पहलगाम हमले में मुस्लिम व्यापारी नजाकत अली ने बचाईं 11 जानें, इंसानियत की मिसाल बने
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📍 मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली / श्रीनगर
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को दहला दिया। इस कायराना वारदात में अब तक 27 निर्दोष सैलानियों की जान जा चुकी है और कई दर्जन घायल हुए हैं। लेकिन इस दर्दनाक मंजर के बीच एक नाम ऐसा भी सामने आया जिसने इंसानियत और साहस की मिसाल कायम कर दी—नजाकत अली, एक स्थानीय कपड़ा व्यापारी, जिन्होंने अपनी सूझबूझ और निडरता से 11 पर्यटकों की जान बचाई।
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🔸 गोलियों की बौछार में उम्मीद का चेहरा बने नजाकत अली
हमले के वक्त छत्तीसगढ़ के चिरमिरी से आए चार दोस्त—कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन, हैप्पी बधावान और अरविंद्र अग्रवाल—अपने परिजनों के साथ बैसरन घाटी में घूम रहे थे। तभी आतंकियों की अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई और घाटी चीख-पुकार से गूंज उठी। सड़कों पर अफरा-तफरी मच गई, लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। उसी दौरान नजाकत अली एक फरिश्ते की तरह सामने आए और हालात की गंभीरता को समझते हुए पर्यटकों को संभाला और उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
🔸 पुराने रिश्ते बने जीवन रक्षक धागा
नजाकत अली हर साल सर्दियों में चिरमिरी आकर कपड़े बेचते हैं। यहीं पर उनकी पहचान इन परिवारों से हुई थी, जो वक्त के साथ भरोसे में बदल गई। बीजेपी पार्षद पूर्वा स्थापक, जो कुलदीप स्थापक की पत्नी हैं, भी हमले के समय वहीं मौजूद थीं और उनके तीन छोटे बच्चे भी साथ थे। इसी विश्वास ने उस कठिन घड़ी में इन परिवारों को नजाकत के साथ जोड़ दिया।
🔸 हिम्मत, होशियारी और मानवीयता की मिसाल
जहां एक ओर लोग जान बचाने की जद्दोजहद में थे, वहीं नजाकत अली ने हिम्मत और विवेक से काम लिया। उन्होंने 11 लोगों को एक-एक कर सड़क से हटाया और नजदीकी लॉज तक सुरक्षित पहुंचाया। बाद में सेना की मदद से सभी को एक होटल तक पहुंचाया गया। नजाकत की यह तत्परता शायद उन परिवारों के लिए ज़िंदगी और मौत के बीच का फर्क बन गई।
🔸 परिजनों ने सुनाई आपबीती, कहा ‘नजाकत नहीं होते तो…’
कुलदीप स्थापक के मामा राकेश परासर ने बताया, “हमारे साथ छोटे बच्चे भी थे। स्थिति बेहद भयावह थी। लेकिन नजाकत ने जिस तरह से हमें निकाला, वह कभी नहीं भुलाया जा सकता।”
शिवांश जैन की मां ने कहा, “हमारा बेटा, बहू और पोता अब हमारे पास हैं, ये सिर्फ नजाकत की वजह से मुमकिन हुआ। अगर वह न होते तो हम क्या करते, सोचकर ही डर लगता है।”
🔸 इंसानियत की जीत, नफरत की हार
जहां कुछ मीडिया संस्थानों ने हमले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की, वहीं नजाकत अली की मानवीयता और बहादुरी ने यह साबित कर दिया कि धर्म नहीं, इंसानियत सबसे बड़ी पहचान है।
एक कश्मीरी मुस्लिम व्यापारी द्वारा हिंदू परिवारों की जान बचाना इस बात की गवाही है कि कश्मीरियत अब भी जिंदा है और वो भारत के गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल कायम रखे हुए है।