सुप्रीम कोर्ट का AMU अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला: स्वागत के बीच मुस्लिम संस्थान के खिलाफ दिलीप मंडल की नफरत का खुलासा
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात-सदस्यीय पीठ ने 1967 के अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए पुराने फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त कर दिया गया था. इस फैसले से एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप को बनाए रखने की संभावनाएं मजबूत हुई हैं, और समाज के विभिन्न तबकों ने इसका स्वागत किया है.
सपा नेता रामजीलाल सुमन की प्रतिक्रिया
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य रामजीलाल सुमन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के प्रति एक सकारात्मक कदम बताया है. सुमन ने राज्यसभा में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की पूर्ण बहाली के लिए निजी विधेयक भी पेश किया है और इसे पारित कराने के लिए प्रयासरत हैं.
सुमन का कहना है कि एएमयू मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित एक ऐतिहासिक संस्थान है, और इसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में संरक्षित करना संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है.
जमीअत उलमा-ए-हिंद का समर्थन और सरकार की आलोचना
जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम वाला बताया है. मौलाना मदनी ने कहा कि यह निर्णय उन तत्वों के लिए एक आईना है जो एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म करने के प्रयास में लगे थे। उन्होंने मौजूदा सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि इसने पिछले रुख से हटते हुए अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त करने के पक्ष में हलफनामा दाखिल किया था, जो सरकार की अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षिक अधिकारों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है.
दिलीप मंडल की प्रतिक्रिया से उठे सवाल
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद जहां कई लोग एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली का समर्थन कर रहे हैं, वहीं दलित अधिकारों की आड़ में कट्टरपंथी विचारों के करीब पहुंचे दिलीप मंडल जैसे कुछ लोग इस फैसले का खुलकर विरोध कर रहे हैं. मंडल, जो पहले कई मीडिया संस्थानों में बड़े पदों पर रहे हैं, पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर एएमयू को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां कर रहे हैं. उनके पोस्टों में एएमयू को संविधान विरोधी ठहराने और दलित, ओबीसी, एसटी के आरक्षण के मुद्दे पर संस्थान के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश साफ नजर आती है.
उन्होंने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए लिखा, “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एससी, एसटी, ओबीसी, EWS आरक्षण लागू होकर रहेगा. देखते रहिए।” मंडल ने इसके जरिए इस फैसले का मजाक उड़ाते हुए अपनी विचारधारा का खुलासा कर दिया.
दिलीप मंडल के दिल में एएमयू को लेकर कितनी नफरत इसकी एक और बानगी देखिए. यह शख्स एक्स पर कहता है-“लीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में संवैधानिक व्यवस्था के तहत एससी, एसटी, ओबीसी और EWS आरक्षण लागू होकर रहेगा। वहाँ का 50% मुस्लिम रिज़र्वेशन जाएगा.
आज इसका रास्ता साफ़ हो गया.इन वर्गों की हकमारी का जो क़ानूनी बंदोबस्त इंदिरा गांधी के समय यानी 1981 में हुआ था, वह ज़्यादा दिन नहीं टिकेगा. पुराना कबाड़ है. हटाने में टाइम लगता है। पर कार्य प्रगति पर है.हालाँकि इसके कारण एससी, एसटी और ओबीसी का लाख से ज़्यादा सीट का नुक़सान अब तक हो चुका है. अब तो ईडब्ल्यूएस का भी हर साल घाटा हो रहा है.
एएमयू क़ानून से बनी सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. पूरी तरह केंद्र सरकार के पैसे से चलती है। संविधान तो लागू होगा. कई लोगों ने अभी सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पढ़ा नहीं है. आज एएमयू का फैसला नहीं हुआ है.अभी सिर्फ़ नियम बताए गए हैं कि कौन सा संस्थान माइनॉरिटी हो सकता है.
आज का जजमेंट है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर नई बेंच बनाई जाएगी. उस फ़ैसले का इंतज़ार करें। अभी जो लोग जश्न मना रहे हैं, वे जल्दबाज़ी में है.”
कट्टरपंथी तत्वों की ओर झुका विमर्श
दिलीप मंडल का यह रवैया कई लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है. वे लगातार एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र पर कटाक्ष करते हुए उसे खत्म करने का अभियान चला रहे हैं. एक और पोस्ट में उन्होंने लिखा कि एएमयू का 50 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण हट जाएगा और इसे पूरी तरह से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में चलाया जाएगा. उनके विचार इस दिशा में इशारा करते हैं कि कैसे वे दलित हितों की आड़ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं.
यह शख्स कई मीडिया संस्थान में उंचे ओहदे पर रहा है, पर आजकल हरकतें बेहद नीच किस्म की कर रहा है. यह पिछले कुछ महीने से मुसलमानों को नीचा दिखाने और दलित की पैरोकारी के नाम पर हिंदू-मुस्लिम की भाईचारगी तोड़ने के प्रयास में लगा है. इसकी मौजूदा मानसिक दशा को समझने के लिए इसके दो एक्स हैंडल पर किए जाने वाले पोस्टों से समझा जा सकता है. यह शख्स जहां खुले तौर पर हिंदूवादी संगठनों और सियासी पार्टी की हिमायत करता नजर आएगा, वहीं कांग्रेस पर आग बरसाने का कोई मौका नहीं छोड़ता.
दलित की पैरोकारो की नाम पर पिछले चुनावों में भी इसने दलितों को भड़काने और मुसलमानों के खिलाफ वातावरण बनाने की कोशिश की. इसी तरह दो दिन पहले सेवानिवृत हुए सुप्रीम कोर्ट के सुपर जज डीवाई चंद्रचूड़ के पीछे पड़ा हुआ था. इसकी सोशल मीडिया की भाषा भी इतनी बेहूदा होती है कि उसके पत्रकार होने पर आप संदेह करने लगेंगे.
एएमयू का ऐतिहासिक और संवैधानिक महत्व
एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा न केवल एक शैक्षणिक अधिकार है बल्कि भारत के मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मुस्लिम समुदाय ने अपने साधनों का योगदान किया, और इसे अल्पसंख्यक दर्जे के रूप में सुरक्षित रखना उनके संवैधानिक अधिकारों का समर्थन है. मौलाना मदनी ने इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले संगठनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय को अपनी शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए और उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज के विकास में अपनी भूमिका निभानी चाहिए.
भविष्य की दिशा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र की बहाली को कानूनी आधार मिला है, लेकिन इस पर अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ द्वारा दिया जाना अभी शेष है. यह निर्णय एएमयू के भविष्य और मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक अधिकारों के प्रति एक उम्मीद की किरण है.