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वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: क्या मुसलमान हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा होंगे?

📍 मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई हुई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार की मंशा और नए कानून की संवैधानिक वैधता पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत गुरुवार को इस मामले में अंतरिम आदेश पारित कर सकती है।

यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को नियंत्रित करने के लिए लाए गए नए संशोधनों से जुड़ा है, जिसमें केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने का प्रावधान भी शामिल है।


🔴 सीजेआई ने उठाया मूलभूत सवाल: “क्या मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड में शामिल किया जाएगा?”

सुनवाई के दौरान सीजेआई खन्ना ने सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता से सीधे पूछा:
“क्या आप अब यह कह रहे हैं कि मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी? खुलकर कहिए!”
यह सवाल सरकार द्वारा वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी की अनुमति देने वाले संशोधन पर उठाया गया, जिसने अदालत को चौंका दिया।


📜 “इतिहास को दोबारा नहीं लिखा जा सकता” – वक्फ संपत्तियों पर न्यायालय की टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकार द्वारा वर्षों पुरानी वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का प्रस्ताव इतिहास को फिर से लिखने जैसा है।

“जब 100-200 साल पहले किसी संपत्ति को वक्फ घोषित किया गया, तो अब आप यह कैसे कह सकते हैं कि वह अब वक्फ नहीं रही? क्या इतिहास को फिर से लिखा जा सकता है?”


🕌 “हम यहां धर्म से ऊपर हैं” – बेंच की निष्पक्षता पर सीजेआई का कड़ा रुख

एसजी मेहता द्वारा न्यायाधीशों की धर्मिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करने पर सीजेआई खन्ना ने सख्त प्रतिक्रिया दी:

“जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपने धर्म से ऊपर होते हैं। हमारे लिए दोनों पक्ष समान हैं। आप न्यायाधीशों की धार्मिक पहचान का उल्लेख कैसे कर सकते हैं?”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि सरकार वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना चाहती है, तो फिर हिंदू धार्मिक संस्थाओं के सलाहकार बोर्डों में भी मुसलमानों को स्थान दिया जाना चाहिए।


📑 सदियों पुरानी संपत्तियों के दस्तावेज़ों पर न्यायालय की व्यवहारिक टिप्पणी

न्यायालय ने माना कि सदियों पुरानी मस्जिदों और धार्मिक संपत्तियों के लिए बिक्री विलेख या पंजीकरण दस्तावेज प्रस्तुत करना लगभग असंभव हो सकता है।

“कई मस्जिदें 14वीं-15वीं सदी की होंगी… तब पंजीकरण कानून नहीं था। क्या हम आज उनसे दस्तावेज़ मांग सकते हैं?”

एसजी मेहता ने पलटकर कहा:

“उन्हें इसे पंजीकृत करने से किसने रोका?”


⚖️ कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर भी सवाल

संशोधित अधिनियम के तहत वक्फ संपत्तियों के निर्णय लेने में कलेक्टरों को दी गई शक्तियों पर भी कोर्ट ने चिंता जताई।

“क्या यह उचित है कि कलेक्टर तय करे कि संपत्ति वक्फ है या नहीं? जिस क्षण ऐसा होता है, वक्फ का अस्तित्व ही संदेह में पड़ जाता है,” कोर्ट ने कहा।


📌 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित बदलावों को लेकर कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर व्यापक प्रभाव डाल सकती है। अदालत की टिप्पणियों से स्पष्ट है कि न्यायपालिका इस मुद्दे को केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और संवैधानिक संतुलन के नजरिए से भी देख रही है।

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