मुगल शासकों की तस्वीरों पर कालिख और पेशाब, ‘पांचजन्य’ में तारीफ! आखिर माजरा क्या है?
Table of Contents
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
देश में कट्टरवादी संगठनों द्वारा मुगल बादशाहों को लेकर दोहरी राजनीति देखने को मिल रही है। एक तरफ, मुगल शासकों को क्रूर, अत्याचारी और हिंदू विरोधी बताने का अभियान चलाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पत्रिका ‘पांचजन्य’ में मुगलों की तारीफ की जा रही है।
इस समय सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें बाबर और अकबर की तस्वीरों को पेशाबघरों में लगाया जा रहा है। साथ ही, दिल्ली की उन सड़कों के साइनबोर्ड पर कालिख पोतने और उन पर पेशाब करने की घटनाएं भी सामने आई हैं, जिनका नाम मुगल बादशाहों पर रखा गया है।
लेकिन, इसी बीच ‘पांचजन्य’ पत्रिका ने होली पर विशेष लेख प्रकाशित किया है, जिसमें मुगल बादशाहों की होली प्रेम और हिंदू त्योहारों से जुड़ाव की प्रशंसा की गई है।
मुगल बादशाहों पर ‘पांचजन्य’ में तारीफ, क्या कहता है लेख?
RSS से जुड़ी पत्रिका ‘पांचजन्य’ ने होली पर एक लेख प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है – ‘समरसता का प्रतीक पर्व’। इसे शिमला स्थित बी.आर. आंबेडकर पीठ के अध्यक्ष प्रो. विवेकानंद तिवारी ने लिखा है।
इस लेख के तहत ‘मजहब से परे होली’ नामक उपशीर्षक में लिखा गया है कि मुगल बादशाहों के दौर में होली पूरे जोश और उल्लास के साथ मनाई जाती थी।

‘पांचजन्य’ में छपे लेख की मुख्य बातें
- अकबर के शासनकाल में होली का त्योहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता था। राज्यभर में सोने-चांदी के ड्रमों में रंग भरे जाते थे और महल को टेसू के फूलों से सजाया जाता था।
- शाहजहां के दौर में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी’ (गुलाबी ईद) कहा जाता था।
- जहांगीर की तुज्क-ए-जहांगीरी में होली का उल्लेख मिलता है और एक तस्वीर में उसे होली खेलते हुए दिखाया गया है।
- मोहम्मद शाह रंगीला की एक पेंटिंग में उन्हें अपनी बेगम पर रंग डालते हुए दिखाया गया है।
- मिर्जा संगी बेग की किताब ‘सैर-उल-मंजिल’ में भी होली का जिक्र मिलता है।
- सूफी संत अमीर खुसरो और निजामुद्दीन औलिया ने होली पर सुंदर रचनाएं लिखी थीं।
- बहादुरशाह जफर के दरबार में होली का खास आयोजन होता था, जिसमें सभी मंत्री, नवाब और अधिकारी गुलाल खेलते थे और गीत-फाग का आनंद लेते थे।
- मुंशी जकौल्ला ने ‘तारीख-ए-हिन्दुस्तानी’ में लिखा है कि होली सिर्फ हिंदुओं का नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज का त्योहार है।
- 10 मार्च 1844 के एक उर्दू अखबार में भी यह उल्लेख मिलता है कि होली हिंदू-मुसलमान दोनों मिलकर मनाते थे।
कट्टरपंथियों का दोगला रवैया: इतिहास के साथ छेड़छाड़?
यह विरोधाभास तब और बड़ा हो जाता है जब एक तरफ देश में कुछ संगठन मुगल बादशाहों को हिंदू विरोधी और अत्याचारी बताकर उनकी विरासत पर हमला कर रहे हैं और दूसरी तरफ, RSS की पत्रिका ‘पांचजन्य’ खुद उनके हिंदू त्योहारों से जुड़े होने के ऐतिहासिक तथ्य पेश कर रही है।
सोशल मीडिया पर कट्टरवादी संगठनों द्वारा मुगलों को राक्षसी छवि में पेश करने के लिए मनगढ़ंत कहानियां गढ़ी जा रही हैं। वहीं, कुछ संगठनों द्वारा दिल्ली की सड़कों पर लगे मुगल बादशाहों के नाम वाले साइनबोर्ड पर कालिख पोतने और पेशाब करने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं, बाबर और अकबर की तस्वीरें पेशाबघरों में लगाने की घटनाएं भी सामने आई हैं, ताकि उनकी छवि खराब की जा सके। यह दिखाता है कि देश में एक सुनियोजित प्रयास के तहत इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है।

इतिहास की सच्चाई या राजनीति का नया एजेंडा?
इतिहासकारों का कहना है कि मुगल बादशाहों के शासनकाल में धार्मिक समरसता और मेल-जोल देखने को मिला था। उन्होंने हिंदू त्योहारों में भागीदारी निभाई थी और उनके शासनकाल में सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिला था।
अगर मुगल शासक हिंदू विरोधी होते, तो क्या वे होली जैसे पर्व को धूमधाम से मनाते?
इतिहास से छेड़छाड़ करने और मुगलों को हिंदू विरोधी साबित करने का एजेंडा एक खास मानसिकता को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
मुगल बादशाहों के नाम पर सोशल मीडिया और कट्टरवादी संगठनों द्वारा जिस तरह से झूठी कहानियां फैलाई जा रही हैं, उससे साफ है कि इतिहास को तोड़-मरोड़कर एक खास नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हो रही है।
वहीं, RSS की पत्रिका ‘पांचजन्य’ खुद मुगलों की तारीफ में लेख छाप रही है, जिसमें बताया गया है कि मुगल बादशाहों के दौर में होली बड़े पैमाने पर मनाई जाती थी।
सवाल यह उठता है कि अगर मुगलों को लेकर RSS की पत्रिका खुद सकारात्मक ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत कर रही है, तो फिर कट्टरवादी संगठन उन्हें बदनाम करने के लिए इतना प्रयास क्यों कर रहे हैं?
क्या यह इतिहास को तोड़-मरोड़कर एक नया राजनीतिक एजेंडा सेट करने की साजिश है?
आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है? हमें कमेंट में बताएं!