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मुद्दाविहीन भाजपा मुसलमानों की कथित बढ़ती जनसंख्या को दे रही हवा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मुद्दाविहीन भाजपा चौथे चरण के मतदान से ठीक पहले एक बार फिर मुसलमानों के सहारे हिंदुओं के एक वर्ग का समर्थन लेने की कोशिश शुरू कर दी है. एक नौ साल पुराने आंकड़े को वोटिंग से कुछ घंटे पहले जारी कर यह भ्रम फैलाने की कोशिश चल रही है कि देश में मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और हिंदुओं की घट रही है. इस आंकड़े पर इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता क्यों कि 2011 के बाद देश में कोई जनगणना नहीं हुई है. उसके बाद के आंकड़े केवल अनुमानित हैं.

मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने से संबंधित आंकड़ा प्रधानमंत्री के सलाहकारों द्वारा ऐन चुनाव के समय जारी किया गया है, इसलिए भी इसे लेकर उंगली उठाई जा रही है. बावजूद इस आंकड़े के आने के बाद बीजेपी निरंतर इस कोशिश में है कि अगले मतदान के लिए इसके नाम पर ही वोट मांगे जाएं. बता दूं कि चुनाव शुरू होने से पहले बीजेपी ने एक करीब 60 पेज का घोषणा पत्र जारी किया था, जिसमें राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 730 हटाने, सीएए जैसे कानून लागू करने को लेकर खूब वाहवाही की गई थी. साथ ही आने वाले समय में देश को सोने की चिड़िया बनाने का वादा किया गया था. मगर तीन चरणों के मतदान मतदाताओं की उदासीनता से भाजपा की हवा खिसकी हुई है. ऐसे में वह लगातार चुनाव के केंद्र में ‘मुसलमन’ को रखने की कोशिश की जा रही है. हर बार इसके बहाने एक नया भ्रम गढ़ने की कोशिश की जा रही है.

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हालांकि, वह अपने जाल में खुद ही फंसती दिख रही है. देश में हिंदुओं की घटती जनसंख्या और मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या के साथ ही पीओके को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि साल 1951 में मुसलमानों की जनसंख्या कम थी. उस समय मुसलमानों में एक से एक टैलेंटेड लोग होते थे वो सब कहां चले गए?

जनसंख्या बढ़ी और सेक्युलर राजनीति के चलते मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करने वालों की लिस्ट में जाकिर नायक, इशरत जहां, याकूब मेमन, अबू सलेम, छोटा शकील, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे मुसलमानों का नाम शामिल हो गया.उन्होंने कहा, देश में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ी और क्‍वालिटी गिरी है. मुझे लगता है कि मुस्लिम समाज को भी इस पर प्रतिक्रिया देने के बजाए चिंतन करने की जरूरत है.

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ने को लेकर कहा कि पहले की सरकारों ने कानूनों में जो बदलाव किया और पर्सनल लॉ में छूट दी गई, उसका असर आज दिख रहा हैप्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 से 2015 के बीच भारत में बहुसंख्यक धर्म (हिंदुओं) की आबादी में 7.8 प्रतिशत की तेज से गिरावट आई है, जबकि मुस्लिमों की आबादी में 43.15 प्रतिशत, ईसाइयों की आबादी में 5.38 प्रतिशत, सिखों की आबादी में 6.58 प्रतिशत और बौद्धों की आबादी में भी मामूली वृद्धि देखी गई. इस बाबत पूछे जाने पर आर.पी. सिंह ने कहा, इसमें कोई शक नहीं कि जब जो सरकार रही हैं, उनकी नीतियां इस प्रकार की रही हैं कि एक खास समुदाय की आबादी को पुश मिला. कानूनों में बदलाव किया गया और पर्सनल लॉ में जो छूट दी गई, उसका असर आज दिख रहा है. पॉपुलेशन का बैलेंस, इनबैलेंस पर फर्क दिखाई पड़ा है.

इसको लेकर टैक्सएब संस्था के अध्यक्ष, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनसंख्या विशेषज्ञ मनु गौड़ ने कहा कि अब देश में बढ़ती आबादी और जनसांख्यिकीय परिवर्तन को रोकने के लिए एक उचित जनसंख्या नीति बनाने की जरूरत है.

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों को लेकर इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया है. रिपोर्ट की मानें तो 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव के तहत भारत में हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी कम हुई है. जबकि, मुसलमानों की आबादी 43.15 फीसद बढ़ी है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत के पड़ोसी हिंदू बहुल नेपाल में इसी तरह हिंदुओं की जनसंख्या में कमी देखने को मिली है.

टैक्सएब संस्था के अध्यक्ष, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनसंख्या विशेषज्ञ मनु गौड़ से इस बारे में जानने की कोशिश की.दरअसल, मनु गौड़ लगातार कई राज्यों के मुख्यमंत्री से मिलकर बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. मनु गौड़ ने देश में जनसंख्या नियंत्रण की आवाज को बुलंद किया और लाल किले की प्राचीर से इस गंभीर मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उठाया.

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अब प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट आने के बाद इसको लेकर चर्चा तेज हो गई है. जिसे लेकर मनु गौड़ ने कहा कि आज जो रिपोर्ट जनसंख्या से संबंधित आई है, उसमें कुछ चीजें देखने लायक है और इस रिपोर्ट को बड़ी गंभीरता से लेने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में जो नजर आ रहा है कि 1950 से लेकर 2015 तक के 65 वर्षों में दुनिया के 167 देशों में धार्मिक आधार पर जनसंख्या में जो परिवर्तन हुआ है, वह चिंता का विषय है. इसमें से 123 देश ऐसे हैं, जहां पर बहुसंख्यक आबादी में कमी और अल्पसंख्यक आबादी में बढ़ोत्तरी हुई है. इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि जिन 123 देशों में यह परिवर्तन आया है, उन देशों में कौन सी अल्पसंख्यक जातियां या धर्म के लोग हैं, जिनकी आबादी बढ़ी है. इसको अगर समझें तो बड़ी आसानी से हम समझ सकते हैं कि यूरोप के देशों में, मिडिल ईस्ट के देशों में बहुसंख्यक आबादी कम हो रही है और अल्पसंख्यक आबादी बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि इन देशों में किस विशेष वर्ग की आबादी बढ़ रही है, ये बताने की आवश्यकता नहीं है. जिसमें भारत भी शामिल है, जिसके साथ इस रिपोर्ट में चीन भी नजर आ रहा है, जहां चीनी आबादी में भी कमी आई है. चीन में भी एक विशेष वर्ग की जनसंख्या में वृद्धि हुई है.

इस रिपोर्ट में साफ दिखाया गया है कि भारत और नेपाल दो हिंदू बहुसंख्यक देश हैं, जहां बहुसंख्यकों की आबादी में कमी आई है. इसके अलावा दुनिया के 44 देश ऐसे भी हैं जहां पर बहुसंख्यक बढ़ी है और अल्पसंख्यक आबादी में कमी आई है. इसे अगर हम समझने की कोशिश करें तो हम भारत के लोग इसे अपने पड़ोसी देश के माध्यम से बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. जहां भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक आबादी कम हुई है और बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है. यही कारण रहा है कि भारत को सीएए जैसा कानून लेकर आना पड़ा. ताकि उन देशों के प्रताड़ित उन अल्पसंख्यकों को यहां नागरिकता दी जा सके और शरण दिया जा सके.