नागपुर में मौलाना पारेख स्मृति व्याख्यान: धर्म और चरित्र निर्माण पर गहन मंथन
आफताब आलम खान, नागपुर
नागपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह हॉल में एक ऐतिहासिक और भव्य आयोजन हुआ. अवसर था पद्म भूषण मौलाना अब्दुल करीम पारेख की स्मृति में आयोजित 16वां स्मृति व्याख्यान. कार्यक्रम में देशभर से आए विद्वान, शिक्षाविद और समाजसेवी एक मंच पर एकत्रित हुए. मौलाना अब्दुल करीम पारेख, जिन्हें इस्लामी विद्वान, सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक और महान मानवतावादी के रूप में जाना जाता है, उनके विचारों और योगदान को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से यह व्याख्यान आयोजित किया गया.
इस आयोजन में दीक्षांत हॉल खचाखच भरा हुआ था. नागपुर जैसे शहर में इतने बड़े स्तर पर विद्वानों और समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी ने इसे एक विशेष और अद्भुत अनुभव बना दिया. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विजय फणसीकर, जो हितवाद समाचार पत्र के प्रधान संपादक हैं, ने “चरित्र निर्माण में धर्म की भूमिका” विषय पर अपने विचार साझा किए.
उनका व्याख्यान अत्यंत विचारोत्तेजक और गहन था.
फणसीकर ने इस बात पर जोर दिया कि धर्म केवल विश्वास, अनुष्ठानों और परंपराओं का समूह नहीं , बल्कि इसका उद्देश्य मनुष्य के चरित्र का निर्माण करना है. उन्होंने भगवद गीता, पवित्र कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों से उद्धरण देकर समझाया कि धर्म मानव को भीतर से सशक्त और नैतिक बनाता है.
उनका यह व्याख्यान श्रोताओं के लिए प्रेरणादायक रहा और इस धारणा को चुनौती दी कि धर्म का चरित्र निर्माण से कोई संबंध नहीं है.
विशेष रूप से, इस कार्यक्रम में नागपुर के मुसलमानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया. महिलाएँ, पुरुष, युवा, छात्र, शिक्षाविद और समाजसेवी सभी ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
नागपुर, जो संतरे और जीरो माइल के लिए जाना जाता है, अब शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है. साथ ही, यह शहर सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक नेतृत्व के लिए भी प्रसिद्ध हो रहा है.
मौलाना अब्दुल करीम पारेख का योगदान इसमें अहम रहा है. उन्होंने पचास के दशक में कुरान सीखने और सिखाने के आंदोलन की शुरुआत की थी, जो आज उनके परिवार के सदस्यों द्वारा न केवल भारत में, बल्कि अन्य देशों में भी ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यमों से फैलाया जा रहा है.
कार्यक्रम का समापन मौलाना पारेख के कुरान शिक्षा आंदोलन के लिए विशेष प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं के साथ हुआ. यह आयोजन मौलाना पारेख की विरासत को आगे बढ़ाने और समाज में सहिष्णुता और नैतिकता की भावना को बढ़ावा देने का प्रतीक बना.