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महबूबा मुफ्ती का उमर अब्दुल्ला पर तीखा हमला: वक्फ बिल से मुस्लिम समाज को कमजोर करने की कोशिश

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर/नई दिल्ली

वक्फ संशोधन विधेयक: मुस्लिम समाज में दरार डालने की नई साजिश या एकतरफा सरकारी फैसला?

बीते कुछ वर्षों में मुस्लिम समाज को विभाजित करने की जो साज़िशें शिया-सुन्नी, अशराफ-पसमांदा, सूफी-देवबंदी या हनफी जैसे मज़हबी मतभेदों के नाम पर रची गई थीं, वह अब अपने परवान पर पहुंच चुकी हैं। वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का हालिया बयान इसी बात की पुष्टि करता है कि सरकार अब मुसलमानों के धार्मिक और सामुदायिक संसाधनों पर एकतरफा नियंत्रण चाहती है, और जो इसका विरोध करे, उसे मुस्लिम विरोधी और भ्रष्ट साबित किया जा रहा है।

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वक्फ संशोधन विधेयक और सरकार समर्थित मौलानाओं की मोर्चाबंदी

लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पास हो चुके वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ जहां देशभर के मुसलमानों में भारी असंतोष है, वहीं सरकार के समर्थन में बोलने वाले कुछ चुनिंदा मौलानाओं और मुस्लिम चेहरों ने विधेयक को जायज़ ठहराने की मुहिम छेड़ दी है। इन्हीं चंद चेहरों को मीडिया में बार-बार मंच दिया जा रहा है, जबकि विरोध करने वालों को वक्फ की ज़मीन हड़पने वाला या मुस्लिम समाज का गद्दार बताया जा रहा है—बिना किसी पुख्ता सबूत के।

महबूबा मुफ्ती की सधी हुई प्रतिक्रिया

महबूबा मुफ्ती ने केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू की कश्मीर यात्रा पर सवाल खड़े किए हैं। रिजिजू द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक पास कराने के तुरंत बाद कश्मीर दौरे और ट्यूलिप गार्डन में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और फारूक अब्दुल्ला द्वारा उनके भव्य स्वागत को लेकर महबूबा ने सोशल मीडिया पर लिखा:

“यह कश्मीर जैसे मुस्लिम बहुल राज्य के लोगों को एक संकेत देने की कोशिश है कि जब आपके ही नेता केंद्र सरकार के फैसलों का स्वागत कर रहे हैं, तब आपके विचारों की कोई अहमियत नहीं बचती। यह ट्यूलिप गार्डन की खूबसूरती के पीछे छिपा सत्ता और साजिश का सार्वजनिक उत्सव है।”

सोशल मीडिया पर तीखी बहस, राजनीतिक ढोंग का आरोप

महबूबा के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके समर्थन और विरोध में तीखी बहस छिड़ गई है।

  • कुछ ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने भी बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और उन्हीं के कारण अनुच्छेद 370 का रास्ता साफ हुआ।
  • कुछ ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को जनता के साथ विश्वासघात करने वाला बताया।
  • कई यूज़र्स ने महबूबा और उमर अब्दुल्ला दोनों को ‘एक ही सिक्के के दो पहलू’ करार दिया।

असल मुद्दा क्या है?

मुद्दा सिर्फ वक्फ की संपत्ति या संशोधन विधेयक नहीं है, मुद्दा है मुस्लिम समाज की आंतरिक एकता और उस पर सरकार की सियासी घुसपैठ। वक्फ संपत्तियां मुस्लिम समाज की धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए हैं। जब इन्हें सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में लाया जाता है, तब सवाल उठता है कि क्या यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं है?

महबूबा मुफ्ती की बातों से सहमति या असहमति अपनी जगह है, लेकिन यह मानना ज़रूरी है कि देश के 24 करोड़ मुसलमानों की भावनाओं और धार्मिक संस्थाओं को नजरअंदाज कर किसी भी फैसले को थोपना, न केवल संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी है बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

निष्कर्ष: क्या यह नया सामाजिक प्रयोग है?

यह विधेयक सिर्फ एक कानून नहीं, एक प्रयोग है—जिसके जरिए मुसलमानों को ‘अंदर से’ बांटने की कोशिश की जा रही है। चुनिंदा मुस्लिम चेहरों को आगे लाकर सरकार एक ‘नया नैरेटिव’ स्थापित करना चाहती है, जिसमें विरोध करने वालों को कट्टर, पिछड़ा या भ्रष्ट दिखाया जाए। इस रणनीति को पहचानना और उस पर विमर्श करना समय की मांग है।

सरकार अगर वाकई वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता चाहती है तो उसे मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद कर समाधान निकालना चाहिए, न कि जबरन विधेयक थोप कर असहमति की आवाज़ को कुचलना।

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