महाबोधि महाविहार को लेकर बौद्ध समुदाय का ‘महाबोधि मुक्ति आंदोलन’ तेज, मंदिर प्रबंधन से हिंदू प्रभुत्व हटाने की मांग
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📍 मुस्लिम नाउ ब्यूरो,बोधगया, बिहार
बिहार के बोधगया स्थित विश्वविख्यात महाबोधि महाविहार एक बार फिर धार्मिक विवादों के केंद्र में है। बौद्ध समुदाय द्वारा मंदिर की प्रशासनिक संरचना में “हिंदू प्रभुत्व” समाप्त करने की मांग को लेकर “महाबोधि मुक्ति आंदोलन” शुरू किया गया है, जो अब सोशल मीडिया और ग्राउंड स्तर दोनों पर तीव्र होता जा रहा है। इस आंदोलन के माध्यम से बौद्ध भिक्षु और कार्यकर्ता महाबोधि मंदिर पर पूर्ण बौद्ध नियंत्रण की मांग कर रहे हैं, साथ ही 1949 के बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम (BT Act 1949) को रद्द करने की मांग भी कर रहे हैं।

आंदोलन के केंद्र में क्या है विवाद?
बोधगया का महाबोधि मंदिर वह ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ तथागत गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। लेकिन आज इस मंदिर का प्रशासनिक नियंत्रण गया जिले के जिला अधिकारी (जो प्रायः एक हिंदू होते हैं) के अधीन है। यही नहीं, मंदिर परिसर में हिंदू पुजारियों द्वारा पिंडदान और हिंदू रीति-रिवाज़ों का आयोजन भी होता है, जिसे बौद्ध समुदाय धार्मिक हस्तक्षेप मानता है।
बौद्ध भिक्षुओं और संगठनों का कहना है कि जब मक्का में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, और राम मंदिर में गैर-हिंदुओं की उपस्थिति स्वीकार्य नहीं, तो फिर बौद्धों के सबसे पवित्र स्थल महाबोधि महाविहार में गैर-बौद्धों को नियंत्रण और धार्मिक क्रियाएं करने का अधिकार क्यों दिया गया है?
आंदोलन की जड़ें और नेतृत्व
यह कोई नया विवाद नहीं है। दशकों पहले जापानी बौद्ध भिक्षु सुरई ससई के नेतृत्व में भी ऐसा ही आंदोलन चलाया गया था। वर्तमान आंदोलन भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, बुद्धिस्ट कम्युनिटी की धार्मिक पहचान और प्रशासनिक अधिकारों की पुनःस्थापना की मांग कर रहा है।
बोधगया मे चल रहे हे #महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन मै शामिल होने के बाद महाबोधी महाविहार में जाकर तथागत गौतम बुद्ध को नमन किया।
— Prakash Ambedkar (@Prksh_Ambedkar) April 16, 2025
पिछले कई महिने से चल रहे इस आंदोलन को हमारा पुरा समर्थन है।#महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन#Repeal_BTact1949 pic.twitter.com/aVoE4vMZxO
12 फरवरी 2025 से चल रहे धरना-प्रदर्शन के तहत अब तक 70 से अधिक दिन बीत चुके हैं। आंदोलनकारियों की मांग है कि:
- BT Act 1949 को समाप्त किया जाए
- महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति (BTMC) में केवल बौद्ध सदस्य हों
- हिंदू रीति-रिवाज़ और पुजारियों की गतिविधियों को मंदिर से बाहर किया जाए
बौद्ध संगठनों के बयान और सोशल मीडिया पर प्रचार
44th Day of Hunger Strike at Mahabodhi Mahavihar Bodhgaya#BTact1949_Repeal#महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन #ब्राह्मणों_महाबोधि_छोड़ो pic.twitter.com/915VwiJ4gh
— अतुल कुमार मौर्य (@Atul0100) March 27, 2025
अखिल भारतीय बौद्ध मंच के महासचिव आकाश लामा ने मीडिया से बात करते हुए मंदिर की संरचना को “ब्राह्मणीकृत” बताया और कहा कि बौद्ध धार्मिक स्थलों पर ब्राह्मणवादी प्रभाव बढ़ रहा है, जो बौद्ध विरासत के लिए एक संस्कृतिक और धार्मिक खतरा है।
🚨Ground Report from Bodh Gaya | A group of Buddhist monks in Bodh Gaya has been protesting since February 12, demanding changes to the management of the Mahabodhi Temple. With placards reading "Bodh Gaya Temple Act 1949 should be abolished and all BTMC members should be… pic.twitter.com/NtKVbb5iq9
— The Quint (@TheQuint) April 3, 2025
आंदोलन को सोशल मीडिया पर भी बड़ा समर्थन मिल रहा है।
- ट्विटर पर #महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन, #BTAct1949_Repeal और #ब्राह्मणों_महाबोधि_छोड़ो जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
- प्रकाश अंबेडकर, अतुल मौर्य और आशोक बौद्ध जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है।
- आंदोलन में भिक्षुओं की भूख हड़ताल 69वें दिन में प्रवेश कर चुकी है।
सवाल उठाते मुसलमान और पसमांदा तबका
बौद्ध समुदाय की इस मांग के बीच, मुस्लिम बुद्धिजीवी और पसमांदा संगठन भी सवाल उठा रहे हैं कि जब वक्फ संपत्तियों पर मंदिरों की खोज और पुनःस्थापन की राजनीति की जाती है, तो बौद्धों को उनके धर्मस्थलों पर उनका नियंत्रण क्यों नहीं दिया जा रहा? क्या यह धार्मिक समानता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?
सरकार और मुख्यधारा का मौन
आश्चर्य की बात यह है कि इस आंदोलन को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही अब तक मौन हैं। न तो किसी आधिकारिक स्तर पर वार्ता की पहल की गई है, और न ही महाबोधि मंदिर के प्रशासन ने बौद्धों की मांगों पर कोई जवाब दिया है।
69th Day of Hunger Strike at Mahabodhi Mahavihar Bodhgaya#BTact1949_Repeal#महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन #ब्राह्मणों_महाबोधि_छोड़ो pic.twitter.com/LJeNe3rvIj
— 🍁Ashok Bauddha🍁 (@AshokBuaddha) April 21, 2025
निष्कर्ष
महाबोधि महाविहार विवाद न सिर्फ धार्मिक नियंत्रण का मुद्दा है, बल्कि यह भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों और ऐतिहासिक परंपराओं के संरक्षण का भी सवाल बन गया है। बौद्ध समुदाय की यह मांग केवल मंदिर प्रशासन की नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान की लड़ाई बन चुकी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और समाज इस ऐतिहासिक आंदोलन के साथ कैसे पेश आते हैं।