मोहम्मद शमी के एनर्जी ड्रिंक विवाद को जावेद अख्तर ने फिर से दी हवा , सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, मुंबई
चैंपियंस ट्रॉफी 2025 से एक दिन पहले, मशहूर शायर और गीतकार जावेद अख्तर ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के एनर्जी ड्रिंक पीने से जुड़े विवाद को फिर से हवा दे दी। यह विवाद तब शुरू हुआ था जब दुबई में एक मैच के दौरान रमजान के महीने में शमी को एनर्जी ड्रिंक पीते देखा गया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना होने लगी। हालांकि मामला लगभग शांत हो गया था, लेकिन जावेद अख्तर के ट्वीट ने इसे फिर से चर्चा में ला दिया।
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जावेद अख्तर का ट्वीट और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“शमी साहब, उन प्रतिक्रियावादी कट्टर मूर्खों की परवाह मत करो, जिन्हें दुबई के क्रिकेट मैदान में दोपहर में आपके पीने के पानी से कोई परेशानी है। यह उनका कोई काम नहीं है। आप महान भारतीय टीम में से एक हैं, जो हम सभी को गौरवान्वित कर रही है। आपको और हमारी पूरी टीम को मेरी शुभकामनाएं।”
उनके इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आने लगीं। कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया, तो कुछ ने इसे गैर-ज़रूरी मुद्दा बनाने की कोशिश करार दिया।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़
जावेद अख्तर के ट्वीट के बाद कई यूज़र्स ने अपनी राय रखी। कुछ लोगों ने जावेद अख्तर का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इसे धार्मिक मुद्दा बनाने की आलोचना की।
Javed Akhtar ke khilaf fatwa jari hone wala hai 🤡
— Voice of Hindus (@Warlock_Shubh) March 7, 2025
- रविकांत विश्वकर्मा (@RaviVishwakarma): “क्या यूएई में रमजान के दौरान मुसलमानों को उपवास करना कानूनन बाध्य नहीं करता?”
- मोहम्मद फैज़ (@MohdFaiz): “अल्लाह ने किसी को जबरदस्ती इस्लामिक नियमों का पालन कराने का हुक्म नहीं दिया। रोज़ा रखना व्यक्तिगत मामला है।”
- हिंदुओं की आवाज़ (@HinduVoice): “जावेद अख्तर के खिलाफ अब फतवा जारी होगा? 🤡”
- विजय एस शर्मा (@VSSVijay): “वो खून मेरा हलाल था, मैंने पानी पी लिया तो हराम हो गया?”
क्या यह मुद्दा एक बड़े सांस्कृतिक विवाद का हिस्सा है?
Sir ji, salaam. If someone doesn’t follow the rules, did Islam ever force them? Did Allah SWT demand that Mr. Sami, Mr. Javed, or Mr. Faiz Sahab be forced to do their farz or abide by Islamic principles? Absolutely not! A big, clear no!
— Mohammad Faiz (@FaizMoon) March 7, 2025
Allah SWT, through the Quran and Prophet…
यह पहली बार नहीं है जब किसी खिलाड़ी के व्यक्तिगत निर्णय को धार्मिक और सांस्कृतिक चश्मे से देखा गया हो। हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां किसी मुस्लिम खिलाड़ी की गतिविधियों को धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर विवाद खड़ा किया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के विवाद एक बड़े सांस्कृतिक युद्ध का हिस्सा हो सकते हैं, जिसमें मुसलमानों के सामाजिक व्यवहार को निशाना बनाया जाता है। खेल जगत में यह एक खतरनाक प्रवृत्ति बन सकती है, क्योंकि इससे खिलाड़ियों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है।
Javed Sahab pls use your sensibility and make it reach the president of all India Muslim Jammat pic.twitter.com/kTftT7hGsn
— ExtraSpiceAni (@ShrivastavAni) March 7, 2025
क्या कहता है इस्लाम?
इस्लामिक स्कॉलर्स का मानना है कि रोज़ा व्यक्तिगत आस्था का विषय है और कोई भी व्यक्ति इसे अपनी शारीरिक स्थिति और जरूरतों के अनुसार रख सकता है या छोड़ सकता है।
शरिया कानून के जानकारों के अनुसार, सफर, बीमारी, या पेशेवर मजबूरियों के कारण रोज़ा न रखना जायज़ है। इस्लाम में ज़बरदस्ती का कोई स्थान नहीं है और यह पूरी तरह से व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन कैसे करता है।
क्या क्रिकेट में धार्मिक मुद्दों की घुसपैठ सही है?
क्रिकेट हमेशा से खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत और समर्पण का खेल रहा है। इसमें धर्म, जाति या राजनीति का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने खिलाड़ियों के निजी जीवन और धार्मिक मान्यताओं को लेकर किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं की है।
काबिल ए गौर
मोहम्मद शमी का पानी या एनर्जी ड्रिंक पीना एक व्यक्तिगत निर्णय था, जिसे जबरदस्ती धार्मिक बहस में खींचा गया। जावेद अख्तर के ट्वीट से यह विवाद फिर से सामने आ गया, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह केवल सोशल मीडिया की सनसनीखेज प्रवृत्ति है, या इसके पीछे कोई बड़ा उद्देश्य छुपा है?
मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को इस तरह के विवादों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि उनकी एक सामान्य गतिविधि को लेकर विवाद खड़ा कर दिया जाए और उन्हें अनावश्यक दबाव में डाल दिया जाए।
खेल को खेल की तरह देखने की ज़रूरत है, न कि इसे धार्मिक और राजनीतिक चश्मे से परखने की।