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पहलगाम हमला: क्या था भारत में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़काने का गहरा षड्यंत्र?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली।

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में निहत्थे पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ एक आतंकी घटना थी या इसके जरिए पूरे भारत में हिंदू-मुस्लिम दंगा भड़काने की बड़ी साजिश रची गई थी? हमले के दौरान जब जान बचाने के लिए भगदड़ मची थी, तब कुछ लोग बड़े इत्मीनान से वीडियो बना रहे थे — ये लोग कौन थे?

आतंकियों द्वारा पर्यटकों से कलमा पढ़वाने और पैंट उतरवाकर जांच करने की बातें सबसे पहले किसने मीडिया और सोशल मीडिया तक पहुंचाई? और इन खबरों के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बीस से ज्यादा स्थानों पर जो हिंसा और उत्पीड़न हुआ, क्या वह इसी सुनियोजित साजिश का हिस्सा था?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कुछ न्यूज चैनलों पर खुलकर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगाया है। सवाल यह भी है कि क्या ये मीडिया संस्थान भी इस साजिश में किसी न किसी रूप में शामिल हैं? और सबसे अहम सवाल — जब इतनी कोशिशों के बावजूद देशभर में बड़े पैमाने पर दंगे नहीं भड़के, तो अब सोशल मीडिया पर हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ उकसाने का अभियान क्यों तेज किया जा रहा है?

इन सवालों की निष्पक्ष और गहन जांच बेहद जरूरी है, खासकर मुस्लिम समुदाय के लिए, ताकि भविष्य में ऐसे षड्यंत्रों का डटकर मुकाबला किया जा सके। मुस्लिम बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे इन मुद्दों पर सुरक्षा एजेंसियों से मिलकर ठोस कार्रवाई की मांग करें और जरूरत पड़ने पर प्राइवेट जांच एजेंसियों की भी मदद लें।


जब देश के मुसलमान पहलगाम हमले के विरोध में, शुक्रवार की नमाज के बाद पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे थे, तभी सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट्स वायरल की जा रही थीं। उदाहरण के लिए, एक पोस्ट में लिखा गया था:

“पहलगाम इस्लामिक नरसंहार दस मिनट… बीस मिनट!!! एक भी घोड़े वाले ने, दुकानदार ने, गुब्बारे बेचने वाले ने, शाल या ड्राई फ्रूट्स बेचने वाले ने गोली चलाते हुए वीडियो नहीं बनाया… सोचिए!!! 100% मुसलमान कैसा होता है… जानो!!!”

ऐसे पोस्ट यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि कहीं वही लोग तो इस साजिश का हिस्सा नहीं थे? और जब साजिश नाकाम हो गई, तो अब सोशल मीडिया पर नफरत फैलाकर दूसरे रास्ते से माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं?

सोचने वाली बात है — जब जान पर बनी हो, मौत सामने हो, तो कोई कैसे इत्मीनान से वीडियो बना सकता है?


सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिश: मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में

कुछ न्यूज चैनलों ने इस तरह की सुर्खियां चलाईं — “20 शवों की जिप खोली गई, निकले प्राइवेट पार्ट्स” — जबकि पत्रकारिता का पहला नियम है कि ऐसी संवेदनशील खबरें बेहद जिम्मेदारी से पेश की जाएं ताकि जनता का गुस्सा न भड़के। फिर ऐसी खबरें क्यों और किसके लिए चलाई गईं?

उमर अब्दुल्ला ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट रूप से कहा:

“कुछ चैनल बेशर्मी से नफरत फैलाते हैं। उनके एंकर डरपोक हैं, जो सच का साथ नहीं देते।”

उन्होंने यह भी बताया कि पहलगाम के पीड़ितों के सम्मान में ऐतिहासिक जामा मस्जिद में दो मिनट का मौन रखा गया था, जो बताता है कि कश्मीर के मुसलमान आतंक के खिलाफ खड़े हैं।


पहलगाम हमले के बाद देशभर में मुस्लिम विरोधी घटनाएं बढ़ीं

एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, पहलगाम हमले के बाद भारत में कम से कम 20 मुस्लिम विरोधी घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें शामिल हैं:

  • आगरा, यूपी: मुस्लिम कर्मचारी पर सहकर्मियों का हमला।
  • बैंगलोर, कर्नाटक: कश्मीरी छात्राओं पर हमला और उत्पीड़न।
  • चंडीगढ़: कैब ड्राइवर द्वारा कश्मीरी महिलाओं पर हमला।
  • कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश: मुस्लिम दुकानदारों और मजदूरों पर हमला।
  • अंबाला: मुस्लिम विक्रेताओं पर हमला।
  • हाथरस, यूपी: मुस्लिम कारीगरों को मंदिर के काम से हटाया गया।
  • डोडा-भद्रवाह, एमपी: मुस्लिमों पर हमले और धमकियां।

यह सब कुछ एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसका मकसद देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाना है।

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काबिल ए गौर

पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि एक गहरी और सुनियोजित साजिश का हिस्सा नजर आ रहा है। इस पूरे घटनाक्रम की निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में भारत जैसे विविधतापूर्ण देश को सांप्रदायिक आग में झोंकने की किसी भी कोशिश को नाकाम किया जा सके।

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