संभल में मंदिर पर विवाद: सच्चाई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
संभल के एक पुराने बंद पड़े मंदिर को लेकर हाल ही में जो विवाद खड़ा हुआ, वह न केवल सांप्रदायिकता को भड़काने की कोशिश थी बल्कि समाज के ताने-बाने को कमजोर करने का एक और प्रयास भी. इस मुद्दे पर फैलाई गई भ्रामक जानकारी और इसके पीछे छिपे मकसदों पर नज़र डालना जरूरी है.
मंदिर के बंद होने की पृष्ठभूमि
मोहल्ला खग्गू सराय स्थित इस मंदिर को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब बिजली चेकिंग के दौरान प्रशासन ने इस पर ध्यान दिया. 1978 से बंद पड़े इस मंदिर को ताला लगाकर छोड़ दिया गया था. इसके पीछे वजह थी कि मोहल्ले में हिंदू आबादी कम होने के चलते लोग धीरे-धीरे पलायन कर गए थे.
सम्भल के हिंदू सभा के नगर संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी को सुनिए! वो कह रहे हैं कि मंदिर में ताला उन्होंने ही लगाया था, क्योंकि यहां पुजारी नहीं रह पाता था। चार दशक से मंदिर बंद पड़ा था उसे किसी मुसलमान ने छुआ तक नहीं, उसको कब्ज़ाया भी नहीं। लेकिन इसके बावजूद मुसलमानों पर इलज़ाम है… pic.twitter.com/m2NhsFsqk7
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) December 14, 2024
मंदिर के पुजारी ने अपना मकान बेचकर इलाका छोड़ दिया और मंदिर में ताला लगा दिया था. चार दशकों तक यह मंदिर बंद रहा, लेकिन मुसलमानों की घनी आबादी के बीच इस मंदिर को किसी ने न छुआ, न ही कब्जा किया.
भ्रम और नफरत फैलाने का प्रयास
इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें तुरंत शुरू हो गईं. कुछ ज़फरानी संगठनों और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर यह प्रचार किया कि मुसलमानों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया था या उसे तोड़कर मस्जिद बना दी गई थी.
#संभल : 1978 के बाद से बंद पड़े एक पुराने मंदिर को पुलिस द्वारा खोला गया। पहले इस मंदिर में एक पुजारी रहते थे, लेकिन उन्होंने मंदिर और मोहल्ला छोड़ दिया था। पुजारी का कहना था कि किसी की हिम्मत नहीं होती थी मंदिर में पूजा-पाठ और आरती करने की। पुजारी ने अपना मकान बेचकर मंदिर में… pic.twitter.com/YHCApuGVzz
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हालांकि, संभल के हिंदू सभा के नगर संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी ने इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर में ताला उन्होंने ही लगाया था. इसे किसी मुसलमान ने छुआ तक नहीं. उन्होंने कहा, “यह मंदिर बंद था क्योंकि यहां पुजारी नहीं रह पाते थे. चार दशक से किसी ने इस पर कब्जा नहीं किया.”इस मामले में पत्रकार वसीम अकरम त्योगी ने अनेक ट्वीटकर पूरे मामले को सामने लाने की कोशिश की है.
समाज के लिए एक संदेश
इस घटना ने यह दिखाया कि मुसलमानों ने मंदिर का सम्मान करते हुए उसे जस का तस छोड़ दिया. यहां तक कि उन्होंने इसे न तोड़ा और न ही किसी अन्य धार्मिक स्थल में बदला. यह उन साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने वालों के लिए एक सबक है जो लगातार समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं..
सम्भल के फग्गू सराय के एक हिन्दू निवासी का दावा, "जब हम सन 78 में यहां से मकान बेच कर चले गए तो मेरे भतीजे ने इस मंदिर को ताला लगा दिया था। भगवान शंकर का ये मंदिर अभी भी हमारे कब्जे में है।" लेकिन उस मंदिर को लेकर ज़ाफ़रानी गैंग के प्यादे ऐसे उछल रहे हैं, जैसे उस मंदिर को कब्ज़ा… pic.twitter.com/Vvg0c7ORwi
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) December 14, 2024
मुस्लिम समाज का रवैया और जिम्मेदारी
इस घटना से पता चलता है कि मुसलमान अपने मजहबी उसूलों का पालन करते हुए दूसरे धर्म के स्थानों का आदर करते हैं. किसी के धर्मस्थल पर कब्जा करना उनके लिए न तो उचित है और न ही स्वीकार्य.
सांप्रदायिकता की राजनीति
मंदिर-मस्जिद विवादों को भड़काने का यह खेल नया नहीं है. देश में बार-बार ऐसे मुद्दों को उछालकर समाज को बांटने और राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की जाती है.
यानि इस कहानी का सार यह है कि मुसलमानों की घनी आबादी के बीच एक मंदिर चार दशक से बंद पड़ा था। उस पर ना तो किसी ने कब्ज़ा किया और ना ही उसे तोड़कर उसके ऊपर 'अपना' धार्मिक स्थल बनाया। जबकि अगर वो चाहते तो कर सकते थे। लेकिन मुसलमान अपने मज़हबी उसूलों के पाबंद थे। इसलिए दूसरे का स्थल… https://t.co/2aA6XvHF6Z
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) December 14, 2024
क्या हमें सबक मिलेगा?
जो लोग इस मामले में नफरत और भ्रम फैला रहे थे, उन्हें इस घटना से सबक लेना चाहिए. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बजाय हमें समाज को जोड़ने और भाईचारे को मजबूत करने की जरूरत है.
समाज को चाहिए कि वह इन बातों से ऊपर उठे और सच्चाई को पहचानकर सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखे.