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सऊदी क्राउन प्रिंस पर द अटलांटिक की रिपोर्ट , साजिश का अंदेशा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, रियाद

विजन 2030 को कामयाब बनाने के लिए सऊदी क्राउन प्रिंस ने कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जिसे विश्व के मुसलमानों का एक वर्ग पसंद नहीं करता. मगर इसी बहाने उन्हें मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए साजिशें भी शुरू हो गई हैं. इसके लिए अमेरिका के एक प्रोपगैंडा मीडिया ‘द अटलांटिक’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट का सहारा लिया जा रहा है और बताया जा रहा है कि सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान ने यह कहकर मुस्लिम वर्ग को बड़ा झटका दिया है कि उन्हें फिलिस्तीन के मुददे की परवाह नहीं.

द अटलांटिक ने अपनी इस बात को साबित करने के लिए जनवारी की उक्त घटना का हवाला दिया जब अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार सऊदी अरब में थे.

सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान को बदनाम करने की साजिश कितनी गहरी है कि द अटलांटिक में प्रकाशित रिपोर्ट को दूसरे मुस्लिम विरोधी मीडिया प्रमुखता से ले रहे हैं, पर इस मुददे पर सऊदी क्राउन प्रिंस की ओर से आए स्पष्टिकरण को तरजीह नहीं दे रहे हैं या बहुत कम जगह दी जा रही है.

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द अटलांटिक मंे प्रकाशित रिपोर्ट को लेकर सवाल उठ रहा है कि जब इजरायल ने लेबनान में एक नई जंग छेड़ दी है तो ऐसे समय ऐसी रिपोर्ट छापने का क्या अर्थ ? फिर यह कैसे साबित होगा कि सऊदी क्राउन प्रिंस ने जनवारी में यह बातें कही ही हैं ? दरअसल, मुस्लिम विरोधी मीडिया हर उस शख्सियत के साथ माइंड गेम खेल रही है जो इजरायल के खिलाफ बड़ी आवाज साबित हो सकते हंै.सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान भी ऐसे ही लोगों में हैं.

हाल के वर्षों में उन्होंने अपने काम से विश्व स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई है, जिससे उनके विरोधियों को परेशानी है. इसलिए जैसे ही द अटलांटिक की रिपोर्ट सामने आई, बिना तस्दीक किए और इस पर सऊदी क्राउन प्रिंस की प्रतिक्रिया लिए हू ब हू छाप दिया गया. हद तो यह है कि भारत में मुस्लिम विरोधी सोशल मीडिया पर यह संदेश खूब चल रहा-‘‘सऊदी अरब ने मुसलमानों को दिया बड़ा झटका !
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने फलीस्तीन के खिलाफ बड़ा बयान दिया है !

मुझे फलीस्तीन के मुद्दों से कोई फर्क नहीं पड़ताए मुझे फलीस्तीन की कोई परवाह नहीं .हम यहां फलीस्तीन के समर्थन में कोई गतिविधि नहीं होने देंगे .’’

यहां एक सवाल उन समझदारों से. क्या एक शासनाध्यक्ष की व्यक्गित राय किसी ऐसे मसले पर हो सकती है जिससे उसका देश और दुनिया प्रभावित हो ? जवाब होगा नहीं ! ठीक उसी तरह सऊदी क्राउन प्रिंस के जिस बयान का हवाला दिया जा रहा है, वह उनकी व्यक्गित राय हो सकती है. और कोई भी अपनी व्यक्तिग राय देश की नीतियों के विरूद्ध रख सकता है, बशर्ते की इससे उसपर देशद्रोह का इल्जाम न लगे.

सऊदी क्राउन प्रिंस ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है अथवा दिया भी है तो पहले उसकी पुष्टि होनी चाहिए थी. दूसरा, किसी के व्यक्तिगत राय से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

इससे इतर मुस्लिम विरोधी मिडिल ईस्ट आई ने रिपोर्ट प्रकाशित की है-सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से इस बात की परवाह नहीं है कि उन्होंने फिलिस्तीनी मुद्दे के रूप में क्या कहा.

बुधवार को प्रकाशित इस रिपोर्ट में गाजा में युद्ध छिड़ने के बाद क्षेत्र में वाशिंगटन के 11 महीनों के वार्ता प्रयासों की एक तस्वीर दी गई है, जिसमें अमेरिका और पूरे मध्य पूर्व में सरकार के उच्चतम स्तरों पर दो दर्जन प्रतिभागियों का हवाला दिया गया है.

इसमें कहा गया है कि जनवरी में सऊदी अरब की यात्रा के दौरान, ब्लिंकन और क्राउन प्रिंस ने सऊदी शहर अल-उला में मुलाकात की, ताकि गाजा पर चल रहे इजरायली युद्ध के बीच खाड़ी राज्य द्वारा इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की संभावना पर चर्चा की जा सके.

महीनों पहले, रियाद ने अमेरिका के नेतृत्व वाली चर्चाओं के दौरान इजरायल के साथ संबंध बनाने में प्रगति की थी, जो बाद में 7 अक्टूबर को युद्ध छिड़ने से पटरी से उतर गई.इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है-यदि सामान्यीकरण समझौता होता है, तो क्राउन प्रिंस ने ब्लिंकन से गाजा में शांति की इच्छा व्यक्त की.

द अटलांटिक के अनुसार, ब्लिंकन ने पूछा कि क्या सउदी इस बात को बर्दाश्त कर सकते हैं कि इजरायल समय-समय पर घेरे हुए गाजा पट्टी पर हमला करने के लिए क्षेत्र में फिर से प्रवेश करे.मोहम्मद बिन सलमान ने जवाब दिया, वे छह महीने, एक साल में वापस आ सकते हैं, लेकिन मेरे इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद नहीं.

क्राउन प्रिंस ने ब्लिंकन को समझाया, मेरी सत्तर प्रतिशत आबादी मुझसे कम उम्र की है.उनमें से अधिकांश के लिए, वे वास्तव में फिलिस्तीनी मुद्दे के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते थे. और इसलिए उन्हें इस संघर्ष के माध्यम से पहली बार इससे परिचित कराया जा रहा है. यह एक बहुत बड़ी समस्या है. क्या मैं व्यक्तिगत रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे के बारे में चिंतित हूँ? मैं नहीं हूँ, लेकिन मेरे लोग चिंतित हैं, इसलिए मुझे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि यह सार्थक हो.”

फिलिस्तीनी राज्य के बिना कोई समझौता नहीं

एक सऊदी अधिकारी ने द अटलांटिक से बातचीत के इस विवरण को “गलत” बताया.सार्वजनिक रूप से, मोहम्मद बिन सलमान ने कहा है कि सऊदी अरब पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किए बिना इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य नहीं करेगा.

रियाद में शूरा परिषद के समक्ष हाल ही में एक वार्षिक संबोधन में उन्होंने कहा, “देश पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश स्थापित करने के अपने परिश्रमी प्रयासों को बंद नहीं करेगा.”

‘मेरे आधे सलाहकारों का कहना है कि यह सौदा जोखिम के लायक नहीं है.इस सौदे के कारण मेरी हत्या हो सकती है.’

जेविश न्यूज सिंडिकेट ने भी इसे रिपोर्ट बनाया है. रिपोर्ट में कहा गया है-‘‘द अटलांटिक के अनुसार, इजरायल के साथ सामान्यीकरण सौदे के बदले में, सऊदी अरब वाशिंगटन के साथ एक पारस्परिक रक्षा संधि में प्रवेश करना चाहेगा.

इसके लिए अमेरिकी सीनेट के दो-तिहाई सदस्यों से अनुमोदन की आवश्यकता होगी, जिसके बारे में क्राउन प्रिंस ने ब्लिंकन को बताया कि यह बिडेन प्रशासन के तहत सबसे अधिक संभावना है. यह आंशिक रूप से इस धारणा के कारण था कि यदि इस समझौते में फिलिस्तीनी देश का निर्माण किया जाता है तो अमेरिकी प्रगतिवादी इसका समर्थन कर सकते हैं.

मोहम्मद बिन सलमान ने ब्लिंकन से कहा कि इजरायल के साथ सामान्यीकरण समझौते को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. उन्होंने मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात का उदाहरण दिया, जिनकी 1981 में इजरायल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ साल बाद हत्या कर दी गई थी.

सऊदी नेता ने कहा, मेरे आधे सलाहकार कहते हैं कि यह सौदा जोखिम के लायक नहीं है. इस सौदे के कारण मेरी हत्या हो सकती है.युद्ध के शुरुआती चरणों के दौरान मतदान से पता चला कि 90 प्रतिशत से अधिक सउदी मानते थे कि अरब राज्यों को इजरायल के साथ संबंध खत्म कर देने चाहिए.

इसके बावजूद, सऊदी अरब में फिलिस्तीनी एकजुटता के कृत्यों पर नकेल कसी गई है. सोशल मीडिया पर संघर्ष पर राय व्यक्त करने के लिए लोगों को हिरासत में लिए जाने की खबरें हैं. साथ ही पवित्र शहर मक्का में फिलिस्तीनी केफियेह पहनने के लिए भी लोगों को हिरासत में लिया गया है.

फिलिस्तीन के लिए पूर्ण समर्थन

इस महीने की शुरुआत में, मिडिल ईस्ट आई ने सऊदी अरब के वरिष्ठ राजकुमार तुर्की अल-फैसल से राज्य में फिलिस्तीनी एकजुटता पर नकेल कसने के बारे में पूछा.“मैंने सऊदी अरब में फिलिस्तीन के लिए अपने समर्थन की अभिव्यक्ति पर कोई प्रतिबंध महसूस नहीं किया है, न ही मैंने कोई विशेष प्रतिबंध देखा है.

एक अन्य मुस्लिम विरोधी मीडिया ने रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है-25 सितंबर को द अटलांटिक में गाजा में युद्ध पर प्रकाशित एक फीचर लेख के अनुसार, सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से एक निजी बातचीत में कहा कि उन्हें फिलिस्तीनी मुद्दे की परवाह नहीं.

हालांकि, 39 वर्षीय शासक ने इस बात पर जोर दिया कि सऊदी अरब की आम आबादी के लिए फिलिस्तीनी महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने जनसांख्यिकी पर ध्यान दिलाया कि 70 प्रतिशत लोग उनसे कम उम्र के हैं.

उनमें से अधिकांश के लिए, वे वास्तव में फिलिस्तीनी मुद्दे के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते थे. इसलिए उन्हें इस संघर्ष के माध्यम से पहली बार इससे परिचित कराया जा रहा है. यह एक बहुत बड़ी समस्या है. क्या मैं व्यक्तिगत रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे के बारे में परवाह करता हूँ? मुझे परवाह नहीं है, लेकिन मेरे लोगों को परवाह है, इसलिए मुझे यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि यह सार्थक हो.

हालाँकि, फ्रेंकलिन फॉयर के लेख में उल्लेख किया गया है कि एक सऊदी अधिकारी ने इस बातचीत के विवरण को गलत बताया है.

यह टिप्पणी कथित तौर पर जनवरी में मदीना प्रांत में अल-उला में ब्लिंकन की यात्रा के दौरान की गई थी. यह टिप्पणी 7 अक्टूबर के हमास के नेतृत्व वाले नरसंहार के महीनों बाद और रियाद और यरुशलम के बीच सामान्यीकरण समझौते की बिडेन प्रशासन की खोज के संदर्भ में कही गई थी.

यहां सवाल उठता है कि क्या किसी की व्यक्तिगत राय को इस तरह उछाली जा सकती है ? साथ ही यह सवाल भी अहम है कि क्या किसी की व्यक्तिगत राय को इतना महत्व देने की आवश्यकता है ? जाहिर सी बात है, साशिकर्ताओं को तो ऐसी बातों की जरूरत पड़ती ही है.

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