शरिया कानून और सामाजिक समरसता: समय की जरूरत
Table of Contents
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
केरल, जिसे ज्ञान और साहित्य का गढ़ माना जाता है, शिक्षा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. मलयालम भाषा में साहित्यिक कृतियों का समृद्ध इतिहास इस क्षेत्र की बौद्धिक ऊर्जा को दर्शाता है. इस सांस्कृतिक धरोहर में दारुल उलूम इस्लामिया ओचरा जैसे शैक्षणिक संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
इसी क्रम में “तफ़हीम-ए-शरीयत कार्यशाला” और “इस्लाह सोसाइटी” की बैठक का आयोजन किया गया. इस आयोजन का उद्देश्य शरीयत और वक्फ कानून के महत्व को समझाना और इससे संबंधित शंकाओं का समाधान करना था.
यह कार्यशाला केरल के सम्मानित अकादमिक व्यक्तित्व हजरत मौलाना अब्दुल शकूर साहब के नेतृत्व में आयोजित की गई.
मुख्य सहयोगी वक्ता:
- मौलाना सोहेल कासमी (महतमम, दारुल उलूम इस्लामिया)
- मौलाना निसार आलम नदवी (प्रोफेसर, हदीस और फ़िक़्ह)
- मौलाना शेख अंसारी (उपाध्यक्ष, दारुल उलूम इस्लामिया)
सत्रों की अध्यक्षता:
- पहला सत्र: मौलाना बीपी इशाक कासमी
- दूसरा और तीसरा सत्र: मौलाना अब्दुल शकूर कासमी
कार्यशाला की शुरुआत मौलाना अजमल अल-हसानी के नेतृत्व में पवित्र कुरान की तिलावत से हुई. इसके बाद नातिया कलाम पेश किया गया.
पहले सत्र के मुख्य बिंदु
पहले सत्र में मौलाना बीपी इशाक कासमी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की उपयोगिता और इसके योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने बोर्ड के वरिष्ठ नेताओं जैसे हजरत मौलाना कारी मोहम्मद तय्यब, काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी, हजरत मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी (अली मियां), और हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी के योगदान का उल्लेख किया.
वक्फ और शरीयत पर चर्चा
कार्यक्रम में मौलाना मुहम्मद असद नदवी ने “वक्फ का इस्लामी दृष्टिकोण और वक्फ संशोधन विधेयक 2024” विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने वक्फ की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता पर चर्चा करते हुए कहा:वक्फ इबादत का सिलसिला है, जिसे पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) और उनके साथियों ने प्रारंभ किया.
हजरत उमर (र.अ.) ने खैबर की संपत्ति वक्फ की, हजरत अली (र.अ.) ने अबी निज़ार के फव्वारे को समर्पित किया, और हजरत उस्मान (र.अ.) ने मदीना में पानी की समस्या को हल करने के लिए वक्फ संपत्ति समर्पित की.
वर्तमान वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर चिंता
मौलाना असद नदवी ने मौजूदा वक्फ संशोधन विधेयक पर गहरी चिंता व्यक्त की.
चिंताजनक बिंदु:
- विधेयक में वक्फ बोर्ड के लिए मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है.
- इसमें वक्फ संपत्तियों का उपयोग शरीयत की मंशा के बजाय सरकारी भलाई के लिए करने का प्रावधान शामिल है.
- यह संशोधन वक्फ की मूल भावना के खिलाफ है, जो संपत्तियों के इस्लामी उपयोग को सुनिश्चित करता है.
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम के समापन पर मौलाना ज़ैद मोहम्मद अल-कासिमी ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया और वक्ताओं के विचारों का समर्थन किया.
इस कार्यशाला ने शरीयत और वक्फ कानूनों की आवश्यकता और उनकी रक्षा के महत्व को रेखांकित किया। यह सामाजिक समरसता और धार्मिक पहचान बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
शरिया कानून और सामाजिक समरसता पर कार्यशाला
28 दिसंबर को केरल के दारुल उलूम इस्लामिया ओचरा में आयोजित “तफ़हीम-ए-शरीयत” कार्यशाला और “इस्लाह सोसाइटी” की बैठक ने शरीयत के महत्व और सामाजिक सुधार पर गहन विचार-विमर्श किया. इसमें देशभर के विद्वानों और शरिया विशेषज्ञों ने शरीयत के विभिन्न पहलुओं पर व्याख्यान दिया और श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर दिया.
मुख्य वक्ता और उनकी चर्चा
कार्यशाला में हजरत मौलाना मुफ्ती उमर आबिदीन कासमी मदनी (नायब नाज़िम, अल-मुहद अल-आली इस्लामी हैदराबाद) ने विशेष रूप से भाग लिया। उन्होंने अपने संबोधन में मौलाना मुहम्मद असद नदवी के व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए मिस्र, जॉर्डन और सीरिया में वक्फ संपत्तियों के उपयोग और ऑटोमन साम्राज्य के दौरान उनकी व्यवस्था पर चर्चा की.
मौलाना ने इस्लामी शरिया के अंतर्गत मानवता के तीन महत्वपूर्ण रिश्तों पर प्रकाश डाला:
- अल्लाह के साथ संबंध
- स्वयं के साथ संबंध
- अन्य मनुष्यों के साथ संबंध
उन्होंने समझाया कि इस्लाम इन सभी संबंधों को संतुलित करता है। साथ ही, उन्होंने मानव कानूनों पर ईश्वर के कानूनों की प्राथमिकता बताते हुए यह भी कहा कि समानता का अर्थ समान जिम्मेदारियों के अनुसार भिन्नता को स्वीकार करना है. उदाहरण के तौर पर, चौकीदार और प्रोफेसर को समान वेतन देना अनुचित होगा क्योंकि उनकी जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं.
विरासत और अनाथ पोते का मामला
ज़ुहर की नमाज़ और भोजन के बाद सभा का दूसरा सत्र आयोजित हुआ. इस सत्र में मौलाना मुहम्मद असद नदवी ने अनाथ पोते की विरासत के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि इस्लामी विरासत व्यवस्था अत्यंत मजबूत और न्यायपूर्ण है.
- विरासत में हर उत्तराधिकारी को उसका अधिकार दिया जाता है.
- यदि कोई व्यक्ति ज़रूरतमंद और वंचित है, तो शरीयत उसके लिए सहयोग की व्यवस्था सुनिश्चित करती है.
उन्होंने कहा कि अनाथ पोते की विरासत का मुद्दा अक्सर भावनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है, लेकिन जब तक लोग शरीयत के इस आदेश की हिकमत नहीं समझते, इसे अनुचित मानते रहते हैं.
महिलाओं की विरासत में हिस्सेदारी पर चर्चा
अस्र की नमाज़ के बाद हुए तीसरे सत्र में मौलाना मुफ्ती उमर आबिदीन कासमी ने महिलाओं की विरासत में हिस्सेदारी पर व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि इस्लाम पर यह आरोप लगाना कि उसने महिलाओं के साथ न्याय नहीं किया, अज्ञानता पर आधारित है.
- इस्लामी विरासत व्यवस्था में महिलाओं को कई बार पुरुषों से अधिक अधिकार दिए जाते हैं.
- यह सामाजिक न्याय का सबसे सुंदर उदाहरण है.
- उन्होंने समाज सुधार के महत्व पर जोर दिया और कहा कि शरीयत कानूनों को लागू कर सामाजिक समरसता कायम की जा सकती है.
कार्यशाला के समापन सत्र में मौलाना अब्दुल शकूर साहब ने सभी प्रतिभागियों से अपील की कि वे:
- शरीयत कानूनों को समझने और उन्हें अपनाने का हरसंभव प्रयास करें.
- महिलाओं को उनके अधिकार (विरासत में हिस्सेदारी) सुनिश्चित करें.
- समाज में शांति और सद्भावना का वातावरण बनाने के लिए तत्पर रहें.
इस प्रकार, “तफ़हीम-ए-शरीयत” कार्यशाला और “इस्लाह सोसाइटी” की बैठक का सफल समापन हुआ, जिसमें शरीयत और सामाजिक समरसता की आवश्यकता को गहराई से समझाया गया.