तीस्ता संधि, बांग्लादेश-भारत दोस्ती या हितों का टकराव ?
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डॉ सुजीत कुमार दत्ता
तीस्ता नदी जल बंटवारा समझौता बांग्लादेश-भारत संबंधों में लंबे समय से चले आ रहे विवाद के केंद्र में रहा है. लंबी बातचीत के बावजूद समझौता नहीं हो सका, जिसका मुख्य कारण पश्चिम बंगाल राज्य सरकार और खासकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति है.
राज्य सरकारों के हित और राजनीतिक जटिलताएँ बांग्लादेश और भारत की केंद्र सरकार के बीच समझौते में बाधा बनी हुई हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तीस्ता समझौता कूटनीतिक रिश्तों के लिहाज से महज दोस्ती का संकट है या फिर इस समझौते के पीछे कोई गहरा राजनीतिक और आर्थिक टकराव है ?
तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश के बीच बहने वाली आम नदियों में से एक है, जो दोनों देशों के राजनीतिक, राजनयिक और आर्थिक संबंधों में एक जटिल और अनसुलझा मुद्दा बनी हुई है. शुष्क मौसम के दौरान जल बंटवारे के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच चर्चा शुरू हुई, लेकिन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के कारण समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.
तीस्ता के पानी पर पश्चिम बंगाल का पूरा नियंत्रण है, जिससे नदी के ऊपरी हिस्से में पानी का उपयोग बढ़ गया है और यह बांग्लादेश के लिए एक गंभीर समस्या बन गया है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार यूनुस ने इस समस्या के समाधान के लिए कूटनीतिक और बातचीत आधारित दृष्टिकोण पर जोर दिया.
उनका मानना है कि लंबे समय से लंबित इस मुद्दे को केवल चर्चा के जरिए ही हल किया जा सकता है. उनके मुताबिक तीस्ता समझौते की जरूरत न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि भारत के लिए भी अहम है. डॉ यूनुस ने कहा, ‘हमें साथ बैठकर समस्या का समाधान करना चाहिए. अगर हम जानते हैं कि हमें कितना पानी मिलने वाला है, तो हमारी अर्थव्यवस्था और कृषि की योजना बनाना आसान हो जाएगा.’
तीस्ता संधि: समस्या की जड़
तीस्ता नदी बांग्लादेश के लिए एक महत्वपूर्ण जल संसाधन है. इसका प्रवाह भारत में सिक्किम और उत्तरी पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करता है और ब्रह्मपुत्र में मिल जाता है. बांग्लादेश के उत्तरी भाग में कृषि प्रणाली काफी हद तक तीस्ता के पानी पर निर्भर है.
हालाँकि, शुष्क मौसम के दौरान भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में नदी के पानी के वितरण और उपयोग के कारण, बांग्लादेश के कई क्षेत्रों में पानी की कमी हो जाती है, जो बांग्लादेश के कृषि क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. भारत और बांग्लादेश 1972 से विभिन्न नदियों के जल बंटवारे पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन तीस्ता जल बंटवारा समझौता अनसुलझा है.
इस समझौते की मुख्य समस्या दोनों देशों की भौगोलिक स्थिति, राजनीतिक हित और पानी की मांग है, जो दोनों देशों के बीच संघर्ष का कारण बन रही है. तीस्ता समझौते की राह में पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति एक बड़ी बाधा बनती दिख रही है.
तीस्ता जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर करने की योजना को 2011 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के तहत लगभग अंतिम रूप दिया गया था. हालाँकि, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस सौदे को मंजूरी देने से इनकार कर दिया और दावा किया कि पश्चिम बंगाल में जल संकट है. तब से, तीस्ता संधि कभी प्रकाश में नहीं आई.
तीस्ता नदी जल आवंटन का मुद्दा बांग्लादेश के लिए एक महत्वपूर्ण जल संसाधन मुद्दा है. तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश के कुछ उत्तरी जिलों की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है. हालाँकि, शुष्क मौसम के दौरान भारत द्वारा अपस्ट्रीम से पानी वापस लेने और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जल वितरण के विरोध के कारण, बांग्लादेश के उत्तरी जिलों में जल संकट गहरा रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय कानून और बांग्लादेश की मांगें
तीस्ता नदी न केवल एक आम नदी है, दोनों देशों के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है. अपस्ट्रीम में भारत की गतिविधियाँ बांग्लादेश के लिए एक बड़ा झटका रही हैं . तीस्ता के पानी को एक नदी के रूप में साझा करने पर कोई समझौता नहीं हुआ है. अंतरराष्ट्रीय नदियों के मामले में, जल बंटवारा अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार होना चाहिए, जहां अपस्ट्रीम देश अपस्ट्रीम के साथ-साथ डाउनस्ट्रीम देशों के अधिकारों को मान्यता देते हैं.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने कहा कि तीस्ता संधि पर मतभेद सुलझाने के लिए भारत से बातचीत की जाएगी. लंबे समय से अनसुलझा यह मुद्दा दोनों देशों के लिए हानिकारक है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत जरूरी है कि इस मुद्दे का समाधान हो. हमें अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार पानी साझा करना चाहिए, जहां बांग्लादेश जैसे निचले देशों के अधिकार सुरक्षित हैं.
ममता की भूमिका और पश्चिम बंगाल संकट
जब 2011 में तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्रीमनमोहन सिंह ने बांग्लादेश का दौरा किया, तो तीस्ता संधि पर हस्ताक्षर किए जाने थे. लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति के कारण अंतिम समय में यह डील टूट गई. उनकी मुख्य चिंता पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में कृषि और सिंचाई थी. उनके मुताबिक, अगर समझौते के मुताबिक बांग्लादेश को ज्यादा पानी की आपूर्ति की गई तो पश्चिम बंगाल की कृषि व्यवस्था चरमरा सकती है.
ममता बनर्जी का रुख न केवल क्षेत्रीय हितों पर केंद्रित माना जाता है,इसे भारतीय केंद्र सरकार के साथ उनके राजनीतिक संबंधों की अभिव्यक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है. केंद्र सरकार के साथ अपने राजनीतिक विरोध के कारण, पश्चिम बंगाल के राजनीतिक संदर्भ में अपने नेतृत्व को मजबूत करने के लिए, ममता बनर्जी ने बार-बार विभिन्न राष्ट्रीय परियोजनाओं और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का विरोध किया है.
उनके इस रुख के कारण तीस्ता संधि को लेकर भारत की केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आंतरिक विवाद पैदा हो गया, जिसका बांग्लादेश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.
आलोचकों का मानना है कि ममता राजनीतिक उद्देश्यों के लिए समझौते का इस्तेमाल कर रही हैं और पश्चिम बंगाल के लोगों के हितों की रक्षा के नाम पर बांग्लादेश को समझौते से वंचित कर रही हैं. हालाँकि, पश्चिम बंगाल की इस स्थिति के कारण बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्ते को नुकसान हो रहा है. तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होने से बांग्लादेश पर असर गहरा रहा है. दोनों देशों के बीच रिश्ते और तनावपूर्ण हो गए हैं.
समाधान: चर्चा और सहयोग
तीस्ता समझौते के समाधान के लिए कूटनीतिक बातचीत की आवश्यकता है. दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद हो सकती है. तीस्ता मुद्दे पर बांग्लादेश और भारत के बीच सहयोग की जरूरत है. दोनों देश अपने हितों को बरकरार रखते हुए अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित समझौते पर पहुंच सकें.
डॉ यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार इस मुद्दे को सुलझाने की इच्छुक है. भारत के साथ राजनयिक वार्ता करने की योजना बना रही है. इस चर्चा में मुख्य मुद्दा तीस्ता जल के अपस्ट्रीम के उपयोग को नियंत्रित करना और डाउनस्ट्रीम देश बांग्लादेश के लिए उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है.
तीस्ता संधि जैसे मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय कानून के आलोक में हल करना महत्वपूर्ण है. साझा नदियों के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार पानी का उचित हिस्सा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. अगर यह मुद्दा नहीं सुलझा तो बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में और जटिलताएं आ सकती हैं. दोनों देशों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
तीस्ता समझौता लंबे समय से चला आ रहा है, जो दोनों देशों के रिश्तों के लिए बड़ा मुद्दा है. तीस्ता समझौता बांग्लादेश-भारत संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है, जहां दोनों देश अपने हितों को बनाए रखते हुए राजनयिक और राजनीतिक सहयोग के माध्यम से मुद्दों को हल करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं.
अगर तीस्ता जल बंटवारा मुद्दा नहीं सुलझा तो यह मुद्दा दोनों देशों के रिश्तों में और जटिलताएं पैदा कर देगा. लेकिन डॉ. यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की रुचि और भारत के साथ कूटनीतिक बातचीत से समस्या का समाधान निकलने की संभावना है.
(प्रोफेसर डॉ. सुजीत कुमार दत्ता . पूर्व अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, चटगांव विश्वविद्यालय.ढाका पोस्ट से साभार. यह लेखक के अपने विचार हैं.)