Religion

रमज़ान 2025 पर आयतुल्लाह बशीर हुसैन नजफी का पैग़ाम: मजलिसे अज़ा, मोमेनीन और समाज की भलाई पर दें विशेष ध्यान

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

इस्लामी दुनिया में माहे रमज़ानुल मुबारक का आगमन हमेशा से इबादत, आत्मशुद्धि और इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का अहम समय माना जाता है। इस मुबारक महीने की रूहानियत और सामाजिक महत्व को देखते हुए, मरज-ए-मुस्लिमीन व जहाने तशय्यो हज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अल-हाज हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफी (दाम जिललो हुल-वारिफ़) ने हज़रात उलेमा, मोबल्लेग़ीन और ख़तीबों के नाम एक महत्वपूर्ण पैग़ाम जारी किया है।

इस पैग़ाम में उन्होंने रमज़ान के दौरान मजलिसे अज़ा के आयोजन, मोमेनीन की धार्मिक शिक्षा, समाज की नैतिक और आध्यात्मिक मजबूती, महिलाओं और युवाओं की भागीदारी, तथा शहीदों और यतीमों की देखभाल पर विशेष जोर दिया है।

मजलिसे अज़ा और मोमेनीन की भागीदारी अनिवार्य

हज़रत आयतुल्लाह बशीर हुसैन नजफी ने उलेमा और ख़तीबों से मजलिसे अज़ा के आयोजन पर विशेष ध्यान देने की अपील की है, ताकि मोमेनीन इन मजलिसों की बरकतों से फ़ैज़याब हों और नेक व मुत्तकी बनें

  • फ़ज़ाएल और मसाएब-ए-मोहम्मद व आले मोहम्मद (अस) को बयान करने की ताकीद की गई है, ताकि लोगों के दिलों में ईमान मजबूत हो और वे इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार जीवन जी सकें
  • हज़रत ने उलेमा से कहा कि वे मोमेनीन को इन मजलिसों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करें, ताकि वे इस्लाम के सच्चे अनुयायी बनें और अल्लाह की रज़ा व खुश्नूदी उनके नसीब में आए।

मोमेनीन की ज़ियारत और सामाजिक एकता पर ज़ोर

आयतुल्लाह नजफी ने रमज़ान के इस मुबारक महीने में मोमेनीन की ज़ियारत और उनके हालचाल पूछने पर विशेष बल दिया है।

  • उन्होंने उलेमा से अपील की कि वे मोमेनीन की दीन और हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रति प्रतिबद्धता को मज़बूत करें
  • इस्लामी समाज में एकता और सर्वसम्मति को बढ़ावा देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है, ताकि समाज में भाईचारे और सौहार्द का वातावरण बना रहे।

रमज़ान के अदब और सार्वजनिक सम्मान पर ध्यान दें

हज़रत आयतुल्लाह ने इस पवित्र महीने के अदब और सम्मान को बनाए रखने की भी हिदायत दी है।

  • उन्होंने मोमेनीन को आगाह किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी शरई उज़्र (धार्मिक कारण) की वजह से रोज़ा नहीं रख सकता है, तो भी उसे सार्वजनिक रूप से खाने-पीने से बचना चाहिए
  • इससे इस्लाम और इस मुकद्दस महीने का सम्मान बना रहेगा और कोई भी मोमिन अनजाने में इसका अपमान करने का दोषी नहीं होगा।

युवाओं और किशोरों पर विशेष ध्यान

आज के दौर में युवा वर्ग इस्लाम के दुश्मनों के बौद्धिक और सांस्कृतिक हमलों से प्रभावित हो रहे हैं। इसी वजह से हज़रत आयतुल्लाह नजफी ने उलेमा से युवाओं और किशोरों पर विशेष ध्यान देने की अपील की है

  • उन्होंने उलेमा और मोबल्लेग़ीन से कहा कि वे युवाओं को मजलिसों में लाएँ, ताकि उनके दिलों में ईमान मज़बूत हो
  • उन्हें यह एहसास दिलाएँ कि वे इस्लामी समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उनकी धार्मिक परवरिश बेहद ज़रूरी है
  • इस्लाम के दुश्मनों द्वारा फैलाए जा रहे बौद्धिक और सांस्कृतिक हमलों से उनकी रक्षा करें और उन्हें सही धार्मिक मार्गदर्शन दें।

महिलाओं की भूमिका और तब्लीग़ का महत्व

महिलाओं की तब्लीग़ इस्लामी समाज में बेहद महत्वपूर्ण है। आयतुल्लाह नजफी ने कहा कि रसूल-ए-अकरम (स.अ.व.आ.व.) ने अपने कार्यों और कथनों से महिलाओं को बहुत सम्मान दिया है

  • उन्होंने उलेमा से अपील की कि वे महिलाओं को दीन की तब्लीग़ का अवसर प्रदान करें, क्योंकि उनकी तब्लीग़ प्रभावशाली होती है।
  • इस्लामी समाज की नैतिक और धार्मिक मजबूती में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करते हुए, उन्हें शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करने की बात कही गई है।

शहीदों के परिवारों और यतीमों की देखभाल

हज़रत आयतुल्लाह बशीर हुसैन नजफी ने रमज़ान के दौरान शहीदों के परिवारों और यतीमों की भौतिक और आध्यात्मिक सेवा पर विशेष ध्यान देने की अपील की है

  • उन्होंने कहा कि यह हमारी धार्मिक, सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हम शहीदों के परिवारों और यतीमों की हर संभव मदद करें।
  • इन सेवाओं को कभी भी किसी पर एहसान समझने की बजाय अल्लाह की ओर से मिली एक तौफीक़ मानना चाहिए
  • समाज के सभी लोगों को भी इस दिशा में योगदान देने के लिए प्रेरित करने की ज़रूरत है।

रमज़ान को इबादत, समाज सेवा और आत्मसुधार का माध्यम बनाएँ

हज़रत आयतुल्लाह बशीर हुसैन नजफी का यह पैग़ाम हमें रमज़ान के सही मक़सद और उसकी अहमियत को समझने की प्रेरणा देता है।

  • मजलिसों का आयोजन,
  • मोमेनीन की ज़ियारत,
  • रोज़े का सम्मान,
  • युवाओं और महिलाओं की भागीदारी,
  • शहीदों के परिवारों और यतीमों की देखभाल

ये सभी पहलू इस्लामी समाज को एक मज़बूत और सकारात्मक दिशा में ले जाने का काम करेंगे।

क्या आप इस्लामी समाज में रमज़ान के महत्व को और बढ़ाने के लिए तैयार हैं? अपनी राय और सुझाव हमें कमेंट में दें!

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