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पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंधों में तनाव: पर्दे के पीछे की साजिश

मुस्लिम नाउ विशेष

पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दो पड़ोसी मुस्लिम देशों के बीच हाल के वर्षों में रिश्तों में गहरा तनाव उत्पन्न हुआ है. यह तनाव इस हद तक बढ़ चुका है कि दोनों देश अब एक-दूसरे के खिलाफ कठोर रवैया अपनाने से भी गुरेज नहीं कर रहे.

इसका ताजा उदाहरण इस्लामाबाद में मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर आयोजित वैश्विक शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान की अनुपस्थिति है.पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री खालिद मकबूल सिद्दीकी ने जानकारी दी कि तालिबान सरकार को निमंत्रण भेजा गया था, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ.

तालिबान सरकार की आलोचना और शिक्षा का मुद्दा

इस सम्मेलन का उद्देश्य मुस्लिम देशों में लड़कियों की शिक्षा पर जोर देना था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस मौके पर कहा कि मुस्लिम समाज में लड़कियों को शिक्षा से वंचित करना उनकी आवाज दबाने और उनके उज्ज्वल भविष्य के अधिकार से उन्हें वंचित करने के बराबर है.

शरीफ ने अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर लगाए गए प्रतिबंध को भी आलोचना का विषय बनाया.अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से महिलाओं और लड़कियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए हैं.

छठी कक्षा से आगे की शिक्षा पर रोक के साथ-साथ महिलाओं को नौकरियों और सार्वजनिक स्थलों पर जाने से भी वंचित कर दिया गया है.

इस बीच, दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच हुई बैठक ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी है. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की.

इस बैठक के बाद पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व ने अफगानिस्तान के प्रति अपनी नीतियों पर गहन विचार-विमर्श शुरू कर दिया है.रणनीतिक विश्लेषक आमिर राणा ने चेतावनी दी है कि भारत और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते रिश्ते पाकिस्तान के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि नई दिल्ली ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण परियोजनाओं में करीब 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. भारत और अफगानिस्तान के बीच बढ़ती निकटता इस्लामाबाद के लिए गंभीर चिंताओं का कारण बन रही है.

साजिशकर्ता की भूमिका और मुस्लिम देशों के बिगड़ते रिश्ते

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों की इस खटास के पीछे एक और बड़ा पहलू यह है कि साजिशकर्ता देश इन दोनों के साथ-साथ ईरान के साथ भी इनके संबंध खराब करने में जुटा है.तीनों देशों के बीच होने वाले विवादों को बढ़ावा देने के लिए राह भटके हथियारबंद गुटों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इन गुटों को धन और हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं.

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और ईरान तीनों देश समय-समय पर एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करते रहे हैं. यह भी देखने में आया है कि इन देशों के बीच तनाव के कारण आम नागरिकों की जान जा रही है. साजिशकर्ता देश इन विवादों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय वर्चस्व हासिल करना चाहता है.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच विवाद का एक और मुख्य कारण तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है. टीटीपी पाकिस्तान सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से आतंकवादी गतिविधियां चला रहा है.

पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान तालिबान टीटीपी विद्रोहियों को पनाह दे रहा है. हालांकि, अफगानिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है.रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने की बजाय कंधार में तालिबान नेतृत्व के साथ बातचीत करनी चाहिए.

तालिबान ने 2023 में एक फतवे में पाकिस्तान के खिलाफ जिहाद छेड़ने से अपने कार्यकर्ताओं को रोकने की बात कही थी. इसे आधार बनाकर पाकिस्तान, अफगान तालिबान पर दबाव बना सकता है कि वह टीटीपी और अन्य पाकिस्तान विरोधी गुटों को अपनी सीमाओं से दूर रखे.

मुस्लिम देशों के लिए एकता की जरूरत

इस बढ़ते तनाव के बीच यह सवाल उठता है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान आपसी विवादों को सुलझाने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए एकजुट क्यों नहीं हो सकते ?तीनों देश जानते हैं कि आपसी टकराव से उनका ही नुकसान होगा. इसके बावजूद वे साजिशकर्ता देश के खिलाफ एकजुट होने में विफल हो रहे हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह स्थिति जारी रही, तो इन देशों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दशा और अधिक खराब हो सकती है. क्षेत्रीय स्थिरता और विकास के लिए इन देशों को आपसी विवादों को भुलाकर मिलकर काम करना होगा.