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पहलगाम हमला और उसके बाद की घटनाएं चिंताजनक: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद अध्यक्ष ने उठाए गंभीर सवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद उत्पन्न हालात पर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने गहरी चिंता व्यक्त की है। नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए जमाअत अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने हमले की कठोर निंदा की और उसके बाद देशभर में कश्मीरियों के खिलाफ हो रही नफरत और हिंसा की घटनाओं पर गंभीर सवाल उठाए।

आतंकवाद की निंदा, पीड़ितों के साथ एकजुटता

सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा, “हम पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हैं। यह अमानवीय कृत्य न केवल निर्दोष लोगों की जान लेता है, बल्कि पूरे समाज में भय का माहौल पैदा करता है। हमारी संवेदनाएं पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम चाहते हैं कि दोषियों को जल्द से जल्द न्याय के कठघरे में लाया जाए।”

उन्होंने जोर दिया कि यह घटना दर्शाती है कि कश्मीर में अब भी सुरक्षा नीति में गंभीर खामियां हैं। “इतनी सैन्य उपस्थिति के बावजूद अगर आतंकी हमला होता है, तो यह स्पष्ट करता है कि हमें केवल शक्ति नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण रणनीति की आवश्यकता है,” उन्होंने कहा।

‘सामान्य स्थिति’ की सरकारी दावों पर उठे सवाल

जमाअत अध्यक्ष ने सरकार के उस दावे पर भी सवाल खड़े किए कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद कश्मीर में हालात सामान्य हो चुके हैं। “अगर ऐसा होता तो इस प्रकार की हिंसा कैसे संभव होती? यह बताता है कि सामान्य स्थिति की बात महज एक राजनीतिक नैरेटिव है, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है,” उन्होंने कहा।

हुसैनी ने पहलगाम हमले के दौरान स्थानीय कश्मीरियों द्वारा पर्यटकों को बचाने के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “कश्मीरी आवाम ने साहस और इंसानियत की मिसाल पेश की है। हमें उनके मानवीय योगदान को स्वीकार करना चाहिए न कि उन्हें संदेह की नजर से देखना चाहिए।”

इस्लामोफोबिया और कश्मीरी विरोधी माहौल पर जमाअत की कड़ी प्रतिक्रिया

प्रेस वार्ता में सैयद हुसैनी ने मीडिया के एक वर्ग और कुछ राजनेताओं द्वारा इस हमले को ‘इस्लाम बनाम भारत’ के नैरेटिव में ढालने के प्रयासों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “फर्जी खबरों, इस्लामोफोबिक बयानबाजी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने कश्मीरियों के खिलाफ देशभर में नफरत को भड़काया है। यह राष्ट्रविरोधी और अत्यंत खतरनाक प्रवृत्ति है।”

उन्होंने बताया कि विभिन्न राज्यों से कश्मीरी छात्रों और कामगारों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं चिंता का विषय हैं। “यह सिर्फ कश्मीरियों की नहीं, बल्कि भारत की विविधता, एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की परीक्षा है,” हुसैनी ने कहा।

सरकार से मांगें: सुरक्षा, मुआवज़ा और संवेदनशीलता

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने केंद्र और राज्य सरकारों से निम्नलिखित ठोस कदम उठाने की मांग की:

  • कश्मीरी छात्रों, कामगारों और नागरिकों की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
  • हिंसा के शिकार लोगों को तत्काल मुआवज़ा प्रदान किया जाए
  • इस्लामोफोबिया और क्षेत्रीय घृणा के खिलाफ जनजागरूकता अभियान चलाया जाए
  • दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए

वक्फ संशोधन अधिनियम, जाति जनगणना और श्रम अधिकारों पर भी रखे विचार

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को असंवैधानिक करार देते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के प्रतिरोध अभियान का समर्थन किया। “यह कानून धार्मिक स्वायत्तता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। हम इसके खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष को समर्थन देते हैं,” उन्होंने कहा।

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के संदर्भ में हुसैनी ने भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की दुर्दशा पर चिंता जताई। “82% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो कम मजदूरी, असुरक्षा और खराब कार्य परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। हमें श्रम सुधारों और आईएलओ मानकों के अनुसार सुरक्षात्मक नीतियों की आवश्यकता है,” उन्होंने कहा।

जाति जनगणना के मुद्दे पर उन्होंने इसे “ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक निर्णायक कदम” बताया, लेकिन इसके निष्पादन में पारदर्शिता और राजनीतिक गैर-हस्तक्षेप की मांग की।

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