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सिर्फ अपराध या पहचान की सज़ा? MP की जेलों में मुसलमान और दलित सबसे अधिक

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,भोपाल।
बीजेपी शासित मध्य प्रदेश से एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिसने राज्य की आपराधिक न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त जानकारी से यह सामने आया है कि राज्य की जेलों में दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या disproportionate रूप से अत्यधिक है। यह न केवल सामाजिक न्याय की अवधारणा को चुनौती देता है, बल्कि प्रशासनिक पक्षपात और प्रणालीगत भेदभाव की ओर भी संकेत करता है।

आदिवासी और दलित कैदियों की संख्या 43 फीसदी, मुस्लिम 11 फीसदी

मध्य प्रदेश के जेल मुख्यालय से मिली आरटीआई जानकारी के अनुसार, दिसंबर 2023 तक राज्य की विभिन्न जेलों में कुल 44,938 कैदी बंद थे। इनमें से 10,448 कैदी अनुसूचित जनजातियों (ST) से और 9,036 कैदी अनुसूचित जातियों (SC) से संबंधित थे, यानी कुल मिलाकर लगभग 43 प्रतिशत कैदी दलित और आदिवासी समुदाय से हैं। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के 5,127 कैदी जेलों में बंद हैं, जो कुल कैदियों का करीब 11 प्रतिशत है।

गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश की जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों की हिस्सेदारी 21.1 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 6.6 प्रतिशत है। ऐसे में इन आंकड़ों से साफ होता है कि इन समुदायों की जेलों में मौजूदगी उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक है।


जेलों की हालत चिंताजनक, क्षमता से 13 हजार से ज्यादा कैदी बंद

आरटीआई में एक और गंभीर पहलू सामने आया है—राज्य की जेलें ओवरक्राउडिंग का सामना कर रही हैं।
28 फरवरी 2025 तक की स्थिति के अनुसार, राज्य की कुल जेलों में 43,703 कैदी बंद हैं, जबकि इनकी अधिकतम क्षमता केवल 30,724 कैदियों को रखने की है। यानी वर्तमान में 12,979 कैदी क्षमता से अधिक हैं।

विशेषकर 11 केंद्रीय जेलों में हालात बेहद खराब हैं। इनकी अधिकतम क्षमता 15,176 कैदियों की है, लेकिन इनमें 24,122 कैदी ठूंसे गए हैं — जो कि क्षमता से 59 प्रतिशत अधिक है।
इसी प्रकार राज्य की 41 जिला जेलों की क्षमता 10,009 कैदियों की है, जबकि इनमें 13,306 कैदी बंद हैं।
73 उप-जेलों (सब-जेल) की क्षमता 5,401 कैदियों की है, लेकिन उनमें 6,150 कैदी रखे गए हैं।


महिला कैदियों की संख्या भी बढ़ी

कुल 43,703 कैदियों में से 3,630 महिला कैदी हैं। सिर्फ केंद्रीय जेलों में ही 807 महिलाएं दंडित कैदी हैं, जबकि 368 महिलाएं विचाराधीन कैदी हैं। वहीं खुली जेलों में 125 कैदी बंद हैं, जिनमें कोई भी महिला शामिल नहीं है।


सामाजिक विश्लेषण और नीतिगत सवाल

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली में सामाजिक असमानता और भेदभाव के आरोपों को नकारा नहीं जा सकता। अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की जेलों में बढ़ती संख्या यह सवाल खड़ा करती है कि क्या उन्हें निष्पक्ष न्याय मिल रहा है या फिर उन्हें असमान रूप से लक्षित किया जा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन आंकड़ों पर गहन समाजशास्त्रीय और कानूनी अध्ययन की आवश्यकता है, जिससे यह समझा जा सके कि क्या यह प्रवृत्ति प्रशासनिक पक्षपात का परिणाम है या फिर इसमें और भी कई सामाजिक-आर्थिक कारक शामिल हैं।


निष्कर्ष

मध्य प्रदेश की जेलों की यह स्थिति न केवल मानवाधिकारों के उल्लंघन का संकेत देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की कितनी आवश्यकता है। दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदायों की अत्यधिक जेल मौजूदगी एक गंभीर सामाजिक चेतावनी है, जिस पर सरकार, न्यायपालिका और नागरिक समाज को तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।