वक्फ बोर्ड पर निशाना, मंदिरों के सरकारीकरण पर चुप्प: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का खुला विरोध
मुस्लिम ब्यूरो, नई दिल्ली
सीना पीट-पीटकर वक्फ बोर्ड की वकालत करने वालों को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का यह बयान अवश्य सुनना चाहिए, जो इस समय सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. उनके बयान से पता चलता है कि मंदिरों का सरकारीकरण एवं व्यवसायीकरण होने से हिंदू मतावलंबियों में गैर-बराबरी का जहर बो दिया गया है. इनके द्वारा मंदिरों की आमदनी बढ़ाने के लिए किए गए उपायों ने हिंदू को बांट दिया है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती यह भी दावा करते हैं कि जिन्होंने ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा दिया, सब से ज्यादा उन्होंने ही हिंदुओं को बांटने का काम किया है.
दरअसल, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का यह वीडियो किसी खास अवसर का है. इस वीडियो में एक महिला पत्रकार स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से पूछती दिखाई देती है कि मस्जिद और दरगाहों में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं दिखता. लोग बिना किसी लाइन के आसानी से चले जाते हैं. वहां प्रवेश के लिए कोई वीआईपी कल्चर नहीं है.
इसके जवाब में वीडियो में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कहते सुनाई देते हैं कि पहले मंदिरों में ऐसा नहीं था. मंदिर में प्रवेश केलिए कोई भेद-भाव नहीं था. मगर जब से मंदिरों का व्यवसायीकरण और सरकारीकरण हुआ है, चढ़ावा बढ़ाने के लिए वीआईपी कल्चर आ गया है. बड़े लोगों केलिए लाल कालीन बिछाई जाती है और आम लोग सरकती लाइनों में लगते हैं.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती आगे कहते हैं,‘‘यह वही लोग कर रहे हैं जो कहते हैं कि बंटोगे तो कटोगे.‘‘ दिलचस्प बात यह है कि बंटोगे, कटोगे का नारा देने वाले ही वक्फ बोर्ड में सरकारी घुसपैठ की वकालत कर रहे हैं. ऐसे लोग देश में माहौल बना रहे हैं कि वक्फ बोर्ड समानांतर सरकार चलाता है. इसके पास रेल और सेना के बाद सर्वाधिक संपत्ति है. जबकि ऐसे लोग यह नहीं बताते कि देश में ऐसे कई मंदिर और मठ हैं जो वक्फ, सेना और रेल से भी अधिक संपत्ति के मालिक हैं. इसके अलावा मंदिरों का सरकारीकरण करने से भ्रष्टाचार किस हद तक प्रवेश कर गया है. इसके अलावा आम हिंदू परेशान हो रहा है सो अलग.
अब थोड़ा जान लेते हैं स्वामी जी कौन हैं और इनकी बातों को क्यों अहमियत देनी चाहिए ?
कौन हैं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक गांव में हुआ.उनका संन्यास लेने से पहले का नाम उमाशंकर उपाध्याय था.उन्होंनेे वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की पढ़ाई की है.
उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य स्वामी अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं. उन्होंने आधे-अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठाए थे.
गुरु थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती स्वतंत्रता सेनानी थे.सितंबर 2022 में उनके निधन के बाद उनके दोनों पीठों के नए शंकराचार्य की घोषणा की गई थी. ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को बनाया गया था. वहीं शारदा पीठ द्वारका का शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती को बनाया गया था. वे 1994 में छात्रसंघ का चुनाव भी जीते थे.
उमाशंकर उपाध्याय की प्राथमिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई. बाद में वे गुजरात चले गए. इस दौरान वो धर्म और राजनीति में समान दखल रखने वाले स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य के संपर्क में आए. उनके कहने पर ही उमाशंकर उपाध्याय ने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की.करपात्री जी के बीमार होने पर वे आ गए और उनके निधन तक उनकी सेवा की. इसी दौरान वे ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आए. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें 15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा दी गई. इसके बाद उन्हें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम मिला.
गंगा और गाय की रक्षा के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हमेशा सक्रिय रहते हैं. वाराणसी में जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए जब मंदिर तोड़े गए तो,इसका उन्होंने काफी विरोध किया. यहां तक कि उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2019 में वाराणसी में उम्मीदवार उतारने की भी कोशिश की. उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से गऊ गठबंधन के तहत उम्मीदवार उतारा था. उन्होंने 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए लंबे समय तक अनशन किया था. स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. अपने गुरु के निर्देश पर उन्होंने अनशन खत्म किया था.