दंगों की दास्तां: अयोध्या विवाद से उपजे हिंसा के काले अध्याय
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मुस्लिम नाउ विशेष
अभी सोशल मीडिया पर गिनाया जा रहा है कि किसकी सरकार में कितने अधिक सांप्रदायिक दंगे हुए. इसके पक्ष और विरोध में खड़े लोगों की अपनी दलीलें और आंकड़े हैं. इन आंकड़ों के सहारे कौन सा पक्ष विजयी कह लाएगा, इससे आम आदमी को कोई फार्क नहीं पड़ता. उन्हें फर्क पड़ता है दंगों से और आयोध्या बाबारी मस्जिद-रामजन्म भूमि आंदोलन ने सांप्रदायिक दंगों के जो जख्म देश के शरीर पर दिए हैं, वह न केवल अब भी रह-रहकर टीस मारते हैं, बल्कि अभी जो सांप्रदायिक नफरत और हिंसा का माहौल है, उसकी जड़ में कहीं न कहीं अयोध्या आंदोलन और इससे जुड़ा सियास इतिहास ही है.
एआई की मदद से जब इसकी तह लाशने की कोशिश की गई तो इससे उन्हें अवश्य शर्मिंदा होना चाहिए जो अभी आंकड़ों के थैले लेकर अपने नेता और सरकार को पाक साफ साबित करने में लगे हुए हैं. यह रिपोर्ट कहती है-अयोध्या का राम मंदिर-राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय इतिहास में सबसे विवादित और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दों में से एक रहा है. इस आंदोलन के दौरान, 1980 के दशक से लेकर 1990 के दशक के अंत तक, भारत ने बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा का सामना किया. इन दंगों में हजारों लोगों की जान गई और सामाजिक ताना-बाना बुरी तरह प्रभावित हुआ. इस लेख में, हम ऐतिहासिक तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर उन दंगों और उसमें हुई मौतों की विस्तृत चर्चा करेंगे.
राम मंदिर-राम जन्मभूमि विवाद: एक पृष्ठभूमि
राम जन्मभूमि विवाद का केंद्र अयोध्या है, जहां राम के जन्मस्थान को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच वर्षों से विवाद चला आ रहा था. 16वीं शताब्दी में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था, जिसे कुछ हिंदू समूह राम जन्मस्थान पर बनी मस्जिद मानते थे.
1980 के दशक में, इस मुद्दे ने राजनीतिक और धार्मिक रंग लिया. 1984 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की शुरुआत की. 1989 में बीजेपी ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया, और 1990 के दशक में यह आंदोलन उग्र रूप ले गया.
सांप्रदायिक दंगों की श्रृंखला
- मेरठ दंगे (1987)
मेरठ में मई 1987 के दौरान सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे. इसकी शुरुआत स्थानीय विवादों से हुई, लेकिन बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद ने इसमें आग में घी का काम किया.
- मारे गए लोग: आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 400 से अधिक लोग मारे गए.
- मुख्य कारण: हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक तनाव.
- भागलपुर दंगे (1989)
बिहार के भागलपुर में अक्टूबर 1989 में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए.
- मृतकों की संख्या: 1,000 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग थे.
- मुख्य कारण: राम जन्मभूमि आंदोलन की रथ यात्रा और इसके दौरान भड़काई गई सांप्रदायिक भावनाएं.
- सरकारी विफलता: दंगों पर नियंत्रण पाने में प्रशासन की नाकामी.
- अयोध्या विवाद और 1990 के दंगे
1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई.
- कानपुर और अन्य शहरों में दंगे: कानपुर में 22 अक्टूबर 1990 को बड़े पैमाने पर हिंसा हुई.
- मृतकों की संख्या: अनुमानित 200 से अधिक लोग मारे गए.
- मुख्य कारण: रथ यात्रा के दौरान धार्मिक नारेबाजी और उग्र भाषण.
- बाबरी मस्जिद विध्वंस (6 दिसंबर 1992)
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, जिसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक हिंसा की लहर दौड़ गई.
हिंसा का दायरा: दंगे मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, कानपुर, दिल्ली और अन्य शहरों तक फैल गए।
मृतकों की संख्या:
- मुंबई दंगे: अकेले मुंबई में दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के बीच लगभग 900 लोग मारे गए.
- अन्य राज्यों: देशभर में 2,000 से अधिक लोग मारे गए.
प्रमुख घटनाएं:
- मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा.
- हिंदू समुदाय के भी कुछ लोग हताहत हुए.
- गोधरा कांड और उसके बाद (2002)
- हालांकि गोधरा कांड सीधे राम जन्मभूमि आंदोलन से नहीं जुड़ा था, लेकिन इसके प्रभाव में 2002 के गुजरात दंगे हुए.
- गोधरा ट्रेन कांड: 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी हुई, जिसमें 59 कारसेवक मारे गए.
गुजरात दंगे: इसके बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़की.
मृतकों की संख्या:
- आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1,000 लोग मारे गए.
- स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, मरने वालों की संख्या 2,000 तक हो सकती है.
- सांप्रदायिक दंगों में मारे गए लोगों का कुल अनुमान
- मेरठ दंगे (1987): 400+
- भागलपुर दंगे (1989): 1,000+
- 1990 के दंगे: 200+
- बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद (1992-93): 2,000+
- गुजरात दंगे (2002): 1,000–2,000
- कुल मृतकों की अनुमानित संख्या: 4,600–5,600
विवाद और आलोचना
- सरकारी विफलता: दंगों को नियंत्रित करने में प्रशासन और पुलिस की नाकामी प्रमुख कारण रही.
- राजनीतिक इस्तेमाल: राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को भड़काने और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया.
मीडिया का रोल: कई जगह मीडिया की रिपोर्टिंग ने आग में घी डालने का काम किया.
आगे का रास्ता
राम मंदिर-राम जन्मभूमि विवाद का समाधान सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बाद हुआ, लेकिन सांप्रदायिक दंगों के घाव आज भी समाज में देखे जा सकते हैं. इस प्रकरण ने दिखाया कि धर्म और राजनीति का घातक मिश्रण समाज को कितना नुकसान पहुंचा सकता है.
समाज के लिए जरूरी है कि धर्म के नाम पर हिंसा से बचा जाए और धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और शांति की भावना को मजबूत किया जाए.
स्रोत और संदर्भ
- सच्चर समिति रिपोर्ट (2006): सांप्रदायिक दंगों का विवरण.
- पीयूसीएल रिपोर्ट (1992): बाबरी विध्वंस के बाद के दंगे.
- इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू की रिपोर्ट्स.
- संपादकीय लेख: “मुंबई दंगे और प्रशासन की विफलता,” इंडियन जर्नल ऑफ पॉलिटिकल साइंस.
- *सावधानः रिपोर्ट में एआई की मदद ली गई है, इसलिए इसमें त्रुटि हो सकती है. मगर इसका उद्देश्य किसी समुदाय को अपराधी ठहराना नहीं है.