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जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी: बीजेपी और संघ की सियासत को झटका

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली/श्रीनगर

16 अक्टूबर 2024 का दिन जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में एक नया अध्याय लिखने जा रहा है. अनुच्छेद 370 के हटने के पांच साल बाद, उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के साथ ही, जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और संघ की सियासत को एक बड़ी हार का सामना करना पड़ेगा.

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस गठबंधन ने हालिया विधानसभा चुनावों में निर्णायक जीत हासिल की है, और उमर अब्दुल्ला का मुख्यमंत्री बनना अब तय है. यह न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लिए, बल्कि पूरे देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है.

अनुच्छेद 370 के बाद का दौर और बीजेपी-आरएसएस की सियासत

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद, केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सियासी पैठ जमाने की लगातार कोशिशें कीं. बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चुनावी दांव-पेंच में कई विवादास्पद कदम उठाए. चुनावी मैदान में कुछ ऐसे उम्मीदवारों को उतारा गया, जिन पर गंभीर आरोप लगे थे, ताकि उमर अब्दुल्ला जैसे मजबूत नेताओं को रोका जा सके. इसके अलावा, पिछले पांच वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी प्रदेश में मुसलमानों के बीच घुसपैठ करने और “राष्ट्रवाद” के नाम पर अपनी विचारधारा को फैलाने की कोशिश की.

हालांकि, एनसी-कांग्रेस गठबंधन को मिली अप्रत्याशित जीत ने बीजेपी और आरएसएस की सभी योजनाओं को ध्वस्त कर दिया. संघ के राष्ट्रवादी एजेंडे को पीछे धकेलते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों ने अपनी परंपराओं और पहचान को प्राथमिकता दी.

अब यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर में ‘इंडिया गठबंधन’ की सियासत चलेगी और बीजेपी को इस राजनीतिक परिदृश्य से बाहर किया जाएगा. उमर अब्दुल्ला के शपथग्रहण समारोह में इस बदलाव की तस्वीर साफ तौर पर दिखने वाली है.

उमर अब्दुल्ला की शपथ और कांग्रेस-एनसी गठबंधन की जीत

डल झील के किनारे स्थित शेरे कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में 16 अक्टूबर को उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. यह सिर्फ एक राजनीतिक आयोजन नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर में नई उम्मीदों का प्रतीक भी है. उमर अब्दुल्ला के लिए यह शपथ ग्रहण समारोह सिर्फ एक व्यक्तिगत विजय नहीं है, बल्कि अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.

इस आयोजन का महत्व कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए भी खास है. कांग्रेस इस शपथग्रहण समारोह को एकता की शक्ति प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर मान रही है. पार्टी ने शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी शीर्ष नेताओं को आमंत्रित किया है. इसमें राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, ममता बनर्जी, शरद पवार, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव, एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, महबूबा मुफ्ती, भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल जैसे प्रमुख नेताओं के नाम शामिल हैं। इस कार्यक्रम में कई अन्य वरिष्ठ नेता भी हिस्सा ले सकते हैं.

कांग्रेस की भूमिका और गठबंधन की चुनौतियाँ

हालांकि उमर अब्दुल्ला की सरकार में कांग्रेस की हिस्सेदारी अभी तय नहीं हुई है. सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने गठबंधन सरकार में दो मंत्रालयों की मांग की है, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस ने फिलहाल सिर्फ एक मंत्रालय देने का सुझाव दिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन सरकार में उनकी भूमिका प्रमुख रहेगी और वह अपने शर्तों पर काम करेंगी.

कांग्रेस के लिए यह समय बड़ी तस्वीर देखने का है। पार्टी ने अपनी रणनीति में फिलहाल लचीलापन दिखाया है और आगामी महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों में बीजेपी को चुनौती देने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन को एक राष्ट्रीय ताकत बनाने की दिशा में काम कर रही है. जम्मू-कश्मीर में मिली सफलता कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है और इससे पार्टी को पूरे देश में नया आत्मविश्वास मिलेगा.

भविष्य की राजनीति

उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी के साथ जम्मू-कश्मीर में एक नया सियासी दौर शुरू हो रहा है. बीजेपी और आरएसएस की तमाम कोशिशों के बावजूद, प्रदेश के लोगों ने अपनी पारंपरिक राजनीतिक शक्तियों पर भरोसा जताया है. हालांकि, आने वाले समय में एनसी-कांग्रेस गठबंधन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. उन्हें न सिर्फ राज्य के विकास के लिए काम करना होगा, बल्कि बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत सियासी मोर्चा भी तैयार करना होगा.

उमर अब्दुल्ला और उनके सहयोगियों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि राज्य में स्थिरता और शांति बनाए रखी जाए. जम्मू-कश्मीर के लिए यह समय विशेष रूप से संवेदनशील है और इस दौर में स्थिरता और सुशासन के महत्व को समझना जरूरी होगा.

जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने से प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है. बीजेपी और संघ की तमाम योजनाओं को पीछे छोड़ते हुए, एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने एक नई दिशा दी है. अब देखना होगा कि यह गठबंधन किस तरह से प्रदेश को एक नई राह पर ले जाता है और प्रदेश के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरता है.

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