वक्फ संशोधन विधेयक पर मुसलमानों के विरोध के बीच सऊदी अरब की यात्रा पर पीएम मोदी: रणनीति, संबंध और सवाल
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
— वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर देशभर में मुस्लिम समुदाय के बीच गहराते विरोध और सड़कों से अदालत तक संघर्ष के ऐलान ने केंद्र सरकार को नई चुनौती में डाल दिया है। कई विश्लेषकों का मानना है कि इस विरोध को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता बढ़ी है और उन्होंने मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों के साथ संवाद की कोशिशें तेज कर दी हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री ने बोहरा समुदाय से मुलाकात की और विधेयक पर उनके समर्थन को लेकर आभार जताया। इसके साथ ही उन्होंने पसमांदा मुसलमानों के हितों की चर्चा करते हुए यह संदेश देने की कोशिश की कि यह विधेयक उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को लेकर मुस्लिम समुदाय के भीतर गंभीर आशंकाएं पनप रही हैं।
क्या सऊदी अरब यात्रा एक रणनीतिक कदम है?
ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 22 अप्रैल को प्रस्तावित सऊदी अरब यात्रा को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। कुछ मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह यात्रा, भारत में वक्फ संशोधन विधेयक से उत्पन्न असंतोष को वैश्विक मुस्लिम समुदाय के बीच संतुलित करने की रणनीति हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी के अभी सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान समेत कई इस्लामी देशों के नेताओं से मजबूत रिश्ते हैं। विश्लेषकों के अनुसार, मोदी की यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने का अवसर है, बल्कि घरेलू स्तर पर मुस्लिम असंतोष को अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में संतुलित करने का भी प्रयास हो सकता है।
वैश्विक भू-राजनीति के बीच भारत-सऊदी संबंध
यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब वैश्विक भू-राजनीति अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से उत्पन्न ऋण संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध, और पश्चिम एशिया में इजरायल-हमास संघर्ष, ईरान का इजरायल पर मिसाइल हमला, सीरिया संकट, हिजबुल्ला और हौथी जैसे संगठनों की गतिविधियां – इन सबने पश्चिम एशिया की राजनीति को जटिल बना दिया है।
भारत और सऊदी अरब के बीच प्रस्तावित बैठक में व्यापार, ऊर्जा, निवेश, सुरक्षा, रक्षा सहयोग, प्रवासी हित, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे मुद्दे प्रमुख होंगे। इसके अतिरिक्त, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) पर भी गहन बातचीत की संभावना है। यह गलियारा चीन की BRI परियोजना का एक वैकल्पिक ढांचा माना जा रहा है, जिसमें सऊदी अरब एक अहम कड़ी है।
ट्रंप, अब्राहम समझौता और पृष्ठभूमि
ट्रंप के नेतृत्व में 2020 में अब्राहम समझौते के जरिए पश्चिम एशिया में कुछ हद तक स्थिरता लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उनकी चुनावी हार के बाद इन पहलों की गति धीमी हो गई। वहीं, बाइडन प्रशासन की पश्चिम एशिया नीति को लेकर व्यापक असंतोष है, जिसने भारत जैसे देशों के लिए वहां भूमिका निभाने की संभावनाएं बढ़ा दी हैं।
क्या विरोध शांत होगा?
जहां एक ओर मोदी की यह यात्रा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका को मजबूत कर सकती है, वहीं वक्फ अधिनियम को लेकर देश के अंदर जारी विरोध को लेकर मुस्लिम समुदाय के बड़े तबके में असंतोष बना हुआ है। कई संगठनों ने साफ किया है कि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण से प्रभावित हुए बिना अपने आंदोलन को जारी रखेंगे।
निष्कर्ष: प्रधानमंत्री मोदी की सऊदी अरब यात्रा एक ओर भारत की विदेश नीति का विस्तार है, तो दूसरी ओर घरेलू स्तर पर मुस्लिम असंतोष के बीच यह एक संवेदनशील कूटनीतिक प्रयास भी बन गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह यात्रा देश और विदेश – दोनों मोर्चों पर कितनी सफल साबित होती है।