ग़ाज़ा के लिए उठी बांग्लादेश की बुलंद आवाज़: फिलिस्तीन सॉलिडेरिटी मूवमेंट के तहत प्रदर्शन, लाखों लोग सड़कों पर
Table of Contents
✍️ मुस्लिम नाउ ब्यूरो | ढाका
इज़रायली हमलों से तबाह ग़ाज़ा के लिए जहां पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शनिवार, 12 अप्रैल को हुआ ‘ग़ाज़ा के लिए मार्च’ अभूतपूर्व साबित हुआ। लाखों की संख्या में आम नागरिक, छात्र, महिलाएं, सामाजिक संगठन, धार्मिक नेता और कलाकार ग़ाज़ा के समर्थन में सड़कों पर उतर आए। यह प्रदर्शन न केवल फिलिस्तीन के लिए एकजुटता की मिसाल बना बल्कि मुस्लिम जगत, संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक समुदाय की निष्क्रियता पर एक गूंजता हुआ सवाल भी बन गया।

🔥 नारों से गूंज उठा ढाका: “तुम कौन हो, मैं कौन हूं? फिलिस्तीन, फिलिस्तीन!”
सुहरावर्दी उद्यान और उसके आसपास का इलाका शनिवार सुबह से ही मानव सैलाब में तब्दील हो गया। ‘ग़ाज़ा के लिए मार्च’ से पहले ही राजधानी में जगह-जगह से निकलते जुलूसों ने माहौल को जोशीला बना दिया। “ग़ाज़ा खून से सना है, दुनिया चुप क्यों है?”, “फिलिस्तीन को आज़ाद करो” जैसे नारों ने राजधानी की फ़िजा को ग़ाज़ा की पीड़ा में रंग दिया।
लाल, हरे, काले और सफेद रंग के झंडों की मौजूदगी ने वातावरण को फिलिस्तीनी संघर्ष का प्रतीक बना दिया।
🕌 हर वर्ग की भागीदारी: रिक्शा चालक से लेकर विद्वान तक
फुटपाथ पर चलने वाले से लेकर विश्वविद्यालयों के छात्र, प्रोफेसर, धार्मिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और यहां तक कि रिक्शा चालक अनवर हुसैन भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए। अनवर ने 100 टका में फिलिस्तीनी झंडा खरीदा और अपने रिक्शे की छत पर खड़े होकर उसे लहराते हुए ग़ाज़ा के मासूमों के समर्थन में नारे लगाए।
एक छात्र अबू मूसा ने कहा, “आज हम ग़ाज़ा के बच्चों की आवाज़ हैं। जब दुनिया चुप है, तब हम बोलेंगे।”

🎤 विरोध गीत और कलाकारों की आवाज़
इस आंदोलन की विशेष बात यह रही कि बांग्लादेशी कलाकारों ने भी ग़ाज़ा के समर्थन में भावनात्मक गीत प्रस्तुत किया। “आकाशे उर्चे मोर्टा लैश” (डेड बॉडीज़ फ्लाइंग इन द स्काई) नामक यह गीत इज़रायली हमलों के खौफनाक मंजर को शब्दों में ढालता है। इस गीत को इमरान महमूदुल, दिलशाद नाहर काना, अतिया अनीशा और अन्य कलाकारों ने स्वरबद्ध किया।
📢 फिलिस्तीन सॉलिडेरिटी मूवमेंट बांग्लादेश: एक नई चेतना
‘ग़ाज़ा के लिए मार्च’ का आयोजन फिलिस्तीन सॉलिडेरिटी मूवमेंट बांग्लादेश के बैनर तले हुआ, जिसका मकसद केवल एकजुटता दिखाना नहीं, बल्कि वैश्विक जनमत को फिलिस्तीन के समर्थन में जागरूक करना है। इस आंदोलन को मशहूर इस्लामी विद्वान डॉ. मिज़ानुर रहमान अज़हरी, खेल और संस्कृति जगत की हस्तियों और नागरिक समाज का भरपूर समर्थन मिला।
🌍 अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सवाल: चुप्पी क्यों?
प्रदर्शनकारियों ने इज़रायल द्वारा ग़ाज़ा में किए जा रहे हमलों को “मानवता के खिलाफ अपराध” करार देते हुए संयुक्त राष्ट्र, मुस्लिम जगत और वैश्विक ताक़तों से इस जनसंहार को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की मांग की। ढाका कॉलेज के छात्र जुल्फिकार अहमद ने कहा, “हम अब और चुप नहीं रह सकते। यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, यह इंसानियत का सवाल है।”

📌 ग़ाज़ा का दर्द, ढाका की आवाज़
‘ग़ाज़ा के लिए मार्च’ सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं था, यह उस वैश्विक मुस्लिम चेतना की दस्तक थी जो वर्षों से फिलिस्तीन पर हो रहे अत्याचारों पर मौन थी। इस आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि जब न्याय की पुकार उठती है, तो सीमाएं मायने नहीं रखतीं।
बांग्लादेश से उठी यह आवाज़ अब एक प्रतीक बन गई है – ग़ाज़ा के लिए, इंसाफ के लिए, और इंसानियत के लिए।