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कश्मीर का जल संकट: पर्यावरणीय असंतुलन और सरकार की नीतियों पर सवाल,अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी नहीं बदले हालात

मुस्लिम नाउ विशेष

केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के समय कश्मीर को स्वर्ग बनाने और आतंकवाद मुक्त करने का दावा किया था, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे अलग दिख रही है। जलवायु परिवर्तन और सरकार की लचर नीतियों के कारण कश्मीर आज जल संकट की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि झरनों और नदियों से घिरा यह इलाका पानी की किल्लत का सामना कर रहा है।

झेलम की सहायक नदियों को बचाने की मुहिम
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के मुनिवार्ड गांव के निवासियों ने इस महीने झेलम की सहायक नदी सैंड्रान को साफ करने का बीड़ा उठाया, जिसके बाद यह मुहिम कश्मीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगी। इसी कड़ी में पुलवामा जिले के रत्नीपोरा गांव के युवाओं ने लार नदी की सफाई का अभियान चलाया, जो अब तक प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट से भरी हुई थी।

स्थानीय निवासी याकूब इब्न अकबर का कहना है, “लार हमारे पानी का एकमात्र स्रोत है, लेकिन इसमें अत्यधिक प्रदूषण आ चुका है। प्रशासन जब नाकाम रहा तो हमने इसे खुद साफ करने का फैसला किया।”

इसी तरह, अनंतनाग के चेकी पेहरू और अवंतीपोरा के बारसू गांव के लोगों ने भी अपने जल स्रोतों की सफाई शुरू की है। यह आंदोलन मुनिवार्ड के ‘खिदमत-ए-खलक फाउंडेशन’ से शुरू हुआ था, जिसमें पत्रकार जावेद डार और सज्जाद डार का समर्थन मिला। यह समूह हर रविवार को सफाई अभियान चला रहा है।

अचबल मुगल उद्यान का सूखना: एक चेतावनी
जल संकट का प्रभाव अब ऐतिहासिक स्थलों पर भी दिखने लगा है। प्रसिद्ध अचबल मुगल उद्यान, जो कभी पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता था, पूरी तरह से सूख चुका है। इस उद्यान में अब न तो फव्वारे काम कर रहे हैं और न ही नदियाँ बह रही हैं।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शब्बीर अहमद का कहना है, “पहली बार हमने अचबल को इस तरह सूखते देखा है। पानी की कमी ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संकट में डाल दिया है।” विशेषज्ञों के अनुसार, यह संकट जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और कम बर्फबारी का परिणाम है।

फल उद्योग पर मंडराता संकट
कश्मीर का फल उद्योग भी जल संकट और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है। 10,000 करोड़ रुपये का यह उद्योग, जो राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बर्फबारी की कमी और सूखे की वजह से प्रभावित हो रहा है।

कश्मीर घाटी फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा, “अगर सर्दियों में पर्याप्त बर्फबारी नहीं हुई तो गर्मियों में फसलें बर्बाद हो जाएंगी। सेब की खेती सबसे अधिक प्रभावित हो सकती है, जिससे हजारों किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।”

साथ ही, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जल्दी खिलने वाले फूल पाले की चपेट में आ सकते हैं, जिससे फसल को भारी नुकसान होगा। इसके अलावा, बागों में नमी की कमी से कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

सरकारी नीतियों पर उठते सवाल
कश्मीर में जल संकट केवल जलवायु परिवर्तन का नतीजा नहीं है, बल्कि सरकार की नीतियों की असफलता भी इसके लिए जिम्मेदार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में जल संकट को लेकर चर्चा की, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जल संरक्षण को लेकर नई रणनीति बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब हालात पहले ही गंभीर हो चुके हैं, तो सरकार अब तक क्यों सो रही थी?

आगे की राह: सामूहिक प्रयासों की जरूरत
सरकार के भरोसे बैठे रहने से जल संकट का हल नहीं निकलेगा। इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

  • जल संरक्षण: स्थानीय लोगों को जल संरक्षण के उपाय अपनाने होंगे।
  • सरकार की जवाबदेही: प्रशासन को जल स्रोतों की सफाई और संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजना: दीर्घकालिक समाधान के लिए पर्यावरणीय नीतियों में बदलाव आवश्यक है।

कश्मीर की नदियाँ, झरने और झीलें ही इसकी सुंदरता की पहचान हैं। यदि जल संकट को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो कश्मीर की प्राकृतिक धरोहर खतरे में पड़ सकती है। अब वक्त आ गया है कि सरकार और आम जनता मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें।