत मांग रहे हैं। मगर देश पर आए इस भयंकर आपदा के प्रति गंभीरता दिखाने की बजाए मेन स्ट्रीम मीडिया सुशांत सिंह राजपूत पर पूरी तरह केंद्रित है। भारत में जब हजारों की संख्या में कोरोना के मरीज थे, तब मीडिया ने इसके फैलाव के लिए तबलीग़ जमात की बैंड बजा दी थी। उन्हें मानव बम और सुअर तक कहा गया। अब दिल्ली, मुंबई एवं लखनऊ हाई कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दे दिया है और उनके खिलाफ परपंच रचने के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया तो उनके लिए यह समाचार नहीं बनता।

बॉलीवुड की सेक्यूलर जमात पर हमला


सुशांत सिंह राजपूत मामले में मीडिया से जुड़ा एक बड़ा तबका इसलिए गहरी दिलचस्पी दिखा रहा कि मुसलमानों के खिलाफ जहर बोने वाले कतिपय लोग चाहते हैं कि इसका सारा ठिकरा बॉलीवुड की सेक्यूलर जमात पर फोड़ा जाए। सुशांत सिंह के संदर्भ में बॉलीवुड एवं गैर बॉलीवुड की कुछ नामचीन हस्तियों के सोशल मीडिया पर संदेश एवं वीडियो देख लें। सब कुछ अपने-आप समझ में आ जाएगा। एक षड़यंत्र के तहत सुशांत आत्महत्या मामले में सलमान खान को निशाना बनाने का प्रयास किया गया था। अब वही लोग तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी से मुलाकात के बहाने आमिर खान के पीछे पड़े हैं। खानों की फिल्मों के बहिष्कार का आहवान किया जा रहा है। क्यों भाई ? क्या कोर्ट में सिद्ध हो चुका कि सुशांत की मौत के लिए बॉलीवुड के खान बंधु जिम्मेदार हैं ? रिया मामले में महेश भट्ट भी इस लिए घसीटे जा रहे कि वे हमेशा कट्टरपंथियों की मुखालफत करते रहे हैं। इसके अलावा उनका संबंध भी मुस्लिम परिवार से है। सुशांत प्रकरण में रिया का नाम लेकर उन्हें क्या-क्या नहीं कहा जा रहा। जबकि टीवी इंटरव्यू में रिया चक्रवर्ती कह चुकी हैं उनके व महेश भट्ट के बीच पिता-पुत्री जैसे संबंध हैं। करण जौहर एवं दूसरे बड़े फिल्मी घराने इस लिए मीडिया ट्रायल पर हैं कि वे बॉलीवुड में सांप्रदायिकता का हजर घोलने वालों को घास नहीं डालते। वे कलाकारों के हुनर के हिसाब से काम देते हैं। न कि हिंदू-मुसलमान के नजरिए से। इस मामले में अब इजाज खान को घसीटा जा रहा है। देश के एक बड़े राजनेता को हर के फटे में टांग अड़ाने की आदत है। वह सुशांत मामले में खानों को बेनकाब करने की खुली धमकी दे चुके हैं। उन्होंने ही इस मामले में ड्रग माफिया का ऐंगल घुसेड़ा था। अब नेता जी दावा कर रहे हैं कि इजाज खान का दुबई के ड्रग माफिया से कनेक्शन है। यदि उनके बारे में इसको लेकर कोई ठोस सबूत है तो संबंधित विभाग से साझा क्यों नहीं करते ? सोशल मीडिया पर बयानबाजी के पीछे क्या मंशा है ? दरअसल, इजाज पर निशाना साधा जा रहा है कि वह अपने बिंदास बोल के लिए नफरतियों की आँख की किरकिरी बने हुए हैं। इजाज कोई बड़े कलाकार नहीं। बिग बॉस सहित दक्षिण भारतीय एवं बॉलीवुड फिल्मों में छोटा-मोटा रोल कर अपनी जीविका चला रहे हैं।

शोसल मीडिया पर बढ़ता भरोसा


चिंताजनक है कि मुसलमानों को घेरने का जब समय आता मीडिया इसकी सच्चाई एवं इसके असर की परवाह किए बिना एकतरफ़ा शुरू हो जाता है। सुशांत मामले में ड्रग माफिया वाला एंगल भी कुछ ऐसा ही दिखता है। यह इकलौता मामला नहीं। एक सप्ताह में ऐसे दो उदाहरण सामने आ चुके हैं। कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के लाहौर में एक बिल्डर ने हनुमान मंदिर गिरा दिया था। इस घटना को दिखाने व छापने की हड़बड़ाहट में इंडिया न्यूज़ ने अपने पोर्टल पर खबर के साथ लाहौर की बारिश में गिरी बहुमंजिल इमारत की तस्वीर प्रसारित कर दी। इस बिल्डिंग में दबकर छह से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

इसी तरह न्यूज़ 18 के चैनल पर बारिश में जमीनदोज होती इमारत से एक व्यक्ति का कूदने का वीडिया दिखकर खबर चलाई गई कि पाकिस्तान सरकार की खुली पोल, जब कि यह नज़ारा इंदौर का था। पता

नहीं मुस्लिम विरोधी खबरों को लेकर मीडिया में बैठा एक वर्ग इतना आतुर क्यों रहता है ? तथ्यों की पड़ताल करना भी जरूरी नहीं समझता। बाद में उसे ही शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। सुदर्शन न्यूज़ जैसे चैनल द्वारा समाज में जहर घोलने वाली खबरों पर भी मौनी बाबा बन रहता है। मुस्लिम प्रशासनिक अधिकारियों को जिहादी साबित करने वाली सुदर्शन न्यूज़ की एक खबर को लेकर जब देश के सुधी लोग परेशान थे, अधिकांश मीडिया चुप्पी साधे बैठा था। कोरोना पीड़ितों की जान बचाने के लिए सर्वाधिक प्लाजा डोनेट तबलीगियों ने किए हैं। अधिकांश मीडिया ने अब तक इसपर कोई स्पेशल स्टोरी नहीं बनाई है। क्यों ? शायद मुसलमानों की अच्छी बातों का सपोर्ट नहीे करना चाहते! शिक्षा में दलितों से भी पिछड़ी इस कौम का युवा वर्ग कड़ी मेहनत कर जब आईएएस,आईपीएस की परीक्षा पास कर रहा है तो उनकी हौसला अफजाई की बजाए मीडिया का एक वर्ग उन्हें जिहादी साबित करने पर आमादा है। शुक्र है यह दौर डिजिटल का है। मेन स्ट्रीम मीडिया जिसे नहीं दिखाती। हम सोशल मीडिया पर देख लेते हैं। सुदर्शन चैनल के मुस्लिम प्रशासनिक अधिकारियों को जिहादी साबित करने वाले कार्यक्रम पर दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा बैन लगाने का श्रेय भी सोशल मीडिया के प्रयासों को जाता है। इसने इस आपत्तिजनक मुददे को अपने प्लेट फॉर्म पर खूब स्पेस दिया।
                                                                                 मलिक असगर हाशमी

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