भारत में सांप्रदायिक तनाव की बढ़ती आहट
मुस्लिम नाउ विशेष
दो घटनाओं से मौजूदा हालात को समझा जा सकता है. कुछ दिनों पहले इस लेखक को एक कट्टरवादी हिंदू संगठन का पर्चा हाथ लगा था, जिसमें अपने कार्यकर्ताओं को हिदायत दी गई थी कि वे अपने इलाके में मस्जिदों की स्थिति का पता लगाएं कि वह रजिस्ट्री वाली जमीन पर बनी हुई हैं अथवा नहीं ? उसके बिजली कनेक्शन एवं पानी सप्लाई के कनेक्शन वैध हैं अथवा नहीं. यदि इसमें थोड़ी भी आशंका लगे तो मस्जिद के मामले को उठाएं और फिर स्थानीय पुलिस प्रशासन, उसके बाद कोर्ट तक ले जाएं.
दूसरी घटना ताजी है. लेख लिखने से दो दिन पहले की है. लेखक सुबह जब अपने मुहल्ले के पास के पार्क में माॅर्निंग वाॅक कर रहा था, इस दौरान दो लोग आपस में किसी इलाका जिक्र कर रहे थे कि देखते ही देखते वहां कई मस्जिदों का निर्माण हो गया.
हालांकि, दोनों घटनाएं अलग-अलग हैं और इनमें कोई संबंध नहीं दिखता. मगर समाजशास्त्र के छात्र के होने के नाते जब इसका अवलोकन किया तो इन दोनों घटनाआ में न केवल समानता दिखाई दी, बल्कि आने वाले समय में एक डरावना चेहरा भी नजर आया.
दरअसल, पार्क में जो दो व्यक्ति मस्जिदों की संख्या को लेकर चर्चा कर रहे थे, वह वास्तव में कुछ समय पहले बोए गए जहर के बीच के पौधे बनने का एहसास कराते हैं. इस देश में न जाने कितने मंदिर और मस्जिद अवैध करीके से बनाए गए हैं. जमीन की रजिस्ट्रेशन से लेकर पानी, बिजली के कनेक्शन लेने में लापरवाही बरती गई होगी. अब वह विवाद बनकर सामने आ रहे हैं. आज से 40-50 साल पहले कहां मंदिर-मस्जिद के निर्माण में इतनी सावधानियां बरती जाती थीं ? मगर कट्टरवादी संगठनों ने कुछ साल पहले अपने कार्यकर्ताओं के बीच जो परचे बांटे थे, वह अब विवाद बनकर सामने आ रहे हैं. यहां तक कि आम लोगों के दिमाग में ऐसा नरेटिव भर दिया गया है कि मस्जिदेें अवैध करीके से बनाई जाती हैं और इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है.
शुक्र है कि अभी केवल एक समुदाय किसी अन्य समुदाय के धर्मस्थल का हिसाब-किताब ले रहा है. इस देश में कई धर्मां को मानने वाले हैं. यदि वे सभी दूसरे धर्मों को दुश्मन मानकर उनके धर्मस्थलों का गणित-भूगोल खोजने लगे तो न जाने क्या होगा ?
ऐसे ही विवादों में अभी देश के दो पहाड़ी प्रदेश हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जल रहे हैं. मत समझिए कि ऐसा केवल यहां ही हो रहा है. बड़ी तस्वीर नजर आनी बाकी है. मगर चिंताजनक बात यह है कि सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी स्तर पर ऐसे विवादों को खड़ा होने से पहले दबाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है. सत्ता की लालच में इसे हवा देने की कोशिश की जा रही है. मगर उन्हें यह सोचना चाहिए कि यह मसला केवल मस्जिदों तक सीमित नहीं रहने वाला. समय रहते इसे दबाया नहीं गया तो ऐसे और न जाने कितने विवाद कहां-कहां देखने को मिलेंगे. इस देश में एक धर्म विशेष बहुसंख्यक है.
जाहिर है मस्जिदों के मुकाबले उसके धर्म स्थल वैध और अवैध करीके से अधिक संख्या में बन रहे हैं. ऐसे में जनसंख्या की बहुलता के हिसाब से इसी तरह लोग दुश्मनी उतारते रहे तो देश की शांति बहुल जल्द छिनने वाली है. उसके बाद तो भारत को विकसित देश बनाने का सपना न जाने कहां खो जाएगा. ऐसे में एक संगठन ने जो एक खास समुदाय के खिलाफ सांस्कृतिक युद्ध छेड़ रखा है, वह चिंता बढ़ाने वाला है. अलग बात है कि सभी दरवाजे सत्ता की ओर नहीं जाते, कुछ खाईयों की ओर भी ले जाते हैं.