Religion

हज की शुरुआत, रुकावटें और पुनःस्थापन का इतिहास

फिरदौस ख़ान

हज इस्लाम के पांच मुख्य स्तंभों में से एक है, जिनमें कलमा, रोज़ा, नमाज़, ज़कात और हज शामिल हैं. हर मुसलमान की तमन्ना होती है कि वह हज करे, क्योंकि यह अल्लाह की रज़ा प्राप्त करने का महत्वपूर्ण ज़रिया है. आज हम जानेंगे कि हज की शुरुआत कैसे हुई, यह बीच में क्यों रुक गया, और फिर से कब शुरू हुआ.

हज की शुरुआत

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से मक्का में अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के साथ मिलकर एक पत्थर की इमारत बनाई, जिसे ख़ाना-ए-काबा कहा जाता है.क़ुरआन में इसका वर्णन है, जहाँ अल्लाह ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम से कहा कि वे लोगों के बीच हज का ऐलान करें ताकि वे अल्लाह के घर का तवाफ़ करने के लिए आएं. इसके बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने में हज की रस्म शुरू हुई.

हज का पुनः आरंभ

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद, मक्का के लोगों ने बुतपरस्ती शुरू कर दी. ख़ाना-ए-काबा में 360 बुत रख दिए गए, लेकिन फिर अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में ये बुत हटा दिए गए . काबा को उसकी असली हालत में लाया गया.नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने साथियों के साथ हज कि. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत को पुनर्जीवित किया. यही हज का पुनः आरंभ था, जो आज तक जारी है.

हज का महत्व

हज इंसान को बुराइयों से दूर रखने और एक पाक साफ़ जीवन की शुरुआत करने का अवसर देता है. क़ुरआन में हज के दौरान की जाने वाली नेकी और परहेज़गारी पर जोर दिया गया है. सही बुख़ारी की एक हदीस के अनुसार, जो व्यक्ति हज इस तरह करता है कि न कोई बुरी बात हो और न कोई गुनाह, वह उस दिन की तरह लौटता है जैसे उसकी माँ ने उसे जन्म दिया था. इस्लाम में हाजियों को विशेष महत्व दिया गया है, और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाजियों के लिए माफ़ी की दुआ की है.