अलीगढ़ की बेटी डॉ. आसिया इस्लाम ने रचा इतिहास, शहरी भारतीय महिलाओं की ज़िंदगी पर आई ऐतिहासिक किताब
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मुस्लिम नाउ,अलीगढ़
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पूर्व छात्रा और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में सहायक प्रोफेसर डॉ. आसिया इस्लाम की एक नई किताब ने शहरी भारत में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और पेशेवर ज़िंदगी को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित उनकी किताब “A Woman’s Job: Making Middle Lives in New India” अब दक्षिण एशिया की सामाजिक विज्ञान शृंखला का हिस्सा बन चुकी है और वैश्विक स्तर पर सराही जा रही है।
डॉ. आसिया इस्लाम की अकादमिक यात्रा का आग़ाज़ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुआ, जहां उन्होंने संचार अंग्रेज़ी (Communication English) में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से लिंग, मीडिया और संस्कृति में एमएससी किया और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आज वे एलएसई में लिंग, विकास और वैश्वीकरण विषय पढ़ा रही हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त शोधकर्ता के रूप में पहचानी जाती हैं।
नई दिल्ली की युवतियों की आवाज़ बनी किताब
उनकी किताब एक गहन नृवंशविज्ञान (ethnography) है, जो दिल्ली की निम्न-मध्यमवर्गीय युवा महिलाओं की ज़िंदगी को बेहद संवेदनशील और अकादमिक दृष्टिकोण से सामने लाती है। ये महिलाएं शहरी भारत में मॉल, कैफे, कॉल सेंटरों जैसे सेवा क्षेत्र की नौकरियों से जुड़ी हुई हैं, जो एक ओर उन्हें आधुनिकता की प्रतीकों — जैसे कि जींस पहनना, स्मार्टफोन चलाना, अंग्रेज़ी बोलना और मेट्रो में सफर करना — से जोड़ती हैं, तो दूसरी ओर उन्हें सामाजिक असमानता, पारिवारिक जिम्मेदारियों और सीमित अवसरों की चुनौती से भी जूझना पड़ता है।
कम होती महिला श्रम भागीदारी पर सवाल
उदारीकरण के बाद के भारत में जहां महिलाओं की शिक्षा और कौशल में व्यापक वृद्धि देखी गई है, वहीं श्रम क्षेत्र में उनकी भागीदारी लगातार गिर रही है। डॉ. आसिया इस्लाम की यह किताब इसी विरोधाभास पर केंद्रित है और यह बताती है कि कैसे लिंग, वर्ग और जाति — तीनों सामाजिक कारक — मिलकर महिलाओं की निजी और पेशेवर ज़िंदगी को प्रभावित करते हैं।
महिलाओं की खामोश जद्दोजहद का दस्तावेज़
किताब इस बात पर भी रोशनी डालती है कि ये महिलाएं किस तरह से परिवार के भीतर पारंपरिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी आत्मनिर्भर बनने की आकांक्षा रखती हैं। वे सिर्फ नौकरी नहीं कर रहीं — वे आधुनिक भारत में अपनी पहचान गढ़ने की कोशिश में हैं। मगर इस सफर में उन्हें हर मोड़ पर सामाजिक नियंत्रण, पितृसत्ता और असमानता से जूझना पड़ता है।
शोध के पीछे की सोच
डॉ. इस्लाम का कहना है, “मैं लिंग और काम के बीच के रिश्ते में गहरी दिलचस्पी रखती हूं — यह कैसे एक-दूसरे को जटिल, अक्सर अदृश्य तरीकों से आकार देते हैं।” उनकी यह दृष्टि न सिर्फ अकादमिक शोध को समृद्ध बनाती है बल्कि भारत में महिलाओं के संघर्ष और उम्मीदों की वास्तविक तस्वीर भी सामने लाती है।
एएमयू का गौरव
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने कहा, “डॉ. आसिया इस्लाम की यह उपलब्धि न सिर्फ एएमयू के लिए गर्व की बात है बल्कि यह भारतीय मुस्लिम महिलाओं की शैक्षणिक संभावनाओं का भी प्रमाण है।” एएमयू के कई संकायों में इस किताब पर संवाद आयोजित करने की योजना है ताकि छात्र-छात्राएं समकालीन समाजशास्त्रीय मुद्दों को बेहतर ढंग से समझ सकें।
विशेष टिप्पणी:
डॉ. आसिया इस्लाम की किताब सिर्फ एक अकादमिक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह उन लाखों भारतीय महिलाओं की आवाज़ है जो ‘नौकरी’ और ‘आज़ादी’ के बीच की जद्दोजहद में हैं। यह किताब भारत की सामाजिक बनावट, आर्थिक असमानता और लैंगिक राजनीति को समझने के लिए एक अनिवार्य ग्रंथ के रूप में उभर रही है।