दिल्ली चुनाव: कांग्रेस और ओवैसी को आत्ममंथन की कितनी जरूरत?
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मुस्लिम नाउ विशेष
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के लिए एक बार फिर आत्ममंथन की जरूरत को उजागर कर दिया है. जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए सत्ता में वापसी की, वहीं कांग्रेस और AIMIM के प्रदर्शन ने उनके मौजूदा राजनीतिक रवैये पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
राजनीतिक हकीकत से इनकार नहीं कर सकती कांग्रेस
दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है. पार्टी के नेताओं में समन्वय की भारी कमी है, और जमीनी कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है. हाल के चुनावों में कांग्रेस नेताओं का यह तर्क कि ‘हम कोई एनजीओ नहीं हैं’ पार्टी की चुनावी रणनीति की कमी को उजागर करता है. राजनीति में केवल नीतियों और विचारधारा से ही सफलता नहीं मिलती, इसके लिए जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना पड़ता है.
कांग्रेस को इन प्रमुख बिंदुओं पर आत्ममंथन करने की जरूरत है:
- कार्यकर्ताओं की कमी: दो दशक पहले तक कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर मजबूत कार्यकर्ता थे, लेकिन अब पार्टी पदाधिकारी अधिक हैं और जमीनी कार्यकर्ता गायब हो चुके हैं.
- रणनीति का अभाव: पार्टी को केवल भाजपा-विरोधी राजनीति से ऊपर उठकर अपनी अलग रणनीति बनानी होगी.
- संगठन की कमजोरी: पार्टी प्रदेशों में केवल पदाधिकारी नियुक्त कर रही है, लेकिन सक्रिय संगठनात्मक ढांचा नहीं है.
- राहुल गांधी की भूमिका: राहुल गांधी को केवल यात्राओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि एक मजबूत कार्यकर्ता सेना खड़ी करने पर ध्यान देना चाहिए.
ओवैसी के लिए आत्ममंथन क्यों जरूरी?
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर लंबे समय से यह आरोप लगता आ रहा है कि उनकी पार्टी मुस्लिम वोटों का विभाजन कर भाजपा को लाभ पहुंचाने का काम करती है. इस बार भी मुस्तफाबाद सीट पर AIMIM के उम्मीदवार के चलते मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील महमूद पराचा ने आरोप लगाया कि ओवैसी ने दिल्ली दंगों के आरोपियों को टिकट देकर भाजपा को यह नैरेटिव बनाने का मौका दिया कि दिल्ली के मुसलमान दंगाई हैं. उन्होंने यह भी कहा कि ताहिर हुसैन और रहमान की पत्नियों को यह झूठ बोलकर चुनाव मैदान में उतारा गया कि अगर वे जीतेंगी तो उनके पति जेल से बाहर आ जाएंगे, जबकि ऐसा कोई कानून नहीं है.
मेरे साथियों और दोस्तों,
— Dr. Shoaib Jamai (@shoaibJamei) February 8, 2025
आज चुनाव नतीजे आने के बाद शिफा उर रहमान साहब के परिवार से मुलाकात हुई।😞
लगभग 73000 वोट हमें इस विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर मिले हैं। हमें उन 73000 लोगों के जज्बात का ख्याल रखना है। जिन्होंने मजलिस को वोट किया है। बिल्कुल हौसला और हिम्मत नहीं हारेंगे।… pic.twitter.com/eUiUJWvhIb
ओवैसी को अगर भाजपा की ‘बी टीम’ होने का आरोप हटाना है, तो उन्हें:
- मुस्लिम वोटों के विभाजन से बचना होगा
- केवल चुनावों में नहीं, सालभर हर समुदाय के बीच काम करना होगा.
- देशभर में सभी समुदायों के लिए एक समान राजनीति अपनानी होगी.
- उत्तराखंड, पंजाब जैसे राज्यों में भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करानी होगी.
मुसलमानों का असली राजनीतिक विकल्प क्या है?
दिल्ली चुनावों में एक बार फिर साबित हो गया कि भाजपा को हराने के लिए मुसलमानों का वोट एकजुट रहना जरूरी है.
तीन प्रमुख विचारधाराएं सामने आईं:
- भाजपा को हराने के लिए AAP को वोट देना: बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता मानते हैं कि केवल आप ही भाजपा को रोक सकती है.
- AAP से नाराजगी और कांग्रेस का समर्थन: कुछ मुस्लिम मतदाताओं का मानना है कि AAP ने 2020 दंगों में उनकी कोई मदद नहीं की थी, इसलिए कांग्रेस को वोट देना चाहिए
- AIMIM के प्रति झुकाव: कुछ मतदाताओं ने AIMIM को समर्थन दिया क्योंकि उनका मानना था कि केवल यही पार्टी मुस्लिम मुद्दों को उठा सकती है.
कांग्रेस के लिए आगे का रास्ता
कांग्रेस को यह समझना होगा कि केवल धर्मनिरपेक्षता की राजनीति से अब चुनाव नहीं जीते जा सकते. उसे भाजपा की तरह अपने कार्यकर्ताओं को हर स्तर पर मजबूत करना होगा. कांग्रेस को उन पार्टियों का समर्थन करना चाहिए, जो वास्तव में भाजपा को हराने की स्थिति में हैं. इसके लिए उसे अपनी जिद और पुराने ढर्रे को छोड़कर जमीनी राजनीति करनी होगी.
काबिल-ए-गौर
कांग्रेस और AIMIM, दोनों को अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. कांग्रेस को अपने संगठन को मजबूत करना होगा, जबकि ओवैसी को अपनी छवि सुधारने के लिए पूरे देश में समान रूप से राजनीति करनी होगी. अगर ये दोनों पार्टियां अब भी आत्ममंथन नहीं करतीं, तो आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति में इनकी प्रासंगिकता और अधिक कम होती जाएगी.
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