सऊदी क्राउन प्रिंस और ट्रंप के बीच ऐतिहासिक आर्थिक समझौता
Table of Contents
✍️ मुस्लिम नाउ इंटरनेशनल डेस्क I रियाद (सऊदी अरब)
— सऊदी अरब और अमेरिका के बीच आर्थिक एवं रणनीतिक रिश्तों को नई ऊँचाइयों पर ले जाते हुए, सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को रियाद में एक ऐतिहासिक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए।
यह समझौता ट्रंप की बहुप्रतीक्षित मध्य पूर्व यात्रा की शुरुआत का हिस्सा है, जिसे उन्होंने “इतिहास की निर्णायक कूटनीतिक पहल” बताया। इस दौरे का मक़सद न केवल गाज़ा संकट पर तत्काल कूटनीतिक संवाद को तेज़ करना है, बल्कि ऊर्जा, रक्षा, अंतरिक्ष और खनिज संसाधनों जैसे क्षेत्रों में अरब-अमेरिकी निवेश सहयोग को भी मजबूत बनाना है।

🛫 ट्रंप का रियाद में भव्य स्वागत
12 मई को अमेरिकी समयानुसार, डोनाल्ड ट्रंप मैरीलैंड स्थित जॉइंट बेस एंड्रयूज़ से ‘एयर फ़ोर्स वन’ में सवार होकर रियाद पहुंचे। सऊदी राजधानी के किंग खालिद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने खुद ट्रंप का गर्मजोशी से स्वागत किया।
उनकी आगवानी एक शाही अंदाज़ में की गई, जिसमें रॉयल सऊदी एयर फ़ोर्स के F-15 फाइटर जेट्स ने उनके विमान को एयर एस्कॉर्ट दिया और रियाद हवाई अड्डे पर एक विशेष भव्य हॉल में पारंपरिक अरबी क़हवा (कॉफी) से उनका सत्कार किया गया।
🤝 इन क्षेत्रों में हुए प्रमुख समझौते
इस ऐतिहासिक मुलाकात में कई बहु-क्षेत्रीय समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें शामिल हैं:
- ऊर्जा सहयोग समझौता – सऊदी अरब की ऊर्जा कंपनियों और अमेरिकी ऊर्जा निवेशकों के बीच तेल एवं नवीकरणीय ऊर्जा में दीर्घकालिक सहयोग का वादा।
- खनिज संसाधन समझौता – दुर्लभ धातुओं और खनिजों की संयुक्त खोज, निष्कर्षण और निर्यात के लिए रणनीतिक साझेदारी।
- रक्षा सहयोग समझौता – सऊदी सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में अमेरिकी तकनीकी सहयोग और संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल।
- अंतरिक्ष अनुसंधान समझौता – सऊदी अंतरिक्ष एजेंसी और NASA के बीच वैज्ञानिक सहयोग और संयुक्त अभियानों पर सहमति।
- संक्रामक रोगों पर सहयोग – अमेरिका और सऊदी के स्वास्थ्य विभागों के बीच महामारियों और वायरस पर संयुक्त रिसर्च का समझौता।
- न्यायिक क्षेत्र में सहयोग – न्यायिक प्रशिक्षण, आपराधिक न्याय प्रणाली और साइबर अपराधों पर संयुक्त कार्यनीतियाँ तैयार करने का संकल्प।

🍽️ रॉयल कोर्ट में लंच और डिनर डिप्लोमेसी
मुलाकात के बाद ट्रंप और मोहम्मद बिन सलमान ने रॉयल कोर्ट में एक भव्य लंच में भाग लिया, जहाँ दोनों देशों के वरिष्ठ राजनयिक, रक्षा अधिकारी और कॉर्पोरेट प्रतिनिधि मौजूद थे। बाद में दिन में क्राउन प्रिंस ने ट्रंप के सम्मान में एक औपचारिक रात्रिभोज (स्टेट डिनर) का भी आयोजन किया।
📈 US-Saudi निवेश सम्मेलन में ट्रंप की भागीदारी
इस राजनयिक मुलाकात के अगले चरण में डोनाल्ड ट्रंप US-Saudi Investment Conference में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने अमेरिकी व्यापारिक प्रतिनिधियों और सऊदी निवेश बोर्ड के अधिकारियों के साथ संयुक्त निवेश योजनाओं पर चर्चा की।
ट्रंप ने कहा:
“मध्य पूर्व के साथ साझेदारी अब केवल तेल तक सीमित नहीं है। यह अब अंतरिक्ष, रक्षा, और वैश्विक स्वास्थ्य की साझेदारी है।”
🌍 दौरे के अगले पड़ाव: कतर, UAE और संभावित तुर्किये यात्रा
रियाद यात्रा के बाद ट्रंप की यह क्षेत्रीय यात्रा कतर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) तक जाएगी। सूत्रों के अनुसार, यह संभावना भी जताई जा रही है कि ट्रंप तुर्किये (Turkey) भी जा सकते हैं, जहाँ वे यूक्रेन युद्ध और मध्य एशिया में स्थिरता को लेकर रणनीतिक बातचीत करेंगे।
🧠 विश्लेषण: क्या बदल रही है सऊदी-अमेरिकी साझेदारी की परिभाषा?
इस दौरे की खास बात यह रही कि पारंपरिक सुरक्षा और ऊर्जा से इतर सहयोग के नए आयामों पर बल दिया गया है। विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब अब अमेरिकी सहयोग से एक तकनीकी और सैन्य महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, और ट्रंप की यह यात्रा 2024 के अमेरिकी चुनावों के बाद उनके अंतरराष्ट्रीय एजेंडे को मजबूती दे सकती है।
इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का विज़न 2030 अब केवल कागज़ी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक वास्तविकता में तब्दील हो रहा है।
🚨 NOW: President Trump and Saudi Crown Prince sign an economic agreement, which will result in over $600 BILLION in Saudi investment in the United States
— Nick Sortor (@nicksortor) May 13, 2025
LFG! 🔥🇺🇸 pic.twitter.com/rmyYKtQmXY
🔚 निष्कर्ष
सऊदी अरब और अमेरिका के बीच इस नए रणनीतिक आर्थिक साझेदारी समझौते ने न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती दी है, बल्कि मध्य पूर्व में स्थिरता और तकनीकी प्रगति के नए रास्ते भी खोले हैं। आने वाले दिनों में इस साझेदारी के ठोस परिणाम देखने को मिल सकते हैं – खासकर जब दुनिया ऊर्जा संकट, सैन्य अस्थिरता और तकनीकी प्रतिस्पर्धा से जूझ रही है।