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लोकसभा चुनाव के समय हिंदू आबादी घटने, मुस्लिम के बढ़ने की 9 साल पुरानी जानकारी देने के मतलब

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिली

लोकसभा चुनाव 2024 हिंदू-मुस्लिम के आधार पर लड़ने के प्रयासों के बीच एक और मामला सामने आया है. ऐन मतदान के चैथे चरण से पहले एक कथित सर्वे का हवाला देते हुए बताने की कोशिश की गई है कि भारत में 1950 से 2015 के बीच मुस्लिम आबादी बढ़ी है, जबकि हिंदुआंे की घटी है.

कट्टरवादी संगठन हमेशा हिंदुओं के मन में भय भरने की कोशिश में रहते हैं कि 2045 तक देश के मुसलमान बहुसंख्यक हो जाएंगे और हिंदू अल्पसंख्यक. इसके बाद केवल मुस्लिम ही प्रधानमंत्री बनेगा. हिंदू असुरक्षित हो जाएंगे.एक ऐसे सर्वे के माध्यम से अब उसी थ्योरी को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. इस आंकड़े की सत्यता क्या है और पिछले 65 वर्षों में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर मुसलमान कितने पिछड़े हैं, इन आंकड़ों में इसका जिक्र नहीं है.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि भारत के मुसलमानों की दशा दलितों से भी बदतर है. ऐसे में जब मुसलमानों को आरक्षण देने की बात आती है तो पीएम मोदी,बीजेपी और कथित दलित नेता इसके मुखालफत में खड़े हो जाते हैं.

बहरहाल, ‘‘आर्थिक सलाहकार परिषद के एक वर्किंग पेपर के अनुसार, 1950 और 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी 84.68 प्रतिशत से 7.82 प्रतिशत घटकर 78.06 प्रतिशत रह गई है, जबकि मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी 9.84 प्रतिशत से 14.09 प्रतिशत बढ़कर 43.15 प्रतिशत हो गई.

ईएसी-पीएम सदस्य शमिका रवि, सलाहकार अपूर्व कुमार मिश्रा और यंग प्रोफेशनल अब्राहम जोस द्वारा लिखित पेपर में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान ईसाई आबादी का हिस्सा 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 5.38 प्रतिशत हो गया.इसी तरह सिख आबादी की हिस्सेदारी 1950 में 1.24 प्रतिशत से 1.85 प्रतिशत बढ़कर 6.58 प्रतिशत हो गई. यहां तक कि बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में भी 0.05 प्रतिशत से 0.81 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई.

दूसरी ओर, भारत की जनसंख्या में जैनियों की हिस्सेदारी 1950 में 0.45 प्रतिशत से घटकर 2015 में 0.36 प्रतिशत हो गई. इसी तरह भारत में पारसी आबादी की हिस्सेदारी में 85 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई’ 1950 में यह 0.03 प्रतिशत से कम हो गई. 2015 में यह 0.004 प्रतिशत दर्ज की गई.

बता दें कि भारत में जनगणना आखिरी बार 2011 में हुई थी. अगली जनगणना एक दशक में होनी थी, जो अब तक नहीं हुई. इस लिए ऐसे भ्रामक आंकड़े गाजे-बगाहे उछाले जाते हैं.ईएसी-पीएम पेपर ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी के रुझानों में वैश्विक रुझान देखने के लिए 167 देशों का भी अध्ययन किया.

भारतीय उपमहाद्वीप पर, रिपोर्ट में पाया गया कि मालदीव को छोड़कर सभी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई, जहां बहुसंख्यक समूह (शफीई सुन्नियों) की हिस्सेदारी में 1.47 प्रतिशत की गिरावट आई है. बांग्लादेश में, बहुसंख्यक धार्मिक समूह की हिस्सेदारी में 18 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ी वृद्धि है.

1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बावजूद पाकिस्तान में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय (हनफी मुस्लिम) की हिस्सेदारी में 3.75 प्रतिशत की वृद्धि और कुल मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की बढ़ौतरी देखी गई है.रिपोर्ट के अनुसार,गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में, म्यांमार, भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में गिरावट दर्ज किया गया है.

म्यांमार में थेरवाद बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की गिरावट के साथ इस क्षेत्र में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई. नेपाल में बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 4 प्रतिशत की गिरावट आई है. बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है, जबकि मुस्लिम आबादी में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.