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मुसलमानों को ईशनिंदा के खिलाफ अपनी रणनीति में बदलाव की जरूरत

भारतीय समाज में आज एक विशेष रणनीति देखी जा रही है, जिसका उद्देश्य मुसलमानों को लगातार असुरक्षित और हेरफेर करने योग्य समुदाय के रूप में स्थापित करना है. यह रणनीति उस दक्षिणपंथी वैचारिक नेतृत्व द्वारा बनाई गई है जो मानता है कि भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक भावनात्मक और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, इसलिए उन्हें आसानी से गैर-मुद्दों की ओर धकेला जा सकता है. इस तरह की विचारधारा के पीछे मौजूद संगठन और नेता समाज में ध्रुवीकरण का माहौल बनाने के लिए काम करते हैं.

दक्षिणपंथी संगठनों के पास अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कई साधु-संत, महंत और धर्मगुरु हैं, जिनका इस्तेमाल वे मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए करते हैं. ये संगठन एक योजनाबद्ध तरीके से किसी एक को निर्देशित करते हैं कि वह पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करे, जिससे मुसलमानों की भावनाओं को आहत किया जा सके और उन्हें भड़काया जा सके.

अतीत में रामगिरी और नितेश राणे जैसी शख्सियतों ने इस तरह की अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया, और हाल ही में डासना मठ के यतिनंद ने भी ऐसा ही किया. यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. इन घटनाओं का उद्देश्य मुसलमानों को आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और रैलियों में उलझाना होता है, ताकि उनके संसाधनों और समय को गैर-जरूरी मुद्दों पर बर्बाद किया जा सके.

रणनीति और साजिश

धर्मनिरपेक्ष समाज में यह स्थिति बहुत ही गंभीर है, जहां मुसलमानों को बार-बार ईशनिंदा से जुड़े मुद्दों में उलझाया जाता है. दक्षिणपंथी वैचारिक रणनीतिकार इस बात से खुश होते हैं कि मुसलमान इस जाल में फंस जाते हैं. जब एक अपमानजनक वीडियो या बयान जारी होता है, तो मुस्लिम समाज में एक भावनात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिलती है. लोग वीडियो और संदेशों को तेजी से फैलाने लगते हैं, जिससे यह विवाद और भी बढ़ जाता है.

इस प्रकार की घटनाएं बहुसंख्यक समुदाय को ध्रुवीकृत करने का एक साधन बन जाती हैं. इसके जरिए समाज में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की जाती है. यही रणनीति मक्का के मुशरिकों ने पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के खिलाफ अपनाई थी. उस समय मुशरिकों का मकसद पैगंबर और उनके साथियों का ध्यान भटकाना था, ताकि वे अपने मिशन से दूर हो जाएं.

कुरान का मार्गदर्शन

ऐसी स्थितियों में कुरान मुसलमानों को स्पष्ट निर्देश देता है. सूरह हिज्र (15:95-98) में अल्लाह स्वाभाविक रूप से पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को निर्देश देते हैं कि वे इन उपहास करने वालों की बातों पर ध्यान न दें. अल्लाह कहता है, “हम उपहास करने वालों के विरुद्ध तुम्हारे लिए पर्याप्त हैं” (15:95). अल्लाह यह भी कहता है कि वे जो बातें कहते हैं, वह उन्हें जानते हैं और जो वे करते हैं उसका हिसाब खुद अल्लाह करेगा. मुसलमानों को उन अपमानजनक व्यक्तियों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि अल्लाह की इबादत में लगना चाहिए और अपने मिशन को जारी रखना चाहिए.

यह निर्देश आज के मुसलमानों के लिए भी प्रासंगिक हैं. उन्हें इस बात को समझने की जरूरत है कि ईशनिंदा करने वाले लोगों को नजरअंदाज करना ही सबसे बेहतर जवाब है. ऐसे लोगों को कोई महत्व नहीं देना चाहिए और उनके खिलाफ भावनात्मक या भौतिक प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए. समय के साथ ये लोग इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिए जाएंगे.

रणनीति में बदलाव की जरूरत

आज की परिस्थितियों में मुस्लिम नेतृत्व को अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. हर बार विरोध और प्रदर्शन से प्रतिक्रिया देने के बजाय, मुस्लिम समाज को अपने संसाधनों और समय का सही इस्तेमाल करना चाहिए.
एफआईआर दर्ज करने और रैलियां निकालने से स्थिति का कोई ठोस हल नहीं निकलता, बल्कि इससे साजिशकर्ता अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं.

मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं पर आधारित व्यवहार अपनाना चाहिए और अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाना चाहिए. उन्हें अपने धार्मिक और सामाजिक कार्यों में संलग्न रहना चाहिए और इन प्रलोभनों से दूर रहकर अपने असली लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
इस्लाम हमें बताता है कि ऐसे हालात में अल्लाह की इबादत और सजदा करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है.

मुसलमानों को यह समझने की जरूरत है कि हर बार भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करने से साजिशकर्ताओं का मकसद पूरा होता है. हमें कुरान की हिदायतों के अनुसार अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और उन लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए जो केवल हमारी भावनाओं को चोट पहुंचाने के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

लेख सोशल मीडिया वाल से

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