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मुंबई में भूखे पेट की इंसानियत को धर्म का बंधन: ‘जय श्रीराम’ नहीं तो खाना नहीं!

मुस्लिम नाउ विशेष

जिस भगवान राम के संदर्भ में दिवाली मनाई जाती है, उसी भगवान को शबरी नामक भिखारन ने जूठे बैर खिलाए थे. उसी भगवान राम को मानने वालों का एक वर्ग गरीबों को खाना खिलाते समय धर्म ढूंता है. देश में हिंदू-मुसलमान के नाम पर नफरत के बीज बोने ऐसे लोग एक बार फिर तब नंगे हो गए जब मुंबई के एक अस्पताल के बाहर भूखों को मुफ्त खाने वाले एक ‘गेरूआ धारी’ ने एक मुस्लिम महिला को यह कहते हुए खाना देने से इंकार कर दिया कि इससे पहले उसे राम के नाम का जयकारा लगाना होगा.

मुंबई में हाल ही में घटी घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करते समय धर्म का भेदभाव करना सही है. यह घटना तब सामने आई जब एक ‘गेरूआ धारी’ व्यक्ति ने मुंबई के एक अस्पताल के बाहर भूखे लोगों को खाना बांटते वक्त एक मुस्लिम महिला को भोजन देने से इनकार कर दिया, क्योंकि महिला ने “जय श्रीराम” का नारा लगाने से मना कर दिया. इस स्थिति ने समाज में इंसानियत और धर्म के बीच की रेखा को उजागर किया, और इस विषय पर लोगों की प्रतिक्रियाएं विभिन्न मंचों पर वायरल हो गईं.

मुंबई के टाटा हॉस्पिटल के पास भूखों को खाना वितरित किया जा रहा था. उसी दौरान जब एक मुस्लिम महिला भोजन की कतार में लगी, तो गेरूआधारी व्यक्ति ने उसे भोजन देने से पहले ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने को कहा. महिला ने इस मांग को अस्वीकार किया, जिसके बाद दोनों के बीच बहस हो गई. इस बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, और इस पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रिया देने लगे. इस विवाद ने एक गहरा सवाल खड़ा कर दिया – क्या किसी भूखे को खाना देते वक्त धर्म का भेदभाव किया जाना चाहिए?

सोशल मीडिया पर विरोध और समर्थन की लहर

इस घटना के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर इसका विरोध कर रहे हैं. हास्य कलाकार राजवी निगम ने इस व्यक्ति को “शैतान” कहा और इसे शर्मनाक बताया. इसी तरह, अन्य लोग भी इस घटना पर नाराजगी जता रहे हैं. एक व्यक्ति ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति किसी को खाना देने के लिए अपने धार्मिक नारे लगाने की मांग करता, तो समाज में उसकी तीव्र आलोचना होती.

दूसरी तरफ, कुछ लोग इस घटना के समर्थन में भी खड़े हुए हैं. सोशल मीडिया पर एक शख्स ने कहा, “राम का देश है, तो श्रीराम की जयजयकार करनी ही होगी,” वहीं पाकिस्तानी क्रिकेटर दानिश कनेरिया ने भी इस व्यक्ति की तारीफ की और लिखा, “इसमें क्या गलत है? आप प्रभु श्रीराम का अपमान करते हैं और मुफ्त भोजन की उम्मीद करते हैं? हिंदुओं में ऐसी धर्मनिरपेक्षता की जरूरत नहीं है.” हालांकि, कनेरिया की टिप्पणी की आलोचना भी हुई, और उसे यह याद दिलाया गया कि यह भारत का मामला है, और भारत को इस मामले को हल करने की पूरी क्षमता है.

पूर्व IAS और अलीगढ़ के ‘नफरती’ का समर्थन

घटना के बाद एक पूर्व IAS अधिकारी और अलीगढ़ के एक व्यक्ति ने इस बात का समर्थन किया कि यदि कोई राम का नाम नहीं लेता, तो उसे भोजन नहीं मिलना चाहिए. उनका कहना है कि ‘भीख किसी का हक नहीं है, राम का देश है, तो श्री राम की जयकार तो करनी ही होगी।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘मुफ्तखोरी’ किसी का अधिकार नहीं है.

इस पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या यही सोच देश की 80 करोड़ गरीब जनता के लिए भी होनी चाहिए, जिन्हें सरकारी राशन मिलता है? अगर सरकार भी धर्म के नाम पर राशन बांटने लगे, तो क्या गैर-हिंदू समुदाय के लोगों को राशन नहीं मिलना चाहिए? यह सवाल उस सोच पर सवालिया निशान खड़ा करता है, जिसमें धर्म का नाम लेकर जरूरतमंदों की मदद से इंकार किया जाता है.

मानवता बनाम धर्म

इस घटना के बाद कई लोगों ने कहा कि देश में दरगाह, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च पर जब जरूरतमंदों को सहायता मिलती है, तो वहां पर कभी धर्म की शर्त नहीं रखी जाती. गुरुद्वारों में ‘लंगर’ में हर धर्म के लोग बैठकर खाना खाते हैं, लेकिन वहां किसी से भी धार्मिक नारा लगाने की मांग नहीं की जाती. क्या समाज में इस तरह की घटनाएं मानवता के ऊपर धर्म को प्राथमिकता दे रही हैं?

मदद के नए कदम और एक सुलझा हुआ नज़रिया


जहां कई लोग इस घटना की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इस महिला की मदद के लिए सोशल मीडिया पर संपर्क की जानकारी भी मांगी है. अश्विनी सोनी नाम के एक व्यक्ति ने ट्विटर पर कहा कि वे इस महिला की सहायता करना चाहते हैं और उसके संपर्क में आने के लिए किसी से जानकारी उपलब्ध कराने का निवेदन किया है.

अश्विनी ने लिखा, “कोई भी मजबूर व्यक्ति ही लंगर की लाइन में लगेगा. मजबूर को अपमानित करने से ओछी हरकत कुछ नहीं हो सकती.” उन्होंने इस महिला की मदद का बड़ा दिल दिखाया, जो इस बात का प्रतीक है कि समाज में अभी भी इंसानियत जिंदा है.

क्या हमारे धर्म और संस्कृति की यही शिक्षा है ?

मुंबई यह घटना कई सवाल छोड़ जाती है. क्या वाकई में समाज अब भूखों को भोजन देने में भी धर्म की शर्तें लगाने लगा है? यह घटना हमें इंसानियत और धर्म के बीच अंतर समझने के लिए मजबूर करती है. सवाल यह है कि क्या हमारे धर्म और संस्कृति की यही शिक्षा है? क्या हमारे राम या अन्य किसी धर्मगुरु ने यही सिखाया है कि भूखों को भोजन देने में धर्म देखा जाए? इस घटना ने एक बार फिर इस समाज के कई तथाकथित बुद्धिजीवियों, पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों और पाकिस्तान में बैठकर भारत के मामलों पर टिप्पणी करने वालों की मानसिकता को उजागर किया है.

देश में अगर सच में राम, अल्लाह, या यीशु की शिक्षा का पालन करना है, तो पहले यह समझना जरूरी है कि सभी धर्म गरीबों और भूखों की सहायता करने की शिक्षा देते हैं. जरूरत है कि हम धर्म के नाम पर लोगों के बीच नफरत न फैलाएं, बल्कि उन्हें एकजुट होकर इंसानियत की राह पर चलने के लिए प्रेरित करें.