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तुर्की की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में सना शलान की कहानियों पर इराक़ी शोधार्थी नबा हसन अली अल-जमीली का विश्लेषण

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,वान (तुर्की)


तुर्की के वान शहर में स्थित युज़ुनजू यिल यूनिवर्सिटी (Yüzüncü Yıl University) में आयोजित दो दिवसीय आठवीं अंतरराष्ट्रीय छात्र संगोष्ठी में इराक़ की शोधार्थी नबा हसन अली अल-जमीली ने जॉर्डन की चर्चित लेखिका और फिलिस्तीनी मूल की साहित्यकार डॉ. सना शलान की कहानियों पर केंद्रित एक विशिष्ट और विश्लेषणात्मक शोध-पत्र प्रस्तुत किया।

यह संगोष्ठी सामाजिक विज्ञान विषय पर आधारित थी, जिसका मुख्य विषय “फिलिस्तीन – सभी पहलुओं से” (Palestine in All Aspects) रखा गया था। इसमें तुर्की, अरबी और अंग्रेज़ी भाषाओं में अनेक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें से नबा अल-जमीली का शोध विशेष रूप से साहित्यिक दृष्टिकोण से ध्यानाकर्षक रहा।

कथात्मक संरचना और ‘दुखद दृष्टिकोण’ का विश्लेषण

नबा अल-जमीली के शोध पत्र का शीर्षक था —
“सना शलान की कहानियों में कथात्मक संरचना : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन”।

इसमें उन्होंने सना शलान की तीन प्रमुख कहानी-संग्रहों —

  1. “ताक़सीम अल-फिलिस्तीनी” (फिलिस्तीनी विभाजन)
  2. “हादस ज़ात जिदार” (एक दीवार की घटना)
  3. “मज़ाकिरात रज़ीआ” (एक शिशु की डायरी)

— का सघन विश्लेषण प्रस्तुत किया और यह दिखाया कि किस प्रकार इन कहानियों में दुखद दृष्टिकोण (Tragic Vision) कथात्मक संरचना के माध्यम से सशक्त और प्रभावशाली ढंग से उभरता है।

शोध का आधार फ्रांसीसी सिद्धांतकार लुसियन गोल्डमैन का “दुखद दृष्टिकोण” सिद्धांत था, जिसके अनुसार साहित्यिक कृतियाँ एक विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक यथार्थ की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति होती हैं।

तीन कथात्मक स्वर – शोक, वंचना और मृत्यु

शोध में यह स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया कि सना शलान की कहानियाँ न केवल एक ऐतिहासिक पीड़ा को स्वर देती हैं, बल्कि उस पीड़ा को वैश्विक मानवीय विमर्श में रूपांतरित भी करती हैं। शोध के दौरान तीन प्रमुख कथात्मक स्वर उभरकर सामने आए:

1. शोक का स्वर

यह स्वर संग्रह “ताक़सीम अल-फिलिस्तीनी” में उभरता है, जो नक़बा (1948 में फिलिस्तीनियों का सामूहिक विस्थापन), शरणार्थी जीवन और आत्महीनता की त्रासदी को प्रस्तुत करता है। इन कहानियों में समय, स्मृति और प्रतीकों का गहन प्रयोग दिखाई देता है। लेखिका ने यहां भाषा को दुख के अनुभव की संवेदनशीलता में ढालने की कोशिश की है।

2. वंचना और कटाव का स्वर

संग्रह “हादस ज़ात जिदार” में यह स्वर प्रमुखता से देखा गया है, जिसमें इज़रायल द्वारा खड़ी की गई नस्लीय दीवार के कारण फिलिस्तीनी जीवन के सामाजिक और भावनात्मक विखंडन को दर्शाया गया है। कहानी की भाषा यथार्थपरक और सीधी है, लेकिन प्रतीकों की शक्ति से संपन्न।

3. मृत्यु का स्वर

यह स्वर “मज़ाकिरात रज़ीआ” में दिखाई देता है, जिसमें नवंबर 2005 के अम्मान बम धमाकों के पीड़ितों की त्रासदियाँ कई दृष्टिकोणों से प्रस्तुत की गई हैं। इसमें शिशु के दृष्टिकोण से मृत्यु और जीवन की क्षणभंगुरता का मार्मिक चित्रण किया गया है, जो पाठक को गहरे स्तर पर प्रभावित करता है।

वैश्विक साहित्यिक विमर्श में सना शलान का स्थान

नबा अल-जमीली ने अपने शोध में निष्कर्ष दिया कि सना शलान की कहानियाँ केवल स्थानीय फिलिस्तीनी संदर्भ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मानवता की सार्वभौमिक पीड़ा, अन्याय और संघर्ष को भी उद्घाटित करती हैं।

डॉ. शलान ने प्रतीकों, संकेतों, दस्तावेज़ीय शैली और कल्पना के माध्यम से न केवल त्रासदी को वर्णित किया है, बल्कि उसे सौंदर्यात्मक भाषा में ढालकर पाठक के सामने प्रस्तुत किया है। उन्होंने कथात्मक संरचना में विविधता और नवीनता का प्रयोग कर फिलिस्तीनी साहित्य को वैश्विक साहित्य के स्तर पर पहुँचाया है।

शोध का साहित्यिक और वैचारिक महत्व

नबा अल-जमीली का यह शोध इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यह फिलिस्तीनी कथा साहित्य को केवल एक राजनीतिक विमर्श से हटाकर साहित्यिक संरचना, भाषिक तकनीकों और दर्शन के धरातल पर जांचता है।

साथ ही यह शोध यह भी दर्शाता है कि आज की युवा शोधार्थी पीढ़ी न केवल साहित्य को भावनात्मक स्तर पर पढ़ रही है, बल्कि उसे सैद्धांतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी गंभीरता से विश्लेषित कर रही है।

संगोष्ठी की व्यापकता और साहित्य की भूमिका

यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एक ऐसे समय में आयोजित हुई जब फिलिस्तीन एक बार फिर विश्व चेतना का केंद्र बना हुआ है। ऐसे में साहित्य और आलोचना की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

नबा अल-जमीली का शोध इस बात का प्रमाण है कि साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि प्रतिरोध, स्मृति और मानवीय चेतना का माध्यम भी है।


यह रिपोर्ट उन तमाम शोधार्थियों और पाठकों के लिए प्रेरणादायक है जो साहित्य को केवल काग़ज़ी नहीं, बल्कि सामाजिक यथार्थ का प्रतिबिंब मानते हैं।

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