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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव : सेब बना अहम मुद्दा, अनुच्छेद 370 हटने के बाद सेब उत्पादकों की हालत बदतर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में सोना बरसने लगेगा, हर हाथ को काम मिलेगा, आतंकवाद छू मंतर हो जाएगा. करीब पांच वर्ष पहले केंद्र की बीजेपी सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर को मिला हुआ विशेष दर्जा खत्म किया तो इसी तरह के दावे किए गए थे. मगर आज स्थिति यह है कि यदि कुछ दलाल मीडिया ऐसी बकवास बंद कर दें तो कश्मीर आज भी वैसा ही है जैसा पांच साल पहले हुआ करता पहले हुआ करता था.

हद तो यह है कि कश्मीर जिस सेब के लिए देश-दुनिया में चर्चित है, आज उसके उत्पादकों की स्थिति पहले से अधिक बदतर हुई है. कश्मीर बर्फीली पहाड़ियों और सेब के लिए मशहूर है. मगर मौजूदा सरकार की नीतियों के चलते यहां पर्यटकों की अत्याधिक चिलपों से इसके हिमायती एक चर्चित आईएएस अधिकारी को भी सोशल मीडिया पर लिखना पड़ा कि पर्यावरण में आए बदलाव के चलते इस बार उसकी ‘अम्मी’ को अधिक गर्मी झेलनी पड़ी. रही बात कश्मीरी सेब की तो पहले ही बताया जा चुका है कि उत्पादन और उत्पादक दोनांे बेहद परेशान हैं.

दैनिक नवभारत टाइम में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार,श्रीनगर से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित पुलवामा के एक गांव में सेबों की पैकिंग हो रही है, लेकिन काम करने वाले लोग असमंजस में हैं कि इस साल उनके सेब कितने बिकेंगे. ऑर्डर की कमी ने उनकी चिंताओं को बढ़ा दिया है. सेब कारोबारी आसिफ बताते हैं कि उन्हें इतने ऑर्डर भी नहीं मिल रहे जिससे लागत निकल सके. पिछले दो साल से यही हालात है. पहले उनके सेब देश के हर हिस्से में जाते थे, लेकिन अब इटली और तुर्किए के सेबों ने उनकी जगह ले ली है. केवल आसिफ ही नहीं, पुलवामा के अधिकतर सेब कारोबारी और किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं. अब यह मुद्दा जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी छा गया है. किसान और कारोबारी खुलकर कह रहे हैं कि जो पार्टी उनकी समस्याओं का हल निकालेगी, वे उसी को वोट देंगे.

पिछले तीन वर्षों में पुलवामा और इसके आस-पास के क्षेत्रों में सेब की बिक्री 30 प्रतिशत तक घटी है. इस गिरावट ने राजनीतिक दलों को भी सक्रिय कर दिया है, जो अब किसानों को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं.

सेब उत्पादन और कश्मीर की अर्थव्यवस्था

पुलवामा और उसके आसपास के इलाकों में 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेब के कारोबार से जुड़े हुए हैं. पूरे जम्मू-कश्मीर में लगभग 40 लाख लोग सेब उत्पादन और व्यापार में लगे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कश्मीर से हर साल 20 लाख मीट्रिक टन सेब भारत के बाहर निर्यात होता है. देश के सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर की हिस्सेदारी लगभग 74 प्रतिशत है.

बिक्री में गिरावट

कश्मीरी सेब की बिक्री में गिरावट का सबसे बड़ा कारण विदेशी सेबों का बढ़ता प्रभाव है. खासकर इटली और तुर्किए से आने वाले सेब. इन देशों से आने वाले सेब की गुणवत्ता बेहतर है. कीमतें भी कश्मीरी सेब के बराबर हैं. पुलवामा के एक अन्य सेब कारोबारी अस्फाक अहमद का कहना है कि कश्मीरी सेब की गुणवत्ता विदेशी सेबों के मुकाबले कमजोर है. वह मानते हैं कि कश्मीरी किसान भी बेहतर सेब उगा सकते हैं, लेकिन इसके लिए पर्याप्त पूंजी की जरूरत है. वे सरकार से पैकेज और अन्य सहायता की मांग कर रहे हैं.

उच्च घनत्व प्लांटेशन

विदेशी सेबों की गुणवत्ता से मुकाबला करने के लिए हाई डेंसिटी प्लांटेशन की जा रही है, जिसमें प्रति प्लांटेशन लगभग 3-4 लाख रुपये का खर्च आता है. हालांकि, किसानों को सरकार से सब्सिडी और सहायता मिल रही है, लेकिन पूरी तरह से बदलाव में चार-पांच साल लग सकते हैं. छोटे किसान इस बदलाव में पीछे छूट रहे है. उनकी मांग है कि सरकार विदेशी सेबों पर टैक्स लगाए, जैसे बांग्लादेश में कश्मीरी सेबों पर 100 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है.

कतिपय किसान बदलाव से खुश

बारामूला के नसीम अशरफ ने दो साल पहले इटली से आए हाई डेंसिटी वाले सेब के पौधे लगाए और वे इसके नतीजों से खुश हैं. पौधे अगले ही साल फल देने लगे और प्रतिकूल मौसम का असर भी कम हुआ. नसीम का मानना है कि इस तकनीक से कश्मीरी सेब उत्पादक बेहतर कमाई कर सकते हैं.

चुनाव में सेब उत्पादक केंद्र में

कश्मीर की अर्थव्यवस्था सेब पर आधारित होने के कारण चुनाव में इस मुद्दे को नजरअंदाज करना मुश्किल है. नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने अपने चुनाव घोषणापत्र में सेब के आयात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, जिससे उन्हें समर्थन मिल रहा है. अन्य राजनीतिक दल भी सेब उत्पादकों के लिए आकर्षक वादे कर रहे हैं.

बीजेपी सरकार में सेब उत्पादन को नुकसान

बीजेपी के पांच साल के शासन में सेब उत्पादन को अधिक नुकसान हुआ है. इसे लेकर सरकार की नीतियां सही नहीं हैं. हिमाचल की तरह कश्मीर की दुनियाभर मंे पहचान है. पर सरकारी नीतियों कश्मीर में विदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर एक तरह से कश्मीरी सेब को निशानी मिटाने पर आमादा है. हद तो यह है कि दस साल से केंद्र में और पांच साल से कश्मीर में बीजेपी सरकार होने के बावजूद विदेशी सेबों के आयात को नियंत्रित नहीं किया जा सका है.